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हीरा : शुभ एवं अशुभ

वेद विज्ञान
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हीरा : शुभ एवं अशुभ
आज कल प्रायः एक फैशन चल गया है क़ि जो चाहे जब भी कोई भी रत्न या नग धारण कर लेता है. या हीरा-मोती आदि धारण करना “स्टेटस सिम्बल” बन चुका है. यह एक अत्यंत घातक या आत्म ह्त्या करने के बराबर है. कारण यह है क़ि ये रत्न अत्यन तीक्ष्ण प्रभाव वाले एवं घातक विकिरण गुण वाले होते है. एक सबसे कम विकिरण वाला नग लेते है जिसका नाम लाजावर्त है. इसकी विकिरण क्षमता 12000 वर्तुल प्रति व्यंगुल होती है. यदि कोशिकाओं में किसी भी तरह आपत्सु व्याल (एक तरह का तरल पदार्थ) जिसे शायद चिकित्साविज्ञान की भाषा में मैग्नोडायाफेन कहा जाता है, 10:2 या इससे कम अनुपात में हुआ तो साढ़े तीन वर्ष में पूरे शरीर में वाहिनी अवरोध या नसों में विद्रूप गांठें भर जाती है. जब क़ि इसे शनि के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए धारण किया जाता है.
या ज्योतिषीय भाषा में यदि शनि वृषभ, धनु या मीन राशियों में है तथा राशि मेष, सिंह, वृश्चिक या कन्या हो तो लाजावर्त सदा ही हानिकारक होता है चाहे शनि की महादशा या साढ़े साती ही क्यों न चल रही हो. यह तो एक अति साधारण रत्न लाजावर्त का उदाहरण रहा. अब हम हीरा को लेते है. यह एक अत्यंत तीव्र प्रभाव वाला उग्र घातक कज्जल या कार्बन होता है. आधुनिक रसायन विज्ञान बताता है क़ि किसी भी कोयले को यदि ज़मीन में बलिस्त भर नीचे मिट्टी में दबा दिया जाय तो वह कोयला एक हज़ार वर्षो में हीरे का रूप धारण कर लेता है. इसकी विकिरण क्षमता 780000 वर्तुल प्रति व्यंगुल होती है. यदि रक्त कोशिकाओं में आपत्सुव्याल का अनुपात 50:8 से किसी भी तरह कम हुआ तो धारण करने वाला उग्र रक्त रोगी, दमा, रक्त शर्करा, तथा ग्रंथि अर्बुद व्याधि के अलावा संतति दुःख से पीड़ित हो जाता है. और वह भी पांचवें साल में ही पूरा हो जाता है. यह एक ऐसा धीमी गति का जहर है जिसका एक बार प्रभाव पूर्ण रूप में प्रभावी हो जाने के बाद फिर कोई औषधि, यंत्र या झाड फूंक काम नहीं करता है.
ज्योतिषीय मतानुसार हीरा शुक्र ग्रह का रत्न माना जाता है. जब कुंडली में शुक्र ग्रह जनित पीड़ा होती है तब इसे धारण करते है. किन्तु ध्यान रहे यदि कुंडली में शुक्र भले नीच का हो, अशुभ स्थान में बैठा हो या पाप पूर्ण एवं निर्बल हो किन्तु यदि मंगल या गुरु की राशि में बैठा हो, या इनमें से किसी एक से दृष्ट हो या इनकी राशियों से स्थान परिवर्तन हो तो हीरा बहुत हानि पहुंचाता है. ऐसी स्थिति में हीरा धारण करना स्वतः अपने तथा अपने बाल बच्चो के जीवन को नष्ट करना होता है.
हीरे का प्रभाव मूल रूप से मेरु दंड के अंतिम कशेरुका एवं कटिबंध के श्रोणी श्रोत पर प्रहार करता है.
पौराणिक कहावतो के अनुसार या अन्य दन्त कथाओं के अनुसार ऐसा माना जाता है क़ि जब किसी कारण से महर्षि भृगु ने देवताओं से रुष्ट होकर तथा अपना प्राण त्यागने हेतु हीरा को निगल लिया तो भगवान शिव ने उसे तत्काल अपने त्रिशूल का प्रहार कर उस हीरा को संधि भाग पर ही स्तंभित कर दिया. महर्षि भृगु की प्राण रक्षा हो गयी. फिर योग विद्या से ऋषि ने उस हीरे को अतिकाल क्रिया के द्वारा शरीर से बाहर निकाला. तथा उसे उसकी सुरक्षा हेतु महर्षि दधीची को दे दिया. महर्षि दधिची एक स्वनियोजित मृत्यु विज्ञान के वरद ऋषि थे. उन्हें मृत्यु पास से मुक्ति मिल चुकी थी. उनको यह वरदान मिला था क़ि जब तक ऋषिवर स्वयं नहीं चाहेगें, उनकी मृत्यु नहीं होगी. इसी वरदान की पूर्ती हेतु त्रिदेवो ने उनके शरीर में कटिबंध एवं मेरुदंड के संधि भाग में उस हीरे को स्थिर कर दिया.
अंत में जब एक बार देवताओं को अपने शत्रुओ के विनाश हेतु एक अमोघ अस्त्र की आवश्यकता पडी तो त्रिदेवो ने बताया क़ि यदि महर्षि दधिची अपनी अस्थियाँ दान में देते है तो हीरे के संपर्क में आयी अस्थियाँ अस्त्र के रूप में वृत्रासुर का नाश कर सकती है. सब देवता मिलकर दधीची के पास गए. तथा प्रार्थना कर के तथा उन्हें प्रसन्न कर के उनसे उनकी हड्डियां मांग लिए. उस मेरु दंड के पार्श्व हिस्से से जो हीरे के संपर्क में सदा लगा रहता था, उन हड्डियों से विश्वकर्मा ने वज्र नामक हथियार बनाया. और उससे वृत्रासुर का विनाश हुआ. इसीलिए हीरा का एक दूसरा नाम वज्र भी है.
हीरे की अनेक प्रजातियाँ है. इनमें जो हीरा जाबाली देश या दक्षिण अफ्रिका के सूडान एवं मोजाम्बिया के मध्या वाले भाग में पाया जाता है, वह अत्यन तीव्र प्रभाव वाला, शुद्ध एवं अचूक प्रभाव वाला होता है. यह कई रंगों में मिलता है. इसमें जो लाल या सिंदूरी रंग का हीरा होता है, वह बहुत दुर्लभ होता है. हमारे भारत में मैसूर प्रांत में हीरा मिलता है. किन्तु यह बहुत अल्प प्रभाव वाला होता है. स्थान, रूप-रंग एवं गुण भेद से इसकी अनेक प्रजातियाँ है. आज कल नकली हीरे का प्रचालन बहुत ज्यादा हो गया है. जिसे एक अत्यंत जटिल रासायनिक परीक्षण के द्वारा ही पहचाना जा सकता है. सबसे बड़ी बात यह है क़ि जिस हीरे को तराश दिया जाता है उसके ज्योतिषीय प्रभाव नष्ट हो जाते है. यद्यपि उसमें निखार, सुन्दरता एवं चमक आ जाती है. किन्तु ग्रह दोष आदि के लिए वह अयोग्य हो जाता है. आज कल ऐसे हीरे सौंदर्य प्रसाधन के रूप में धड़ल्ले से प्रयुक्त हो रहे है.
यद्यपि वृषभ राशि वालो के लिए हीरा पहनने को कहा जाता है. किन्तु यह उचित नहीं है. कारण यह है क़ि एक ही नक्षत्र कृत्तिका मेष एवं वृषभ राशि दोनों में आती है. और हीरा कृत्तिका नक्षत्र वाले कदापि नहीं पहन सकते है. क्योकि मेष राशि वाले हीरा पहनते ही दुर्धर्ष विकृति के शिकार हो जाते है. इसी प्रकार मृग शिरा नक्षत्र भी वृषभ एवं मिथुन राशि दोनों में आती है. तथा मिथुन राशि वाले कदापि हीरा धारण नहीं कर सकते है. अन्यथा उनका व्यभिचारी होना तय है. और भी दोष हो सकते है. इस प्रकार हम देखते है क़ि वृषभ राशि वाले तो हीरा पहन सकते है. किन्तु केवल वे ही पहनेगें जिनका जन्म रोहिणी नक्षत्र में हुआ है. पूरे वृषभ राशि वाले नहीं पहन सकते है.

पंडित आर. के राय


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