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नाडीदोष से संतानहीनता,:- पौराणिक मान्यता -आधुनिक चिकित्सा विज्ञान इसे किसी भी स्तर पर चुनौती नहीं दे सकता है.

वेद विज्ञान
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विचित्र, सुन्दर, सबसे अलग-थलग एवं सबकी नज़रो के आकर्षण केंद्र बनने के लिए विविध एवं विचित्र आभूषणों एवं रसायनों से शरीर सज्जा के लिए हम शारीरिक रूप से तो पराई सभ्यताओं के गुलाम हो ही गए है. अपनी आधार भूत पौराणिक एवं पारंपरिक मान्यताओं के ठोस आधार पर दृष्टिपात करने को ज़िल्लत, जाहिलो की चर्या एवं कल्पना आधारित एक ताना-बाना मान कर मानसिक रूप से भी गुलामी के बंधन में पूरी तरह बंध गए है.
वैसे नाम बताकर मैं अपनी निजता नीति का स्वयं ही खंडन कर रहा हूँ. किन्तु यह उन्ही महाशय का अनुरोध है इस लिए मै उनका उल्लेख कर रहा हूँ. आज एक वरिष्ठ चिकित्सक, डाक्टर प्रेम चन्द मंतुरे, शासकीय चिकित्सालय एवं महाविद्यालय, औरंगाबाद (महाराष्ट्र) के मेरे पास आये थे. उनके बेटे शनि मंतुरे का विवाह वर्जीनिया निवासिनी अल्फ्रेड डिमालटो मंतुरे से हुआ है. शादी 2002 में हुई है. किन्तु अब तक कोई संतान नहीं है. बेटा एवं बहू दोनों वर्जीनिया में ही किसी चिकित्सालय में चिकित्सक है.
बतौर चिकित्सक उन्होंने हर संभव प्रयास कर लिए है. अब उनके पास दो विकल्प है. एक तो परख नली शिशु, और दूसरा दत्तक संतान. बेटे का जन्म 1968 का है. तथा बहू का जन्म 1970 का है. सास जी मराठवाडा विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान की वरिष्ठ प्राध्यापिका है. यह दम्पति मुझे 1999 में औरंगाबाद में पहली बार मिले थे. तब मैं वही पर नियुक्त था. सास जी जिनका नाम सुपर्णा मंतुरे है, मेरे पास वैवाहिक गणना के लिए आयी थीं. मैंने देख-गिन कर बताया था क़ि सब कुछ ठीक है. गणना २२ गुण बन रहा है. किन्तु नाडी प्रत्यंतम स्तर पर एक हो जा रही है. अतः संतान सुख का लगभग अभाव ही रहेगा. श्री मंतुरे भी साथ थे. उन्होंने हंसते हुए कहा क़ि पंडित जी, आप सिर्फ भावात्मक पहलू बताईये क़ि कैसा रहेगा. वर्त्तमान उन्नत चिकित्सा विज्ञान संतान उत्पन्न करने जैसी छोटी समस्या को कुछ नहीं समझता.
यद्यपि मुझे हल्का सा दुःख हुआ. किन्तु फिर संभल कर मैंने हामी भर दी. जब शादी तय हो गयी तो किसी व्यस्तता के कारण मैं उस शादी में सम्मिलित नहीं हो सका. वैसे भी वहां पर मेरी कोई आवश्यकता नहीं थी. कारण यह क़ि विवाह जायभीम के उद्घोष के साथ बौद्ध विधि से होना था. फिर मुझ पंडित की क्या आवश्यकता? किन्तु उनसे मेरा परिचय कुछ दूसरे स्तर का हो चुका था. अतः मैंने अपनी धर्म पत्नी जी को शादी में शरीक होने के लियी भेज दिया.
खैर 18 दिसंबर 2002 को शादी हो गयी. वैसे भी 15 दिसंबर के बाद से लेकर 14 जनवरी तक के बीच हिन्दू विवाह निषिद्ध होते है. किन्तु शादी तो बौद्ध रीति रिवाज से होना था. अतः हिन्दू मुहूर्त का कोई विचार नहीं था.
शादी के लगभग 10 वर्ष बाद श्री मंतुरे साहब अपनी पत्नी के साथ यहाँ पधारे है. अपनी औकात एवं सामर्थ्य के अनुसार मै उन्हें ठहराया हूँ. यह बात मै इसलिए बता रहा हूँ क़ि श्री मंतुरे साहब एक बहुत बड़े धनाधिप है. उनकी सम्पन्नता का अंदाजा दिल्ली वाले लगा सकते है क़ि यमुना नगर का मंतुरे टावर, पश्चिम विहार का मंतुरे विला और द्वारका का अशोक चारु नामक होटल इन्ही महाशय का है. तात्पर्य यह क़ि इतने संपन्न व्यक्ति का आव भगत मेरी क्षमता के बाहर है. इसीलिए मुझे यह कहना पड़ रहा है क़ि मै अपनी औकात एवं सामर्थ्य के अनुसार ठहराया हूँ. यह दंपत्ति कल पवित्र अक्षय वट का दर्शन एवं त्रिवेणी स्नान करेगा. कारण यह है कि इनको विशवास है कि पवित्र अक्षयवट के दक्षिण सिरे के कोई भी वे तीन पत्ते जिनमें विषम रेखा एवं अधोमुखी तंतु बने हो उनके दर्शन, पूजन एवं सेवन से संतति सुख मिलता है. यद्यपि यह संभव है. क्योकि जब अक्षयवट के सीधे ऊपर उठे दक्षिणी तने के वे पत्ते जो क्लोरोफिल के सघन संग्रह एवं क्लोरोप्लास्ट के न्यूक्लिक एसिड के मेक्लोफ्लेविन के प्रतिवर्ती प्रवाह (Diverted Flow) के कारण स्वयं गुणसूत्र रचना में समर्थ होते है, सेवन करने से पूर्व उपस्थित गुणसूत्रों के स्वरुप को परिवर्तित कर देते है. किन्तु वर्त्तमान चिकित्सा विज्ञान मेक्लोफ्लेविन में डेरोड्राईड एवं फ्लोराइड की उपस्थिति से इसका प्रयोग करने से डरता है. कारण यह है कि कहीं कृत्रिम प्रयोग से यदि गर्भाशय का सतह क्षतिग्रस्त हो जाएगा तो भयंकर मेलिग्नेंसी निश्चित है. इसीलिए आधुनिक चिकित्सा विज्ञान इसके सेवन की अनुमति नहीं देता है. मै भी यही सलाह देता हूँ कि यदि नाडीदोष अंतिम अंश तक जाकर नहीं बना है तभी इस पवित्र अक्षयवट का आश्रय लिया जाय. वैसे भी इस पवित्र अक्षयवट की अप्रमेय एवं अमूल्य महिमा का बखान भारतीय तो अलग ह्वेनसांग एवं लोबार्ट जैसे गैर हिन्दू प्रसिद्द विद्वानों एवं दार्शनिको ने भूरी भूरी की है तो मै कहाँ कर सकता हूँ.
किन्तु बहुत अफसोस की बात है कि इसकी इस वैदिक, वैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक महत्ता से अपरिचित कुछ व्यावसायिक पंडित जी लोग इसकी व्याख्या गलत ढंग से कर के लोगो में गलत धारणा भेज रहे है. जब शीर्ष वैज्ञानिकों एवं पुरातत्ववेत्ताओं ने इसके इस विशेष महत्व को सार्वजनिक किया तो जनता के ठेकेदारों ने इसके इस महत्व को भुनाने के लिए हाईकोर्ट में मुक़द्दमा दाखिल कर इसे सेना की अभेद्य सुरक्षा से अलग करने का आदेश प्राप्त कर लिया है. और इसमें कोई संदेह नहीं कि जिस दिन यह परम पावन वृक्ष सेना की सुरक्षा से मुक्त हुआ उसी दिन यह धनाढ्य लोगो के भवनों में काट-काट कर पहुंचा दिया जाएगा, इसमें कोई संदेह नहीं. और अवैध तथा अनैतिक कमाई का यह नायाब श्रोत बन जाएगा.
अस्तु, आज बहुत ही भरे दिल से श्री एवं श्रीमती मंतुरे साहब ने बहुत झिझक के साथ यह स्वीकार किया है क़ि उस समय ये लोग मेरा कहना नहीं माने. अब आज यह दम्पति पूजा-पाठ, यज्ञ-हवन एवं मंत्र -जप आदि की तरफ आकर्षित है. खैर जो भी हो, पूजा-पाठ आदि की अक्षुण महत्ता से कुछ भी असंभव नहीं है. भगवान इस दम्पति की मनोकामना पूरी करें. किन्तु मेरी ज्योतिषीय गणना के अनुसार तो संतति सुख बिलकुल नहीं है. जिसे मैं इन्हें स्पष्ट कर चुका हूँ.
ऐसा नहीं है क़ि इन लोगो ने विविध चिकित्सा पद्धतियों का सहारा नहीं लिया हो. दो संतान पैदा भी हुई. लेकिन दोनों में एक का दोनों पैर नहीं था. दूसरे की गर्दन ही नहीं.थी.
संतानोत्पादन के लिए लड़का लड़की का मात्र शारीरिक रूप से ही स्वस्थ रहना अनिवार्य नहीं है. बल्कि दोनों के शुक्राणुओ या गुणसूत्र या Chromosomes का संतुलित सामंजस्य भी स्वस्थ एवं समानुपाती होना चाहिए. अन्यथा हर तरह से स्वस्थ लड़का एवं लड़की भी संतान नहीं उत्पन्न नहीं कर सकते.
गुणसूत्र या Chromosomes के दो वर्ग होते है. एक तो X होता है तथा दूसरा Y. X पुरुष संतति का बोधक होता है. तथा Y महिला संतति का. यदि पुरुष एवं स्त्री के दोनों X मिल गए तो लड़का होगा. किन्तु यदि YY या XY हो गए तो लड़की जन्म लेगी. किन्तु यदि X ने Y को या Y ने X को खा लिया. तो फिर संतान हीनता का सामना करना पडेगा. क्योकि या तो फिर अकेले X बचेगा या फिर अकेले Y बचेगा. और ऐसी स्थिति में निषेचन क्रिया किसी भी प्रकार पूर्ण नहीं होगी. आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की धाराओं में संतान उत्पन्न होने की यही प्रक्रिया है. और ज्योतिष शास्त्र में भी इसी कमी को नाडीदोष का नाम दिया गया है.
अब ज़रा ज्योतिष के स्तर पर इसे देखते है. यदि किसी भी तरह लड़का एवं लड़की के गुणसूत्रों का पार्श्व एवं पुरोभाग अर्थात Front Portion चापाकृति में होगा तो निषेचन नहीं हो सकता है. इनमें से किसी एक का विलोमवर्ती होना आवश्यक है. तभी निषेचन संभव है. जिस तरह से चुम्बक के दोनों उत्तरी ध्रुव वाले सिरे परस्पर नहीं चिपक सकते. उन्हें परस्पर चिपकाने के लिए एक का दक्षिण तथा दूसरे का उत्तर ध्रुव का सिरा होना आवश्यक है. ठीक उसी प्रकार गुनासूत्रो के परस्पर निषेचित होने के लिए परस्पर विलोमवर्ती होना आवश्यक है. अन्यथा दोनों सदृश संचारी हो जायेगें तो सदिश संचार होने के कारण दोनों एक दूसरे से मिल ही नहीं पायेगें. और गुणसूत्रों के इस मूल रूप को परिवर्तित नहीं किया जा सकता. अन्यथा ये संकुचित और परिणाम स्वरुप विकृत या मृत हो जाते है. सदृश नाडी वाले युग्म के गुणसूत्रों का लेबोरटरी टेस्ट किया जा सकता है. वैसे अभी अब तक भ्रूण परिक्षण तो किया जा सकता है किन्तु गुणसूत्र परिक्षण अभी बहुत दूर दिखाई दे रहा है. सीमेन टेस्ट के द्वारा यह तो पता लगाया जा चुका है कि संतान उत्पादन क्षमता है या नहीं. किन्तु यह पता नहीं लगाया जा सका है कि सीमेन में किन सूत्रों के कारण यह स्थिति उत्पन्न हुई है?
जब कभी लडके एवं लड़की के जन्म नक्षत्र के अंतिम चरण का विकलात्मक सादृश्य हो तभी यह नाडी दोष प्रभावी होता है.मुहूर्त मार्तंड. मुहूर्त चिंतामणि, विवाह पटल एवं पाराशर संहिता के अलावा वृहज्जातक में इसका स्पष्ट उल्लेख मिलता है. उसमें बताया गया है क़ि नाडी दोष होते हुए भी यदि नक्षत्रो के अंतिम अंश सदृश मापदंड के तुल्य नहीं होते, तो साक्षात दिखाई देने वाला भी नाडीदोष प्रभावी नहीं हो सकता है. अतः नाडी दोष का निर्धारण बहुत ही सूक्ष्मता पूर्वक होनी चाहिए.
इतनी गहराई तक का ज्ञान हमारे ग्रंथो में भरा पडा है. किन्तु अति आधुनिक दिखने के चक्कर में भारतीय परम्परा एवं मान्यताओं का अनुकरण कर गंवार न दिखने की लालसा में इतर भारतीय मान्यताओं एवं परम्पराओं को सटीक, आवश्यक तर्कपूर्ण एवं ठोस मानते हुए उसी के अनुकरण में बड़प्पन एवं प्रतिष्ठा ढूंढा जा रहा है. पता नहीं किस आधार पर बिना समझे बूझे अनाडी एवं मनुष्य का चोला धारण किये भ्रष्ट बुद्धि लोग ऐसी मान्यताओं को पाखण्ड, ढोंग एवं झूठ की संज्ञा दे देते है? और आम जनता इनके बहकावे में आती जा रही है. अपूर्ण एवं घृणित मान्यताओं के आधार पर आधारित गैर भारतीय मूल्यों एवं सिद्धांतो का मुकुट पहन पाखण्ड, ढोंग एवं भ्रम बताकर हमारी इन परमोत्कृष्ट मान्यताओं एवं परम्पराओं को गर्त में धकेलने को आतुर इन अप टू डेट अध् कचरे ज्ञान वाले पाश्चात्य अनुयायी बाबाओं से तो निर्मल बाबा बहुत बेहतर है. जो ठगने का ही कार्य क्यों न करते हो, कम से कम भारतीय मान्यताओं को उत्खनित तो नहीं करते है. यदि निर्मल बाबा ज़हर है जो शरीर को मारने का काम कर रहे है तो ये सामाजिक स्तर को ऊंचा उठाने के नाम पर जो बाबाओं की माडर्न भूमिका अदा कर रहे है वे शराब है जो शरीर के साथ अंतरात्मा तक को मार डालती है.
अपनी विरासत में मिली इतनी समृद्ध परम्परा एवं मान्यताओं को ठोकर मार कर इतर भारतीय मान्यताओं का अनुकरण इतना भयावह होगा, अभी इसका अनुमान नहीं लगाया जा रहा है. किन्तु जब तक चेत होगा तब तक सब कुछ हठ, अदूरदर्शिता, मूर्खता, स्वार्थ, लोभ एवं निम्नस्तरीय नैतिकता के भयंकर अँधेरे गर्त में समा गया होगा. कम से कम प्रबल समाज सुधारक कबीर दास जी की ही पंक्ति याद कर लिए होते-
दुनिया ऐसी बावरी कि पत्थर पूजन जाय.
घर की चकिया कोई न पूजे जिसका पीसा खाय.
अभी यह मंतुरे दम्पति विश्व के किसी भी चिकित्सा संस्थान से सलाह एवं दवा लेने से नहीं चुके है. पिछले दो साल में यह दम्पति पूरा विश्व भ्रमण कर चुकी है. किन्तु कुछ भी सफलता नहीं मिल पायी है.
नाडी दोष की शान्ति संभव है. किन्तु इसमें कुछ शर्तें है.
उम्र साठ वर्ष से ज्यादा नहीं होनी चाहिए.
शादी के बाद अधिक से अधिक आठ वर्ष तक प्रतीक्षा की जा सकती है. बारह वर्ष बीत जाने के बाद कुछ भी नहीं हो सकता है.
नाडी दोष सूक्ष्मता पूर्वक निर्धारित होना चाहिए. यदि अंत की अंशात्मक स्थिति नहीं बनाती है, तो साक्षात दिखाई देने वाला नाडी दोष भी निरर्थक होता है. अर्थात वह नाडी दोष में आता ही नहीं है.
यदि उपरोक्त शर्तें है तो प्राथमिक स्तर पर निम्न उपाय किये जा सकते है. जीरकभष्म, बंगभष्म, कमल के बीज, शहद, जिमीकंद, गुदकंद, सफ़ेद दूब एवं चिलबिला का अर्क एक-एक पाँव लेकर शुद्ध घी में कम से कम सत्ताईस बार भावना दें. सत्ताईसवें दिन उसे निकाल कर अपने बलिस्त भर लबाई का रोल बना लें तथा उसके सत्ताईस टुकडे काट लें. इसके अलावा शिलाजीत, पत्थरधन, बिलाखा, कमोरिया एवं शतावर सब एक एक पाँव लेकर एक में ही कूट पीस ले. और नाकीरन पुखराज सात रत्ती का लेकर सोने की अंगूठी में जडवा लें.
रोल बनाए गए मिश्रण को नित्य सुबह एवं शाम गर्म दूध के साठ निगल लिया करें. तथा शतावर आदि के चूर्ण को रोज एक छटाक लेकर गर्म पानी में उबाल लें जब वह ठंडा हो जाय तो उसे और थोड़े पानी में मिलकर रोज सूर्य निकलने के पहले स्नान कर ले. तथा उस पुखराज को तर्जनी अंगुली में किसी भी दिन शनि एवं मंगल छोड़ कर पहन लें.
शोधित नाडीदोष के सिद्ध हो जाने पर यह नुस्खा बहुत अच्छा काम करता है. किन्तु यदि नाडी दोष अंतिम अंशो पर है तो कोई उपाय या यंत्र-मन्त्र आदि काम नहीं करेगें. क्योकि सूखा हो, गिरा हो, टूटा हो या उपेक्षित हो, यदि कूवाँ होगा तो उसका पुनरुद्धार किया जा सकता है. किन्तु यदि कूवाँ होगा ही नहीं तो उसके पुनरुद्धार की कल्पना भी नहीं की जा सकती.

पंडित आर. के. राय

khojiduniya@gmail.com

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