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चन्द्रमा एवं विश्व

वेद विज्ञान
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Chandra Sharचन्द्रमा एवं विश्व
चन्द्रमा धरती का सबसे निकटतम ग्रह है. इसमें प्रबल चुम्बकीय शक्ति है. यही कारण है क़ि समुद्र के जल को यह बहुत ही ऊपर तक खींच देता है. और जब घूमते हुए धरती से कुछ दूर चला जाता है तो यही जल वापस पुनः समुद्र में बहुत भयानक गति से वापस आता है. जिसके कारण समुद्र में ज्वार भाटा एवं तूफ़ान आदि आते है. जिस तरह एक साधारण चुम्बक के दोनों सिरों पर चुम्बकीय शक्ति का केंद्र होता है. उसी प्रकार इसके भी दोनों सिरों पर चुम्बकीय शक्ति बहुत ज्यादा होती है. इसका आकार पूर्णिमा को छोड़ कर शेष दिनों में नाल चुम्बक के आकार का होता है. किन्तु पूर्णिमा के दिन जब इसका आकार पूरा गोल होता है, उस समय में इसमें भयानक आकर्षण शक्ति होती है. किन्तु यह शक्ति इसके चारो और की परिधि पर होने के कारण भयावह नहीं होती है. इसके विपरीत यह द्वितीया के दिन जब बिलकुल ही पतला होता है, बहुत ही हानि कारक होता है. कारण यह है क़ि इस दिन यह धरती से दूर होता है. तथा धरती के पदार्थो को बहुत दूर तक खींच देता है. और जब छोड़ता है तब बहुत ही ऊंचाई से उन पदार्थो के गिरने के कारण धन जन की बहुत हानि होती है. आप लोगो ने ध्यान दिया होगा क़ि अभी भी ग्रामीण इलाको में द्वितीया के चन्द्रमा को देखने की तथा उसे प्रणाम करने की होड़ या उत्सुकता लगी रहती है. और यह मान्यता है क़ि कम से कम हाथ में या शरीर के किसी न किसी हिस्से में सोने का कोई आभूषण हो तो और भी शुभ होता है. सोने की चमक दार सतह चन्द्रमा की किरणों को परावर्तित कर देती है. तथा उसकी परम लाभकारी ऊर्जा को शरीर में अवशोषित कर लेती है. परावर्तित करने की क्षमता तो दर्पण में ज्यादा होती है. किन्तु दर्पण विद्युत् या ऊष्मा का कुचालक होता है. इसलिए उससे केवल प्रकाश का परावर्तन ही हो पाता है. किन्तु चन्द्रमा की किरणों की लाभ कारी ऊर्जा शरीर को नहीं मिल पाती. इसीलिए शरीर के किसी भी अँग में सोने के आभूषण की उपस्थिति अनिवार्य बताई गयी है.
चन्द्रमा को सुधांशु भी कहा जाता है. पौराणिक मतानुसार चन्द्रमा पर अमृत पाया जाता है. इसके अलावा इसकी सतह पर अनेक अमोघ औषधियों की उपस्थिति भी है. संभवतः इसी को ध्यान में रखते हुए कहा गया है क़ि
“यातीति एकतो अस्त शिखरं पतिरोषधीनाम आविषकृतो अरुण पुरः सरः एकतो अर्कः.
तेजो द्वयस्य युगपद व्यसनोदयाभ्याम लोको नियम्यदिव आत्म दशांतरेषु.”
अर्थात एक तरफ तो औषधियों के एक मात्र स्वामी चन्द्रमा अस्ताचल पर जा रहे है. तथा दूसरी तरफ उदयाचल पर अरुण को आगे किये हुए सूर्य उदय हो रहे है. इस प्रकार ये दोनों अपनी अपनी इस अस्त एवं उदय की स्थिति से यह समस्त विश्व को बता रहे है क़ि यह संसार का उत्थान एवं पतन चक्र है.
शुक्ल पक्ष की द्वितीया लेकर पूर्णिमा तक चन्द्रमा निरंतर धरती के नज़दीक आता चला जाता है. तथा कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से लेकर अमावश्या तक चन्द्रमा धरती से दूर चलता जाता है. चन्द्रमा ज्यो ज्यो धरती से दूर चलता जाता है. यह पतला होता चला जाता है. उस समय इसके दोनों नुकीले हिस्से बहुत ही शक्ति शाली चुम्बक की तरह धरती की समस्त वस्तुओ को खींचता चला जाता है. संभवतः इसीलिए कृष्ण पक्ष और उसमें भी रात के समय और उसमें भी पाप राशि एवं लग्न में जन्म लेना थोड़ा अशुभ माना गया है.
ज्योतिष की थोड़ी भी जानकारी रखने वाले इसका सत्यापन इस तरह कर सकते है क़ि मानसिक रूप से विक्षिप्त बालक या मनुष्य की कुंडली देखें, आप को स्वयं पता चल जाएगा क़ि इसमें से अधिकाँश कृष्ण पक्ष के जातक है. कारण यह है क़ि मष्तिष्क के ज्ञानवाही तंतुओ के तरल परासवी द्रव्य सघन (concentrated) नहीं रह पाते है. ऐसी अवस्था में निर्धारित विलेयता (Velocity) के अभाव में ज्ञानसंवेदना शून्य हो जाती है.
यही  स्थिति प्राकृतिक परिवर्तन के साथ भी होता है. यदि आकाश में चन्द्रमा का एक नुकीला भाग नीचे हुआ तो वर्षा सामान्य होगी. यदि दोनों नुकीले भाग पृथ्वी की तरफ झुके हुए हो तो वर्षा आवश्यकता से ज्यादा होगी. यदि दोनों ऊपर की तरफ हुए तो सूखा पडेगा. क्योकि ये नुकीले हिस्से जिस दिशा में होगें उस दिशा की समस्त वस्तुओ को आकर्षित करेगें. यदि दोनों हिस्से ऊपर की तरफ हर तो समस्त वाष्प या बादलो को अपने में समेट लेगें. तथा समुद्र का पानी भी ऊपर नहीं उठ पायेगा. यदि ऊपर नहीं उठेगा तो सूर्य उसका पूरा वाष्पीकरण नहीं कर पायेगा. और यदि वाष्पीकरण नहीं होगा तो वर्षा का कोई मतलब ही नहीं है. इसीलिए कहा गया है क़ि-
“सहस्र गुणमुत्श्रश्ते आदत्ते ही रसम रविः”
अर्थात हजार गुना देने के लिए ही रवि धरती से ऱस अवशोषित करता है.
इसके अलावा यदि सूर्य मकर से मिथुन पर्यंत रहता है. तथा उस अवस्था में यदि चन्द्रमा के दोनों नुकीले हिस्से नीचे की तरफ है. तो सूर्य भी धरती से निकट रहता है. और इस प्रकार चन्द्रमा अपने दोनों नोकों से जल ऊपर खींचेगा तथा सूर्य अपनी प्रचंड किरणों से उनका वाष्पीकरण करेगा. तथा जब सूर्य जब अपने भ्राता चन्द्रमा के घर घर अर्थात कर्क राशि में होते हुए अपने घर अर्थात सिंह राशि में विश्राम करते हुए दुबारा फिर से धरती से दूर जाने लगेगा तो वर्षा शुरू हो जायेगी. क्योकि जो भाप अंतरिक्ष में एकत्र हुआ है, सूर्य के दूर जाते ही ठंडा होकर धरती पर गिरना शुरू हो जाएगा. कहा भी गया है क़ि 14  जनवरी या मकर संक्रांति से दिन बड़ा होने लगता है. दिन बड़ा होगा तो ज्यादा देर तक सूर्य की किरणे धरती के ऱस को अवशोषित करेगी, और ज्यादा भाप आकाश में जाएगा. संलग्न चित्र से संभवतः यह आशय कुछ स्पष्ट हो जाय.
कुंडली में जो बालक ऐसी स्थिति में जन्म लेगा उसका भी मानस पटल इसी अनुपात में प्रभावित होगा. अर्थात बुद्धि का विकाश या ह्रास होगा. इसके अलावा रोग आदि की भी स्थित स्पष्ट होगी. या जिस भाव में चन्द्रमा एवं सूर्य की ऐसी स्थिति बनेगी उसकी हानि या वृद्धि होगी.
उदाहरण के लिए यदि किसी की कुंडली में पांचवे भाव में सूर्य हो तथा चौथे भाव में चन्द्रमा हो और ये दोनों मीन से लेकर सिंह राशि के मध्य ही हो तो वह बालक कुशाग्र बुद्धि, उच्च संस्कार से उक्त संतान एवं देश विदेश में ख्याति अर्जित करने वाला होगा. कारण यह है क़ि ऐसी अवस्था में मष्तिष्क के परासवी द्रव्यों का सघनी करण एवं शोधन दोनों ही सूक्षमता एवं गहनता से होता रहेगा. क्योकि जितने द्रव्य चन्द्रमा के द्वारा उद्वेलित होगे, सूर्य के द्वारा उतने का सघनी करण एवं शोधन होता चला जाएगा. इसके विपरीत यदि सूर्य तुला राशि में हो तथा चन्द्रमा मीन में हो तो ऐसी अवस्था में इनकी चौथे भाव की उपस्थिति माता पिता एवं धन संपदा के लिए हानि कारक होगी. कारण यह है क़ि न तो चन्द्रमा का प्रभाव मष्तिष्क पर पडेगा और न तो सूर्य के द्वारा इसका कोई शोधन या सघनीकरण होगा. क्योकि चंद्रामा सूर्य से बहुत ही दूर जा चुका होगा.
ज्योतिषाचार्य ज़रा ध्यान से देखें ऐसी स्थिति में सूर्य की स्थिति चन्द्रमा से आठवें होगी. जिसे ज्योतिष में बहुत ही अनिष्ट कारक बताया गया है. इसके पीछे यही वैज्ञानिक कारण है.

पंडित आर. के. राय

Email- khojiduniya@gmail.com

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