काल सर्प योग के बारे में तथा उसके निर्धारण में बहुत सारी भ्रांतियां प्रचलित हो चुकी है. प्रायः मुझे रोज ही ऐसे कई व्यक्ति मिल जाते है जिन्हें यह बताया गया होता है कि वे कालसर्प दोष से पीड़ित है. लेकिन कारण कुछ और ही होता है. जैसे दोष पूर्ण केमद्रुम योग का है. किन्तु निर्धारण के अभाव में दोषी कालसर्प योग का माँ लिया जाता है. कुंडली में कालसर्प योग तब घटित होता है जब सारे ग्रह राहू एवं केतु के मध्य आ जाते है. राहू एवं केतु सदा एक दूसरे से 180 अंश क़ी दूरी पर रहते है. अर्थात एक दूसरे के आमने सामने ही रहते है. कुंडली में मात्र 12 ही भाव होते है. कालार्प योग के द्वारा सात भाव या घर तों घेर लिये गये. अब बचे 5 भाव. अर्थात इन पांचो भावो के लिये कालसर्प योग हो गया. अर्थात 12 में से पांच तों 100 में कितना? अर्थात लगभग 45% लोग कालसर्प दोष से युक्त हो जायेगें. यदि अंशो के आधार पर देखा जाय तों लगभग 179 अंश का दायरा इस कालसर्प योग के अधीन आ जाएगा. और इस प्रकार आधे लोग इस दोष से घिर जायेगें. यह न तों तर्कपूर्ण है और नहीं संभव. किसी भी राशि के लिये काल सर्प योग तभी होता है जब उस राशि पर ही राहू हो और उससे तथा केतु के मध्य सारे ग्रह हो जाएँ. तों काल सर्प योग होता है. उस पर भी यदि याम्यध्रुव अर्थात South Pole से उत्तरवर्ती स्थित राशि पर राहू हो तथा सौम्य ध्रुव या नोर्थ पोले से दक्षिणवर्ती केतु हो या दूसरे शब्दों में जन्म लग्न ही जन्म राशि हो या जन्म समय में जन्म राशि केंद्र में हो तों कालसर्प योग तभी हो सकता है जब चन्द्रमा से सूर्य 90 अंशो के दायरे के मध्य या उसी के साथ हो. अन्यथा इस अवस्था में भी कालसर्प योग नहीं हो सकता है. “योग समन्वय”, “योग वैवर्त”, “मार्तण्ड याग”, एवं वृहत्पाराशरी में इसका उल्लेख मिलता है. आचार्य रामानुजम के शब्दों में- खेट्वन्ग़ाभरणम सर्पो इन्द्वीलग्ने केन्द्रस्थो वा रविर्युतिः. अपर्युतिः ग्रहाणाम कुरुते सौम्ये याम्यायनेपिवा. अर्थात सर्प का मुख जिस राशि पर पड़े और उसके मुँह के आगे कोई दूसरा ग्रह न पड़े. तथा शेष ग्रहों को राहू या सर्प अपनी पूंछ में लपेट कर रखा हो, तों काल सर्प योग होता है. दूसरे शब्दों में समस्त ग्रह राहू एवं केतु के मध्य हो तथा जिस राशि में सर्प का मुँह अर्थात राहू पड़े उस राशि के लिये ही केवल सर्पदोष होगा. इस प्रकार राहू-केतु के मध्य सारे ग्रहों के होने के बावजूद भी मात्र उसी व्यक्ति के लिये काल सर्प होगा जिस व्यक्ति के जन्म नक्षत्र के जिस चरण में राहू होगा. महर्षि देवहूत के शब्दों में यह कहा गया है कि जिस राशि के जिस नक्षत्र के जिस चरण में राहू हो और उसी अंश पर यदि चन्द्रमा हो तभी काल सर्पदोष हो सकता है.अन्यथा नहीं. महर्षि का यह कथन बहुत ही सटीक है. तथा वैदिक, वैज्ञानिक एवं तार्किक रूप से सत्य भी है. वास्तव में जब सारे ग्रह राहू एवं केतु के मध्य में आ जाते है तब बनने वाला काल सर्प योग यक्ति विशेष के लिये 1/120000 ही होता है. अर्थात बारह हज़ार लोगो में एक व्यक्ति इसके प्रभाव में आता है. किन्तु भूखंड के सम्बन्ध में यही अनुपात 1/12 का हो जाता है. अर्थात बारहवें अक्षांश एवं देशांतर के मध्य दुर्घटना या कोई अशुभ या अप्रिय घटना जन्म लेगी ही.
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