लग्न कुंडली का केंद्र होता है.: पांचवे भाव का विचार
वेद विज्ञान
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लग्न कुंडली का केंद्र होता है.: पांचवे भाव का विचार
(पिछले लेख से आगे) जिस तरह हमारे सौर मंडल में सारे ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते है. ठीक उसी तरह कुंडली में सारे ग्रह एवं भाव लग्न के आश्रित होकर उसीका चक्कर लगाते रहते है. कुंडली में ग्रहों को एक निश्चित स्थान पर दर्शाया जाता है. ये सब वही स्थान होते है जो जन्म के समय अंतरिक्ष में उस जन्म स्थान से ग्रह चमक रहे थे. कोई भी ग्रह किसी स्थान पर मुख्य रूप से तीन तरह से प्रभाव डालता है. एक तो उसकी अपनी सीधी किरण होती है. दूसरी तरह से उसकी किरणे किन्ही अन्य ग्रहों की किरणों से मिल कर पड़ती है. तथा तीसरी तरह से वह अपना पूरा या आंशिक किरण डालता है. जैसा क़ि संलग्न चित्र से स्पष्ट हो रहा है. मनुष्य के शरीर पर एक तो चन्द्रमा की प्रत्यक्ष किरण पड़ रही है. दूसरी तरफ चन्द्रमा की किरणों में सूर्य की भी किरणे मिल जा रही है. इस मिश्रित किरण का अपना अलग प्रभाव होगा. तीसरे जो चन्द्रमा की प्रत्यक्ष किरण पड़ेगी वह यदि पूरी पड़ रही है तो उसका प्रभाव अलग होगा तथा जो आंशिक रूप से पड़ेगी उसका प्रभाव अलग होगा. इस प्रकार एक प्राणी पर किसी भी ग्रह का प्रभाव तीन तरह से होता है. अभी हम यह देखते है क़ि इनमें किस प्रकार की किरण का प्रभाव ज्यादा होगा. जैसे यदि चन्द्रमा की किरण कुछ अंशो में ही पड़ रही है. या चन्द्रमा चार-पांच अंशो पर ही चमक रहा है. तथा उसकी किरण बीस अंशो पर स्थित सूर्य की किरणों से मिश्रित हो रही है. तो मिश्रित किरण का प्रभाव ज्यादा होगा. यदि चन्द्रमा बीस अंशो पर स्वयं है. तथा सूर्य दो-चार अंशो पर है तो चन्द्रमा की स्वतंत्र किरणों का प्रभाव ज्यादा होगा. या केवल बिना किसी मिश्रण के चन्द्रमा की ही किरणें पड़ रही है तो केवल चन्द्रमा की ही किरणों का प्रभाव होगा.
अभी यह चन्द्रमा केवल बिना किसी मिश्रण के अपनी ही किरणे डाल रहा है. तो वह जिस भाव में होगा. उस भाव का फल देगा. यदि सूर्य की किरणों के साथ हुए मिश्रण की किरणे पड़ रही है. तो सूर्य यदि कम अंशो में हुआ तो चन्द्रमा जिस भाव में है उसका तो फल मिलना ही है, जिस भाव में सूर्य होगा उस भाव के फल को भी चन्द्रमा ही प्रभावित करेगा, सूर्य नहीं. इसके विपरीत यदि सूर्य की अधिक किरणे चन्द्रमा के साथ मिश्रित हो रही है तो सूर्य का प्रभाव उस भाव पर चन्द्रमा से ज्यादा होगा जिस भाव में चन्द्रमा बैठा होगा.
इसके अलावा एक अत्यंत महत्त्व पूर्ण प्रभाव और पड़ता है. जैसे चन्द्रमा यदि धनु राशि में पांचवे बैठा है. तो धनु राशि धरती के 241 अंशो पर अवतरित होती है. धरती का यह भाग बीच में उठा हुआ होता है. और इस तरह से चन्द्रमा की किरणे इस राशि द्वारा अवशोषित नहीं हो पाती है. तथा इसकी किरणे परावर्तित होकर सीधे ग्यारहवें भाव पर पड़ती है. तो ऐसे चन्द्रमा का प्रभाव पांचवे भाव के लिए शून्य हो जाएगा. किन्तु यदि ग्यारहवें भाव में सूर्य अधिक अंशो में बैठा है तो वह चन्द्रमा की किरणों के साथ मिश्रित होकर वापस पुनः पांचवे भाव पर पड़ता है. तथा उसके प्रभाव से संतति सुख प्राप्त होता है.
इसके विपरीत यदि कोई कज्जली कृत (कार्बनायिज्ड) या गहरे रंग वाला ग्रह जैसे शनि, मंगल या राहू पांचवें भाव में बैठा है तो वह ग्यारहवें भाव में बैठे सूर्य की किरणों को अवशोषित कर लेता है. क्योकि उसका सतहीय भाग सूर्य की किरणों का परावर्तन नहीं कर पाता है. इस प्रकार इन ग्रहों द्वारा पांचवे भाव के लिए अशुभ फल प्रदान किया जाता है. अतः यह भी देखना पड़ता है क़ि उस भाव में किस रूप-रंग एवं आकार-प्रकार की राशि स्थित है.
किन्तु यहाँ एक बात और देखनी पड़ती है. यदि पांचवे भाव में जैसा क़ि ऊपर मैंने बताया है, धनु राशि होगी तो अपनी सतहीय बनावट के कारण वह इन ग्रहों द्वारा अवशोषित किरणों को संकलित नहीं कर पायेगी. बल्कि वे किरणे बिखर जायेगी. और इस प्रकार इस भाव का ज्यादा शुभ फल ही प्राप्त होगा. किन्तु यदि ग्यारहवें भाव में भी कोई कज्जली कृत ग्रह ही होगा, तो पांचवें भाव में बैठा ग्रह कोई प्रकाश संकलित नहीं कर पायेगा. और अपने स्वयं के दुष्प्रभाव से पांचवे भाव के लिए हानिकारक फल ही देगा.
हम ऊपर के ही उदाहरण को लेते है. पांचवे भाव में धनु राशि है. उसमें मंगल बैठा है. मंगल के द्वारा प्रकाश परावर्तन की क्षमता मात्र 48 प्रतिशत है. अर्थात सूर्य की अपेक्षा यह 52 प्रतिशत कम परावर्तन करता है. और दूसरी तरफ ग्यारहवें भाव में शुक्र ग्रह बैठा है. इसके प्रकाश परावर्तन की क्षमता 79 प्रतिशत होती है. अर्थात यह सूर्य की अपेक्षा 29 प्रतिशत कम प्रकाश परावर्तन करता है. दोनों ही एक दूसरे को सीधी दृष्टि से देख रहे है. अतः शुक्र की क्षमता ज्यादा होने के कारण वह 31 प्रतिशत ज्यादा विकिरण से पांचवें भाव को प्रभावित करेगा. किन्तु जैसा क़ि विदित है, धनु राशि का सम्मुख वाला भाग उठा हुआ है. अतः शुक्र द्वारा प्रक्षिप्त किरण संचित होने की जगह फ़ैल जायेगी. तथा उसका प्रभाव क्षीण हो जाएगा. किन्तु मंगल का सतह प्रकाश अवशोषक होने के कारण उसका प्रभाव ज्यो का त्यों रह जाएगा. अतः शुक्र की क्षमता ज्यादा होने के बावजूद भी पांचवा भाव मंगल के दुष्प्रभाव से पीड़ित होगा. लेकिन यही अगर कोई नीचे धंसे हुए सतह वाली राशि जैसे कन्या, मकर, वृश्चिक आदि होती तो मंगल एवं शुक्र दोनों का प्रचुर प्रभाव पड़ता. तथा मंगल का अशुभ प्रभाव भी शुभ प्रभाव में बदल जाता. तथा ऐसे व्यक्ति को विद्या, संतान सुख एवं यश-सम्मान मिलता.
इस प्रकार यह उदाहरण लग्न से पांचवें भाव का है. मंगल की किरणे स्यूडोडेर्मीथिनोल लियोनोक्सीन जिसे शास्त्रीय भाषा में ऊर्म्यूर्ज़ा कहा गया है, से भर पूर होती है. तथा शुक्र की किरणों में लिथियोथैलासिनायिड जिसे शास्त्रीय भाषा में पूर्वंग कहा गया है, की अधिकता होती है. ऐसा कहा गया है क़ि जिस किसी भी व्यक्ति की कुंडली में चाहे किसी भी भाव में मंगल एवं शुक्र क्यों न बैठे हो, यदि परस्पर सम सप्तक दृष्टि रखते है, तो उसे संतान अवश्य प्राप्त होती है. शायद शास्त्र के इस कथन के पीछे भी यही वैज्ञानिक कारण होगा.
किन्तु यह सब परिणाम लग्न से आश्रित पांचवें भाव से सम्बंधित होगा. क्योकि भावो का निर्धारण लग्न से ही होता है.
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