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मैं सारे यन्त्र खुद ही क्यों नहीं पहन लेता?

वेद विज्ञान
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सूचना- यह लेख एक प्रवासी भारतीय महानुभाव के पूछे व्यंग्यात्मक प्रश्न का उत्तर है.

Dear Mr. Sanyal, H.M.
I don’t know the intention behind the question/query you have summed up. But I thank you to take interest in my Articles. At least you spared time to read my compositions. But sorry to say you that I don’t reply you in English as a personal mail. I want the answer of your question all the readers to read.
You have asked-
“Mr. Rai, you prescribe different astro-mechanisms/substitutes/solutions to several persons to avoid their miseries/calamities/disadvantages/misfortune. Why don’t you have one of them for yourself to improve your own status/standard?”
Please find the answer here as follows-

सब को धन वैभव दियो खुद ही भयो कंगाल.

भगवान शिव सबको कोठा बंगला देते है. किन्तु उनके खुद के पास एक छप्पर तक नहीं है. एक विद्यालय का अध्यापक लडके को पढ़ाकर कलक्टर और मंत्री बना देता है. किन्तु खुद उन्ही विद्यार्थियों के दर पर भिखारी बन कर चक्कर लगाते रहते है.
वैसे तों श्री सान्याल जी, आप ने जिस भाषा में प्रश्न पूछा है उस भाषा में मैं आप को उत्तर दे सकता हूँ. किन्तु वह उत्तर आप को विषाक्त वाण से भी ज्यादा उग्र लग सकता है.
श्रीमान जी, लंगडा कितना भी धनी क्यों न हो और चाहे उसके पास कितने भी फुटबाल क्यों न रखे हो, वह अपने पैरो से फुटबाल नहीं खेल सकता. एक गंजे को नाई क़ी क्या ज़रुरत? एक अंधा खूब सूरती का क्या सुख ले सकता है? एक बेजुबान कैसे संगीत प्रस्तुत कर सकता है?
किन्तु एक लंगडा खूब सूरती का आनंद उठा सकता है. एक गंजा फ़ुटबाल खेल सकता है. एक अंधा गाना गा सकता है.
यन्त्र तभी काम करेगें जब उस यन्त्र से सम्बंधित ग्रह सुप्त, निर्बल या घिरे हो. यदि वह ग्रह उस स्थान पर होगें ही नहीं तों यंत्र किसके लिये प्रयुक्त होगा?
संभवतः आप मेरे पुरे लेख को पढ़ने में शर्म महसूस करते है. या फिर आप को लेख से नहीं बल्कि हठ पूर्वक अतार्किक स्थूणाभिखनन से तात्पर्य है. कोई भी यंत्र सबके लिये ह़र अवस्था में प्रभावी नहीं हो सकता है. चलिए यदि आप का मंतव्य शुभ है तों फिर मै इसे एक उदाहरण से स्पष्ट कर दे रहा हूँ.
काल सर्प योग तब घटित होता है जब सारे ग्रह राहू एवं केतु के मध्य आ जाते है. इसके लिये तीन व्यावहारिक यंत्रो का उल्लेख मिलता है. वैसे तों और भी अनेक यंत्र बताये गये है. किन्तु उनके बारे में मुझे कोई ज्ञान नहीं है. और न तों मै अपने स्तर से उन्हें प्रमाणित पा सका हूँ. किन्तु तीन यंत्र प्रसिद्ध है. जिनका ठोस प्रमाण है. मैं उनमें से एक यन्त्र “कुलिक” के बारे में बता रहा हूँ.
यह यंत्र ताम्बे के पत्र पर बनता है. जन्म नक्षत्र के अंश के अनुपात में इसकी लम्बाई होती है. इसे नौसादर एवं सुहागा के घोल में पहले तप्त कर लिया जाता है. इससे यह ताम्रपत्र धूसरित वंग अयस्क या तूतिया के अवक्षेप (क्युप्रिक डेक्टानाइट्रो हाईड्रामायिड) उत्सर्जित करने क़ी क्षमता से युक्त हो जाता है. ध्यान रहे जो व्यक्ति काल सर्प नामक अशुभ योग से युक्त होता है उसके रक्त में अणुओ क़ी संख्या विरल हो जाती है. तथा रिक्तिकाओं का आकार वर्धन हो जाता है. अतः मष्तिष्क को तथा अन्य ज्ञान वाही तंतुओ को जितनी मात्रा में रिक्तिकाओ को होना चाहिए उसका क्षेत्रफल बढ़ जाता है. आयतन के हिसाब से धमनियों के द्वारा इनका समायोजन नहीं हो पाता है. अतः धमनियां इन्हें एक विशेष द्रव जिसे आयुर्वेद में “रेतासव” कहा गया है, उसमें परिवर्तित कर देती है. आधुनिक चिकित्सा विज्ञान इसके बारे में अभी ज्यादा अनुसंधान नहीं कर सका है. क्योकि यह रेतासव एक अति जटिल रासायनिक यौगिक (Multi Complicated Chemical Compound) है जिसका संरचनात्मक रासायनिक रूप अभी वर्त्तमान रसायन विज्ञान के पास उपलब्ध नहीं है. किन्तु इसके प्रभाव से ज्ञान तंतुओं का मूलभूत (बेसिक) परिपोषण बाधित हो जाता है. और व्यक्ति बौद्धिक एवं तार्किक स्तर पर पंगु होने लगता है. क्युप्रिक डेक्टानाइट्रो हाईड्रामायिड या इसका रासायनिक सूत्र जो संभवतः कुछ हद तक CuSO4(NHOH2)KNHO3 है, रिक्तिकाओ को तनु तूतिया के वंग भष्म के परत से घेर देता है. और रक्त कणीकाएं रेतासव में परिवर्तित नहीं हो पाती है. इस प्रकार शरीर के एक तरफ पड़ने वाली “अपारावतीयती” किरणे जो काल सर्प योग के कारण उत्सर्जित होती है, आलिन्द (Artery) तथा धमनियों को संकीर्णन से सुरक्षित कर देती है.
किन्तु यदि कालसर्प का सिरों भाग ही जन्म नक्षत्र पर हो उसे यह “कुलिक” यंत्र नहीं धारण करना चाहिए.
किन्तु यदि ताम्र पत्र पर उकेरे गये चित्र या अंक जन्म्नाक्षात्र के अंश से ज्यादा आयतन या गहराई वाले होगे तों तूतिया का तनु (Dilute) अवक्षेप तनु से सान्द्र (Concentrate) हो जाता है. और यह स्वयं ही ठोस गुत्था बन जाता है. जो रक्त एवं धमनी के लियी हानि कारक हो जाता है.
श्री सान्याल जी, मुझे जितने यन्त्र आवश्यक एवं मेरे योग्य थे उसे मैंने धारण कर रखा है. जो यन्त्र मेरे लिये आवश्यक है किन्तु धारण करने योग्य नहीं है, उन्हें मै कैसे धारण कर सकता हूँ?
सान्याल जी, आप जिस वाशिंगटन डीसी में रह है मै वहां जा चुका हूँ. किन्तु आप सिर्फ वाशिंगटन डीसी ही देख पाये है. मै आप के पास के न्यू जर्सी, फ्लोरिडा, कनाडा, मांट्रियाल, शिकागो घूम चुका हूँ. इसके अलावा सिडनी, वेलिंग्टन, सार्सीडिया, सार्दीनिया, दोहा, ओमान, जेद्दा आदि देश भी घूम चुका हूँ.
और यह मेरा घमंड नहीं है, किन्तु सत्य है कि आप ये सब स्थान आप नहीं घूम पायेगें. मै मानता हूँ कि आप के पास अथाह रुपया पैसा है, किन्तु फिर भी आप नहीं घूम पायेगें. जानते है क्यों?
क्योकि एक बैंक का खजांची दिन भर में करोडो रुपये बाँट देता है. किन्तु उसे कुछ नहीं मिल पाता है. या दूसरे शब्दों में उसी बैंक से एक वेतन भोगी अपने महीने का वेतन लाखो में लेता है. जब कि वेतन बांटने वाला हज़ार में ही रह जाता है.
आप क़ी तुलना में मै वेतन कुछ भी नहीं पाता हूँ. किन्तु आप से सुखी मै ही ज्यादा हूँ. यदि ऐसा नहीं होता तों क्या आप को अपना देश छोड़ कर आजीविका के लिये परदेश जाना पड़ता?
बुरा न मानियेगा, यह सब उपमा मैंने उदाहरण के लिये दिये है. न कि आप को हीनता का अनुभव करने के लिये.
जिस औरत को गर्भाशय ही न हो उससे संतान उत्पन्न करने के लिये विवाह कैसे किया जा सकता है?
मेरी समझ से इतना ही उदाहरण पर्याप्त है.
यदि फिर भी आप संतुष्ट नहीं है. तों अनुरोध है कि आप मेरे लेख को पढ़ने में अपना अमूल्य समय जाया न करें.

Dear Mr. Sanyal, I am confident this catechizing is enough to quench the curiosity or enigma regarding astro mechanism. If not, I request you not to waste your precious time in reading my articles which you perhaps think of no use.
Thanking you

Pandit R. K. Rai

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