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ग्रह दोष एवं औषधि

वेद विज्ञान
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ग्रह दोष एवं औषधि
ग्रहों के विकिरण से उत्पन्न दोष को शांत करने के लिए प्रकृति ने बहुत सी औषधियां एवं वनस्पतियाँ प्रदान की है. इन्हीं वनस्पतियों से औषधियां भी बनाती है, तथा इन्ही वनस्पतियों एवं अन्य पदार्थो से अत्यंत सूक्ष्म विश्लेषण एवं वर्गीकरण के पश्चात यंत्र भी बनते है. जैसे यदि गुरु लग्न में अशुभ है तो फल लगे केले की प्राथमिक जड़ जो मूल रूप से सीधे ज़मीन में धसती चली जाती है, उसे भृंगराज (भेंगरईया), पत्थर चट्टा, सनई एवं पान के पत्ते के ऱस में कूपी पक्व विधि से पकाकर पैर एवं हथेली पर रात को सोते समय लेप करने से बाधा दूर हो जाती है.
यदि गुरु दूसरे भाव में अशुभ है तो बेल, कपास, आमला, तरैया एवं बकावली के बीज पीस कर हल्दी, अमलतास, मगही बेर एवं सिफलासा के ऱस में कूपी पक्व कर उपरोक्त प्रकार से केवल सोते समय लेप लगाना चाहिए.
यदि गुरु तीसरे भाव में अशुभ हो तो मेहंदी, निरुजा, बगरैना एवं गोडखुल के पत्ते में पीपल एवं सहिजन के पत्ते पीस कर उपरोक्त प्रकार से लेप करने से शमन हो जाता है.
यदि गुरु चौथे घर में अशुभ हो तो किसमिस, दिलदार, मुलेठी, दालचीनी को एक में घोटकर घी में अच्छी तरह पकाएं. उसके बाद नौज़बां, कासीफल, बेरा, एवं सतानान्दी चावल पीस कर उसमें मिलाएं. तथा सबका आठ आठ रत्ती की गोली बना लेवे. रात को सोते समय उसे हल्दी एवं दूध के गर्म सत के साथ ग्रहण करें. बाधा शांत होती है.
यदि गुरु पांचवें घर में अशुभ हो तो कच्चे गन्ने का ऱस, सफ़ेद दूर्वा, शतावरी, लटजीरा, सुहागा एवं मनकील सब को एक में घोटकर, आमले को इसके साथ हल्की आंच पर पकाएं. जब जलने की सी बदबू आने लगे, तो सफ़ेद मुनक्का, छुहारा, अतरौरा, बहनीक एवं पञ्चनखा को बारीक पीस कर उसमें मिला लें. आवश्यकतानुसार पति पत्नी दोनों या अकेले प्रति दिन के हिसाब से एक छटांक रात कप सोते समय हलके गर्म जल से ग्रहण करें. पांचवें भाव से सम्बंधित गुरु की बाधा शांत होगी.
यदि गुरु छठे भाव में अशुभ हो तो मकोय, बंफल, बहेड़ा, बांस के नवजात कोपल का अंकुर, अगरीठ, दूदला एवं भटकटैय सबको पीस कर माजूफल के चूरन में मिला लेवे, उसके बाद चाय की हरी पत्ती, अरंडी की हरी पत्ती, अगूला, एवं नलकंद की हरी पत्ती सबको आग की आंच पर झुलस लेवे. तथा इन्ही पत्तियों में लपेट कर इस चूरन को किसी मिट्टी के बर्तन में रख कर हाथ भर नीचे ज़मीन में गड्ढे में गाद देवे. एक सप्ताह बाद उसे जमीन से निकाले तथा एक छटांक रोज के हिसाब से हलके गुनगुने जल में दाल कर स्नान करे. बाधा दोर्र होती है.
यदि गुरु सातवें घर में अशुभ हो तो त्रिपत्रिका, शामलजीरा, नागरमोथा, विभावरी, एवं आकाशभंवर को एक में मिलाकर उनके चौगुने मात्रा पानी में अच्छी तरह पकावे, जब लगभग पानी सूख जाय तो उसे ठंडा कर लेवे. उसमें पके कद्दू, नकजूला, सिवार, शलज़म को बारीक पीस कर मिला लेवे. आवश्यकतानुसार गर्म पानी में एक पाँव मिलाकर उससे स्नान करे. बाधा दूर होती है.
यदि गुरु आठवें भाव में अशुभ हो तो शमी, मदालसा, अडूलसा, बकौना, बडियारा एवं पाकड़ के नवजात पत्तो को एक में पीस लेवे. उसमें सरसों, तिल, चमेली के बीज एवं अरघनी के बीज अलग से पीस कर सरसों के तेल में डाल कर पकावे. जब पक कर मिश्रण लाल हो जाय तो उसे उतार कर ठंडा कर लेवे. तथा उससे उबटन के सामान पूरे शरीर पर दिन में दो या तीन बार लगावे. तथा रात को सोने से पहले अच्छी तरह बिना साबुन के स्नान कर लेवे. आठवें भाव के गुरु का दोष दूर होता है.
यदि नवें भाव में गुरु अशुभ हो तो भांग के बीज को नागफनी के पूरे पके लाल फूल के ऱस में डाल कर एक जगह रख ले. रत्ती के रंगीन पके बीज, करेजनी के बीज, महुवा के बीज (कोइना) तथा नीम के पके बीज एक जगह कूट कर रख ले. प्याज के ऱस में दोनों को अलग अलग पकावे, और जब पाक जाएँ. दोनों को मिलाकर एक कांच की शीशी में भर कर रख ले. सोते, उठते, कही जाते या सुबह शाम इसका टीका ललाट पर लगाएं. बाधा दूर होगी.
दशवें भाव के सम्बन्ध में ऋषियों ने जो नाम बताये है उनमें थोड़ी दुविधा है. जैसे आम्रफल. अब पता नहीं यह मरास है या आम. इसी प्रकार शीतफल पता नहीं सीताफल है या शीतक (मूली). इस प्रकार थोड़ी स्पष्टता का अभाव झलकता है. फिर भी आम की जगह अमरस तथा शीतक की जगह सीताफल ही ज्यादा यथेष्ट लगता है. अमरस, सीताफल, पत्रकंटकी (गुम), शिलाजीत, ताम्रपर्णी, महताप, बिलकोय, अपर्णखा, विश्वऱस, विशाख प्रीती सब सम मात्रा में लेकर एक जगह कूट-पीस कर रख ले. एक बार का कूटा सत्ताईस दिन ही चलेगा. इस प्रकार एक सौ आठ दिन तक लगातार दिन में एक बार यह मिश्रण एक पाँव पानी में डाल कर स्नान करे. दशम भाव का अशुभ गुरु शांत होता है.
एकादश भाव के गुरु के अशुभ की शान्ति मात्र बंसलोचन का टीका लगाने से शांत होता है.
द्वादश भाव का गुरु यदि अशुभ हो (द्वादस भाव में वैसे कोई भी भी ग्रह सामान्यतया अशुभ ही फल देता है) तो अगरु एवं तगरु को एक में पीस ले. नीम का आसव ( जो स्वयं के नीम के तने के फटने से टपक कर निकले), पञ्चमूल का आसव, द्विरंधा, काकातुआ, भिनैटा, गोखरू एवं शतपादपत्र का कूपी पक्व तैयार कर ले. तथा उसमें ऊपर का मिश्रण मिलाकर पूरे शरीर में उबटन की तरह लगावें तथा ढाई मुहूर्त के बाद स्नान कर ले. ऐसा तीन माह तक करे. बारहवें घर के गुरु का दोष शांत हो जाता है.
विशेष- यदि गुरु के ठीक सामने कोई भी अशुभ ग्रह हो तो उपरोक्त योगो में परिवर्तन करना पड़ता है. जिसका विवरण पाराशर संहिता, वृहत्संहिता, ग्रहभैषज्य, ग्रहनैरुज्यविपाक एवं महा पीतपलितम में देखा जा सकता है.
इस प्रकार प्रत्येक ग्रह की अशुभ स्थिति के निवारण हेतु प्रकृति के विशाल एवं समृद्ध अंचल में बहुमूल्य एवं अचूक औषधियां उपलब्ध है.
पंडित आर. के राय
Email- khojiduniya@gmail.com

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