Menu
blogid : 6000 postid : 1166

क्या भाव या घर में बैठा ग्रह फल देता है?

वेद विज्ञान
वेद विज्ञान
  • 497 Posts
  • 662 Comments
Demo Kundliक्या भाव या घर में बैठा ग्रह फल देता है?
ज्योतिष महाविज्ञान के जटिल किन्तु सशक्त सिद्धांतो का मनन एवं चिंतन करने के लिए आवश्यक श्रम से घबराने वाले इसके सामान्य एवं विशेष गुण-दोष में कोई अंतर या इसके उल्लेख या इसके प्रयोग की कोई आवश्यकता नहीं समझते है. और एक किसी सिद्धांत को सर्वकालिक एवं हर जगह के लिए उचित मान कर उसी का प्रयोग करते चले जा रहे है. जिससे ऐसा लगता है क़ि आने वाले कुछ दिनों में इस महाविज्ञान के ठोस, आवश्यक एवं प्रामाणिक नियम एवं सिद्धांत और भी ज्यादा गूढ़, रहस्यमय एवं अनबूझ पहेली बन जायेगें.
किसी भी कुंडली में किसी भाव में बैठा ग्रह आवश्यक नहीं है क़ि फल देने वाला होगा. हम एक उदाहरण के द्वारा इसे देखते है. संलग्न कुंडली कम्प्युटर एवं हस्त निर्मित दोनों ही तरह से सामान है. केवल ग्रहों के भुक्तान्शो में अंतर है. इसमें लग्न कर्क है. लग्न में ही गुरु बैठा है. सूर्य, चन्द्रमा, मंगल, गुरु, शुक्र एवं शनि सभी उच्च राशियों में बैठे है. बुध भी अपनी राशि में बैठा है. जन्म के समय लग्न 15 अंश 28 कला पर है. इस जातक को संसार के समस्त सुख एवं यश-कीर्ति प्राप्त होनी चाहिए. किन्तु ऐसा क्यों नहीं हुआ?
जन्म के समय चन्द्रमा 2 अंश 22 कला पर है. यह मंगल से पांचवें एवं शनि से आठवें है. तथा सूर्य के सन्निकट है. अतः इसका पुरो भाग एक तो सूर्य से प्रकाशित नहीं है. दूसरे किसी भी ग्रह की कोई किरण इस पर नहीं पड़ रही है. तीसरी बात यह क़ि ग्यारहवें भाव में होने के कारण इसका 360 अंशो में से 300 अंश भुक्त है. और सबसे बड़ी बात यह क़ि जन्मवृत्त के वृत्तार्द्ध के अपर भाग में स्थित गुरु का क्षेत्र (मीन राशि) स्वयं ही अधर सतह के अति शीतल ठोस भाग पर आधारित है. इसके स्वामी गुरु की भव्य किरणे अप्रकाशित ग्रह राहू एवं आंशिक रूप से प्रकाशित ग्रह शुक्र के द्वारा अवशोषित हो जा रही है. और इस प्रकार जातक पर उसकी किरणों का प्रक्षेपण नहीं हो पा रहा है.
12 मार्च 2012 को यह व्यक्ति अपना अंतिम प्रयास भी कर लिया. तथा असफल ही रहा. अपने इन्ही प्रयासों के कारण इसने अपने पूर्व संचित एवं बहुत अच्छी तरह से चल रहे व्यवसाय पर ध्यान नहीं दे पाया. और इस प्रकार न तो वह अपना लक्ष्य जो भारत सरकार से एक ठेका प्राप्त करने का था, वही पा सका. और न तो वह अपने पूर्व संकलित-संचालित व्यापार-व्यवसाय को ही संभाल सका. आज उसकी स्थिति क्या है, उसका दयनीय वर्णन यहाँ पर क्या किया जाय?
चूंकि  इस कुंडली में ज्योतिष के सामान्य नियमो का उल्लंघन हो जा रहा है. कारण यह है क़ि इस कुंडली में तीन-तीन पञ्च महापुरुष योग बने हुए है. भाग्येश, सुखेश, धनेश एवं राज्येश आदि सभी उच्च ग्रहों में स्थित है. यहाँ तक क़ि बारहवें भाव का स्वामी भी उसी भाव में ही बैठा है. फिर इन सामान्य नियमो के अनुसार इसे जीवन में कभी असफल होना ही नहीं चाहिए. किन्तु ऐसा नहीं हुआ. कारण यह है क़ि सारे शुभ ग्रह गुरु, शुक्र एवं चन्द्रमा भावो में अपने उस सतह के आधार पर बैठे है जो अप्रकाशित है. तथा इनका प्रकाशित भाग ऊर्ध्वगामी प्रकाशो का विकिरण कर रहा है. परिणाम स्वरुप इन ग्रहों की उच्चता का लाभ जातक को कुछ भी नहीं मिल पा रहा है. इसके विपरीत इन भावो का मूल फल भी प्रदूषित हो जा रहा है.
यदि ये ग्रह उच्च नहीं होते और केवल अपने प्रकाशित तल से ही भावो में बैठे होते तो कोई संदेह नहीं क़ि यह जातक यशस्वी एवं सफलतम व्यक्ति होता. देखें माओ त्से तुंग की कुंडली. क्योकि ऐसी स्थिति में गुरु अपने चिर शत्रु शुक्र की राशि वृषभ में भी रहता तो अपने प्रकाशित पृष्ठ से बैठा होता. तथा चन्द्रमा उच्च होने के बजाय केवल अपने घर में भी होता तो इसके द्वारा अपने 60 प्रतिशत किरणों का प्रक्षेपण जातक के ऊपर होता. तो आज इसकी स्थिति कुछ और होती. किन्तु ऐसा नहीं हुआ.
ग्रहों के आकार-प्रकार, सतहीय बनावट, रूप-रेखा एवं गुरुत्व शक्ति आदि का विशद विवरण प्रसिद्ध गणितज्ञ रामानुजाचार्य (प्रथम) के “खेटावल्लरीयम” द्युतिमाल के ‘नक्षत्रवलय” एवं अति आधुनिक विज्ञान के नवीन उपकरणों द्वारा प्राप्त इन ग्रह-नक्षत्र आदि प्रकाश पिंडो की आकृति-प्रकृति की विकीपीडिया में देखा जा सकता है. इनमें स्पष्ट रूप से बताया गया है क़ि किस नक्षत्र या ग्रह का कौन सा भाग कितना गहरा, काले बर्फ से ढका हुआ, उत्तल-अवतल एवं कितना भाग प्रकाश परावर्तन में सक्षम है. इस प्रकार इन सूक्षम तथ्यों को ध्यान में रखने के बाद ही ग्रहों के भाव एवं दृष्टि के तारतम्य को जाना जा सकता है. केवल किसी भाव में ग्रह के बैठ जाने मात्र से या दृष्टि मात्र से उसका प्रभाव या फल नहीं मिलता है.
महर्षि पाराशर ने हम वर्तमान ज्योतिषियों की इसी प्रवृत्ती का आंकलन कर के स्पष्ट चेतावनी दे डाली है.

“गणितेषु प्रवीणों यः शब्दशास्त्रे कृतश्रमः.

न्यायविदबुद्धिदेशज्ञ दिक्कालज्ञो जितेन्द्रियः.

ऊहापोहपटुर्होरास्कंधश्रवणसम्मतः.

मैत्रेय सत्यताम याति तस्य वाक्यं न संशयः.

(बृहत् पाराशर होराशास्त्र अध्याय 43 श्लोक 49 एवं 50.)

पंडित आर. के. राय

Email- khojiduniya@gmail.com

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply