मन्त्र शक्ति बहुत सूक्ष्म किन्तु अक्षुण फल देने वाली होती है. मन्त्र शक्ति स्वर शक्ति को नियंत्रित कर सदिश प्रवाह को कहते है. इसका प्रयोग बहुत ही जटिल एवं श्रम साध्य है. आज की तेज गति से भाग रही दुनिया में सब को मन्त्र धारण करने की फुर्सत नहीं है. बल्कि इसके विपरीत दूसरे के द्वारा सिद्ध मन्त्र जो झट-पट परिणाम देने वाले हो उसकी जरूरत है. किन्तु इसका परिणाम अब विपरीत ही मिल रहा है. और अब स्थिति ऐसी आ गयी है क़ि लोग इससे बहुत घबराने लगे है. स्वर शक्ति का ही आश्रय लेकर आज का विज्ञान विविध दूर भाष संयंत्र एवं स्वरित्र आयाम आविष्कृत कर रहा है. क्योकि आज विज्ञान को मालूम हो गया है क़ि अक्षर को “अक्षर” क्यों कहा गया है. अक्षर का तात्पर्य होता है जिसका कभी क्षरण न हो. अर्थात जिसका कभी नाश न हो. यही कारण है क़ि टेलीफोन के एक सिरे पर बोला गया स्वर उसी रूप में दूसरे छोर पर भी सुनाई देता है. उसमे कोई परिवर्तन नहीं होता है. यह अक्षर का ही प्रभाव है. और इसीलिए वर्णों को यदि “अक्षर” नाम दिया गया है तो वह सार्थक है. इसी के अत्यंत सूक्ष्म एवं परिवर्धित रूप को मन्त्र कहते है. अब हम यंत्रो की बात करते है. आज यंत्रो के बल पर मनुष्य धरती से बहुत दूर चाँद एवं मंगल ग्रहों की सैर कर रहा है. कम्प्युटर, मोबाइल, घड़ी, दूरबीन, बन्दूक आदि यंत्र ही कहलाते है. कम्प्युटर आदि का छोटा “चिप्स” जो चुम्बकत्व शक्ति के अति परिष्कृत एवं सूक्ष्मीकृत शक्ति से पूर्ण होता है. उसे भी यंत्र (Mechanism) ही कहा जाता है. ज्योतिष विज्ञान के नियम के तहत निर्मित होने वाले यंत्र इन “चिप्स” की ही तरह होते है. कुछ तो इनमें से रासायनिक गुणों से युक्त होते है. कुछ सीधे भौतिक रूप में ही कार्य करते है. ताबीज़ में विविध औषधियां भरकर जो यंत्र तैयार किया जाता है, वह रासायनिक यंत्र कहलाता है. नाग, पत्थर, तथा ताम्बे, चांदी आदि के पत्रों पर निर्मित यंत्र भौतिक यंत्र कहलाते है. माला तथा अंगूठी आदि इसी श्रेणी में आते है. किन्तु ये यंत्र विविध तरह से प्रतिबंधित भी होते है. जिस तरह से 8 या उससे अधिक ओवीएम् की क्षमता वाले चुम्बक के संपर्क में आते ही मोबाइल तथा 30 या उससे अधिक ओवीएम् की क्षमता वाले चुम्बक के संपर्क में आने से शक्तिशाली कम्प्युटर काम करना बंद कर देता है. इसी तरह शिवलिंग की नियमित पूजा करने वाले का कात्यायनी यंत्र निष्क्रिय हो जाता है. ये यंत्र पूर्वानुमान भी दिलाते है. जैसे नीलकान्तमणि किसी ने धारण किया है तो यदि वह टूट जाता है या खंडित हो जाता है तो निश्चित रूप से कोई बड़ी बाधा टल गयी जानिये. कारण यह है क़ि अपनी शक्ति से ज्यादा शक्ति के विकिरण के प्राप्त होने पर वह नग टूट जाता है. यंत्र तात्कालिक प्रभाव नहीं दे सकता है. पहले यह चतुर्दिक अपने स्वभाव से विपरीत पहलुओं, परिदृश्यो एवं प्रभाओं को प्रभावहीन बनाता है. जब ये सब निष्क्रिय हो जाते है. तब यह अपने अनुकूल इन सबकी रचना करता है. यदि कोई यंत्रो को तात्कालिक प्रभावी कह कर उसे धारण करने को कहता है, तो निश्चित रूप से वह प्रवंचित कर रहा है.
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