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गम पीती हूँ तेरे लिए

वेद विज्ञान
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जी हाँ, और अपने कलेजे के टुकडे स्वरुप बेटी को नितांत अपरिचित घर भेज ऐसे बदहवास एवं सब कुछ लुट जाने की भाँती कंगाल बने माता पिता को छोड़ वह बेटी अपने घर पहुँचने की जल्दी मचाये डोली के कंहारों को कातर स्वर में करुण क्रंदन करते हुए कहती है-

धीरे चलहु ना मनवा भारी कंहरा भैया हो.
एक त में भारी मोरे माँगी के सिन्दुरावा रामा
दूजे में भारी झीना सारी काँहरा भैया हो.
धीरे चलहु ना मनवा भारी कंहरा भैया हो———–
दुवारा पर रोवत होइहें सखिया सहेलिया रामा
घरावा रोवेली महतारी काहाँरा भैया हो.
धीरे चलहु ना मानावा भारी काँहारा भैया हो.——–
कुहुकती होइहें मोरी छोटकी बहिनिया रामा
रोवत होइहें भईया पुका फारी काँहारा भैया हो.
धीरे चलहु ना मानावा भारी काँहारा भैया हो.———
छाती पीटी रोवत होइहें दुलरी भऊजिया  रामा
बाबूजी के होई का ओहार काँहारा भैया हो.
धीरे चलहु ना मानावा भारी काँहारा भैया हो.—-

तपती रेत में चलते हुए कँहार जब उस बाला के विलाप से और भी उतप्त हो जाते है. तो डोली को किसी बागीचे में किसी पेड़ की घनी छाया में उतार कर रख देते है. तथा अपने अपने अंगोछे बिछाकर सुस्ताने के विचार से लेट जाते है. एक कँहार बोलता है-
“बेटी अब तो तुम चुप हो जाओ. यही दुनिया की रीति है. यह बेटियाँ ही तो है. जो दो अपरिचितो को जोड़ कर एक करती है. यदि बेटियाँ न हो तो किसी का किसी से कोई सम्बन्ध ही न हो. सब एक दूसरे एक लिए सदा अपरिचित ही रह जाय. कितना बड़ा स्थान है एक बेटी का मानव प्राणी के समाज में. अब तो बिटिया तुम्हें अपने माता-पिता एवं भाई-कुल की मर्यादा को भी बढ़ाना है. तथा अपने श्वसुर कुल को यह दिखाना है क़ि तुम्हारा जन्म एक ऐसे संस्कारी परिवार में हुआ है जिसमें यही सिखाया गया है क़ि एक बेटी, बेटी से ज्यादा बहू, बहू से ज्यादा मा तथा मा से ज्यादा कुल रक्षिणी की गरिमा के प्रति सचेत एवं क्रिया शील है.”
दूसरा कँहार उसकी बातो पर हामी भरते हुए कहता है क़ि –
“जाने दो बेटी अब तुम्हारा अन्न जल अपने पिता के यहाँ इतने ही दिन का था. अब अपने कर्म के माता पिता के साथ धर्म के माता-पिता की देख रेख करनी है. “
इस तरह परस्पर बात करते कँहार जब सुस्ता लेते है तो डोली उठाते है. तथा बड़ी ही शीघ्रता के साथ चल देते है. डोली के अन्दर वैसे ही विलाप करते हुए वह बेटी चली जा रही है.
वह कैसे मा बाप होगें जो अपनी बेटी की ससुराल दुष्ट लोगो से भरा, पति क्रूर एवं समाज निर्दयी ढूंढेंगें? सब चाहते है क़ि उसकी बेटी की ससुराल बहुत धनी हो. खाने पीने की हर सामग्री उपलब्ध हो. अच्छा घर हो. समाज में ससुराल वालो की प्रतिष्ठा हो. उस घर में बेटी रानी बन कर रहे. किन्तु सब सोचे के मुताबिक़ तो होता नहीं है. बस ऐसा ही उस बद किस्मत बेटी के साथ होता है. अचानक अकाल पड़ जाता है. भयंकर संक्रामक बीमारी से पशु मर जाते है. घर में अन्न का दाना भी नहीं है. लड़की का भाई अपनी बहन के यहाँ घूमने फिरने आता है. परम्परा के अनुसार जब भाई या बाप बेटी के यहाँ जाता है तो उसे बेटी के लिए कुछ न कुछ लेकर ही जाना पड़ता है. जब वह अपनी बहन के घर पहुंचता है. भाई के नाश्ता जलपान के लिए तो घर में कुछ भी है ही नहीं. वह अपने भाई के द्वारा लाये गए सत्तू एवं गुड को ही एक में गूंथ कर लाती है. और भाई को समझते देर नहीं लगती है. आँखों से बेशुमार आंसू बहने शुरू हो जाते है. भाई कुछ भी खाने से इनकार कर देता है. तथा चलने के लिए उतावला हो जाता है. तब रोते हुए बहन कहती है-

कईल बियाहावा त देखल ना भगिया हो बंहिया छोड़ाई काहावाँ चलल हो भईया.
अईलीं ना अपने तू डोलिया चढ़वल हो कन्हियाँ बिठाई बिदा कईल हो भईया.
आजू देखि बहिना के भरल बिपतिया हो मुंहावां चोराई चली दिहला ए भईया.
अपने त चोरी छुपे जईब बाबा घारावा हो बहिना के कवन रहतिया हो भईया.
घरे जाई मुंहावां लुकाई तुहूँ रोइब त लेब जुडाई तू करेजावा हो भईया.
बहिना के कवन आधार तुहूँ दिहल जे छछनत बीती दिन रतिया हो भईया.

लेकिन हाय रे एक बेटी स्वरूपा औरत का कलेजा!!! इतने पर भी उसे अपने श्वसुर कुल के सम्मान का पूरा पूरा ध्यान है. कलेजे में बरछी से भी तेज धार वाले दुर्भाग्य से छेद होने के बावजूद भी वह अपने भाई को रोते रोते हिदायत देती चली जाती है. वह अपने भाई से कहती है-

ई दुःख जाई जनि सखियाँ से काहीह जे अँखियाँ हमके चिढ़यिहनी हो भईया.
ई  दुःख जाई जनि भाभी आगे कहीह जे अयिले गईले ताना मरिहनी हो भईया.
ई  दुःख जाई जनि बहिना से काहीह जे सिरावा पटकी लोर ढरिहनी हो भईया.
ई दुःख जाई जनि आमा से कहिह जे छतिया के पिटी हिया फरिहनी हो भईया.
ई दुःख जाई तू हूँ बाबा आगे कहिह हो जेई बाबा कयिलनी मोर बियाहावा ए भईया.

समस्त दुखो के पहाड़ से दबी यह महिला फिर भी अपने सामाजिक मान मर्यादा तथा अपने पितृकुल की उच्चता को बरकरार रखने के साथ ही अपने श्वसुर कुल की महत्ता को भी ऊंचा रखने के लिए कृत संकल्प है. भगवान ने कितना बड़ा दिल इन औरतो को दिया है? बेदर्दो के दर्द को भी सर्द कर सारे जहाँ के गम को खुशी से पी जाने की क्षमता रखने वाली, परमेश्वर की इस अनमोल एवं अमर कृति को प्रणाम है.

पंडित आर. के. राय



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