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सूर्य कुंडली एवं चन्द्र कुंडली-सूर्य ग्रहण एवं चन्द्र ग्रहण.

वेद विज्ञान
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सूर्य कुंडली एवं चन्द्र कुंडली-सूर्य ग्रहण एवं चन्द्र ग्रहण.
आप ने  ध्यान दिया होगा कि कुंडली में एक चक्र लग्न कुंडली के नाम से बनाया जाता है. तथा दूसरा चक्र चन्द्र कुंडली के नाम से. क्या आप ने सोचा है ऐसा क्यों? शेष ग्रहों क़ी कुंडली क्यों नहीं बनायी जाती है? कुछ लोग तर्क देते है कि चन्द्र कुंडली राशि कुंडली है. तथा सूर्य कुंडली लग्न कुंडली है. तों क्या एक व्यक्ति पर सिर्फ इन्ही दो ग्रहों का प्रभाव पड़ता है?
भारतीय ऋषियों एवं महर्षियों के द्वारा अथक प्रयास एवं चिंतन मनन के द्वारा जिस व्यापक, सार्वभौमिक एवं सार्वकालिक ज्ञान सिद्धांत को प्रामाणिकता के साथ प्रतिपादित किया, केवल इन्ही कुछ कारणों से आज इतना सीमित हो गया है कि आज इस पर लोग अविश्वास जता रहे है. जब कि इसकी व्यापकता का अनुमान लगाकर विदेशी इसे विज्ञान-आधुनिक विज्ञान के शीर्षक के नीचे इसे पेटेंट कराते चले जा रहे है.
जो भी हो, इस विषय पर ज्यादा हो हल्ला करने से मुझे अनेक विद्वान ज्योतिषियों के द्वारा अनेक कटु आलोचनाएँ सुनने को मिल रही है. तथा मिली भी है. लेकिन इससे ज्यादा कोई अंतर नहीं पड़ता है. अंतर सिर्फ इतना पड़ता है कि कभी कभी सोचता हूँ कि मै कोई ज्योतिष प्रचार प्रसार विभाग का एजेंट हूँ क्या? जैसा कि आज कल लोग एक ट्रेंड पाल रखे है. कोई राजनीति, कोई समाज सुधार, कोई अल्पसंख्यक उत्थान तथा कोई महिला उत्थान संगठन के ठेकेदार के रूप में कार्य कर रहा है.
और फिर सिर झटक कर अपने काम में मशगूल हो जाता हूँ.
वर्त्तमान सौर मंडल के बाह्य वलय या स्फेरिकल सराउंडिंग तथा उसके अन्दर एक निश्चित कक्ष्या में नित संचरण शील ग्रहों क़ी अपनी अपनी वलयाकृतियों के एक निश्चित काल में ऐसे कोण पर आ जाना जिससे हमारे भूमंडल का कोई विशेष भाग उनके सीधे प्रभाव में पड़ता है, वहां या उस स्थान के लिये एक स्थाई विन्दु बन जाता है. जिसे गणित में एक स्थिर राशि (Constant Amount) के रूप में जाना जाता है. वर्त्तमान सौर मंडल के लिये लग्न एक स्थाई राशि है. किन्तु यहाँ हम यह तथ्य भूल जाते है कि सौर मंडलीय या दूसरे शब्दों में अंतरिक्ष में घटित परिदृश्यो के आधार पर कल्पित क्रान्ति वृत्त, उस पर आधारित भुज, चरपल आदि के द्वारा जिस लग्न का गणित करते है, उसे किसी व्यक्ति विशेष क़ी कुंडली के लिये प्रयुक्त नहीं किया जा सकता. इसीलिए ज्योतिष पितामह महर्षि पाराशर ने अपने होराशास्त्र में कल्पित लग्न क़ी भी व्यवस्था रखी है. और यही कल्पित लग्न किसी व्यक्ति विशेष क़ी कुंडली के लिये प्रयुक्त हो सकता है. यह और बात है कि संयोग वश यदि किसी के जीवन क़ी किसी घटना का साम्य सौरमंडलीय लग्न क़ी कुंडली से हो जाता है.
तात्पर्य यह कि सौर मंडल के अन्य ग्रहों तों छोड़े, इस धरती पर ही विविध हिस्सों में विविध ग्रहों क़ी प्रधानता है. जैसे कैस्पियन सागर के इर्द गिर्द बसे भूखंडो के लिये वृहस्पति, यूराल सागर के तटवर्ती भूखंडो के लिये शुक्र, ह्वांगहो एवं यांगटीसीक्यांग के पूर्व-उत्तरवर्ती भूखंडो के लिये मंगल, बंगाल क़ी खाड़ी एवं अरब सागर के मध्य स्थित भूखंड के लिये चन्द्रमा आदि ग्रहों को ग्रहण किया जाता है. इस सिद्धांत का निरूपण एवं प्रतिस्थापन एक अति जटिल एवं दुरूह गणितीय प्रक्रिया पर आधारित है. अतएव समूचे विशव के प्रत्येक भूखंड के लिये स्थिर लग्न एवं चन्द्र राशि के तहत गणित करना न तों तर्क पूर्ण है और नहीं आर्षमतानुरूप.
कुछ एक विद्वान इस सम्बन्ध में वेद क़ी इस ऋचा का तर्क देते है कि
“चन्द्रमा मनसो जाताश्चक्षो सूर्यो अजायत.
ठीक है चन्द्रमा का जन्म मन से होता है. अतः उसे राशि के लिये स्थाई रूप में निर्धारित कर देते है. किन्तु सूर्य का जन्म तों इस आधार पर आँखों से हुआ है. तों फिर उसे आत्मा के रूप में ग्रहण करने का क्या तर्क है? किसी भी ऋचा, श्लोक, चौपाई या दोहा को अपने मन या सिद्धांत को प्रमाणित करने के लिये तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत करना आज क़ी एक प्रवृत्ति बन चुकी है. उसका दूरगामी विध्वंशक परिणाम चाहे जो कुछ हो.
चन्द्रमा धरती का सबसे निकटम ग्रह है. इसकी गति धरती के लिये अन्य सब ग्रहों से बहुत ज्यादा होती है. इसके अनुपात में समस्त ग्रहों को लेकर सूर्य क़ी गति चन्द्रमा क़ी दशवाँ हिस्सा ही होती है. अर्थात सर्व प्रथम सूर्य क़ी किरण अपने वलय जो सघन विरल माध्यमो का समूह है, से होकर गुजरती है. फिर उसे अपने अलावा चन्द्रमा एवं बुध-शनि आदि राहू-केतु लिये आठ अन्य ग्रहों के सघन-विरल माध्यमो से गुजरती है. और अंत में वह धरती के वलय को बेधती हुई इसके सतह पर पहुँचती है. इस प्रकार इसे दस सघन-विरल माध्यमो से होकर गुजरना पड़ता है. इसीलिए इसकी गति चन्द्रमा से दशवाँ हिस्सा ही सिद्ध होती है. चूंकि चन्द्रमा क़ी गति लगभग सात सौ से लेकर आठ सौ कला के आस-पास सिद्ध होती है. और दशवाँ हिस्सा इस प्रकार सत्तर से अस्सी तक आती है. यदि सूक्ष्म गणित से सिद्ध किया जाय तों वास्तविक गति निकाली जा सकती है. जो लगभग एक दिन में औसत मान से एक अंश के आस-पास आती है.
ऊपर के वैदिक श्लोक में चन्द्रमा को मन से उत्पन्न बताया गया है. मन क़ी गति अबाध बतायी गयी है. इसे इस प्रकार देखें.
आधुनिक गणित के आधार पर प्रकाश क़ी गति तीन लाख किलोमीटर प्रति सेकेण्ड मापी गयी है. देखें Wikipedia-light Speed. इस प्रकार चन्द्रमा क़ी गति औसत मान से तीस लाख किलोमीटर प्रति सेकेण्ड हुई. ध्यान रहे यह औसत मान धरती के लिये है. अन्य ग्रहों के लिये इस मान में भिन्नता आ जाती है. कारण यह है कि चन्द्रमा धरती का उपग्रह है जो धरती का चक्कर लगाता है. अब आप स्वयं अनुमान लगा सकते है कि मन सेकेंडो में या इससे भी कम समय में धरती के एक भाग से दूसरे भाग पर पहुँच सकता है. यही कारण है कि मन को अबाध द्रुत गामी माना गया है. और इसी आधार पर चन्द्रमा को मन से उत्पन्न सिद्ध होता है. यह प्रत्यक्ष गणित से सिद्ध है. इसमें किसी क़ी सहमति या किसी ग्रन्थ क़ी आवश्यकता नहीं है.
दूसरी एक बात यह कि यदि धरती के प्रत्येक हिस्से के लिये एक ही ग्रह कुंडली स्थिर कर दी गयी, फिर ग्रह गोचर के गणित या फल कथन का क्या औचित्य? विविध दशाओं-अंतर्दशाओं का क्या औचित्य? फिर तों जो मनुष्य जन्म से दरिद्र है वह आजीवन ही दरिद्र रहेगा. या जो बालक जन्म लिया उसमें वृद्धि का कोई मतलब ही नहीं है. जन्म के समय जो आकृति, प्रकृति, बुद्धि, विवेक जो लेकर आया बस वही रहना है. क्योकि कुंडली के ग्रहों के प्रभाव के अनुसार तों उसे फल मिल गया. और उसके अनुसार वह जन्म लेलिया. अब उसमें अन्य परिवर्तन-भौतिक या रासायनिक क़ी क्या आवश्यकता? किन्तु जन्मके बाद से हम जो भी परिव्बर्तन, संक्रमण आदि देखते है, इन्ही ग्रहों के प्रभाव के कारण जो संचरण के अनुसार परिवर्तित होता रहता है, घटित होता है.
इसीलिए प्रत्येक ग्रह क़ी कुंडली होती है. जो स्थान भेद से निर्मित होती है. किन्तु पता नहीं किस कारण से-या इसमें आई गणनात्मक दुरुहताओं या यवन आदि अनार्ष जातियों के विध्वंशात्मक कार्य वाही के कारण यह एक स्थान पर सीमित होकर रह गयी. जिससे आज समस्त विश्व में त्रुटियों को दर किनार करते हुए मात्र लग्न एवं चन्द्र कुंडली का ही प्रचलन शेष रह गया है. जो प्रत्यक्ष गणित से ही अशुद्ध हो जाता है. सिद्धांत क़ी तों बात ही अलग है.
आप स्वयं देखें, महर्षि पाराशर ने अलग अलग कुंडली के लिये अलग अलग दशाएं क्यों निश्चित क़ी है? क्यों उन्होंने कहा है कि जिसकी कुंडली में केंद्र में राहू-केतु होंगे उनके लिये अष्टोत्तरी दशा ही प्रभावी एवं सही होगी? लेकिन हम आज उस कथन क़ी गंभीरता को उपेक्षित कर देते है. तथा धरती के प्रत्येक हिस्से के लिये चन्द्र कुंडली ही अनिवार्य बना दिया गया है. कुछ लोग तर्क देते है कि चन्द्रमा धरती का सबसे नज़दीकी ग्रह है. इसलिए यह कुंडली सबके लिये संसार में आवश्यक है. किन्तु यह भूल जाते है कि शुक्र, मंगल एवं वृहस्पति के किरणों क़ी वेधन क्षमता चन्द्रमा से आठ लाख गुना ज्यादा होती है. और इस तरह एक सौ चौवालिस भाग में केवल एक भाग ही चन्द्रमा के प्रत्यक्ष प्रभाव में आ पाता है. शेष एक सौ तैतालीस भाग आठ ग्रहों के प्रभाव में होता है.
क्या आप ने सोचा है कि केवल सूर्य और चन्द्र ग्रहण ही क्यों लगता है? मंगल या शुक्र ग्रहण क्यों नहीं लगता है? जी हाँ, इसके पीछे भी ठोस कारण है. इनकी किरणे सदा ही धरती पर पड़ती रहती है. अपनी वेधन क्षमता के कारण ये सदा ही धरती को प्रभावित करते रहते है. सूर्य क़ी किरणे बहुत तेज़ होती है. किन्तु उनमें ऊष्मीय क्षमता होती है. वेधन क्षमता नहीं होती है. ये किरणे जब अन्य ग्रहों के विविध पदार्थ युक्त सतह से टकराती है. तों उनकी क्षमाताओं में अनेक विध परिवर्तन होते है. जिससे उनकी किरणों में तथा सूर्य क़ी किरणों में बहुत अंतर हो जाता है. और इसीलिए सूर्य एवं चन्द्र ग्रहण ही लग पाते है. शेष ग्रहों का ग्रहण नहीं लग पाता है. इसके लिये किसी प्रमाण क़ी आवश्यकता नहीं. बल्कि यह प्रत्यक्ष सिद्ध है.
क्या आप को मालूम है कि पौराणिक मान्यता के अनुसार सूर्य को तथा चन्द्रमा को मात्र एक-एक राशियों का स्वामित्व प्रदान किया गया है? सूर्य को सिंह राशि तथा चन्द्रमा को कर्क राशि. आखिर ऐसा क्यों? शेष ग्रहों को दो-दो राशियों का स्वामित्व क्यों मिला हुआ है? यह केवल एक दन्त कथा नहीं है. बल्कि यह गणित के ठोस सिद्धांत पर आधारित गणना है. ऋषियों महर्षियों ने वेद-पुराण आदि में झूठ, तथ्यहीन या केवल ढोल-कपोल वर्णन नहीं दिया है. बल्कि उनके प्रत्येक कथन के पीछे एक अति सुदृढ़, ठोस एवं अकाट्य प्रमाण भी है. जिसे हम देखने क़ी कोशिस नहीं करते है. और जो कोशिस करते है. वे इसे बखूबी समझ जाते है.
इसलिए स्थान को जिसका कूर्म प्रकरण में विधिवत वर्णन दिया गया है, उसके अनुसार ही सूर्य, चन्द्र, मंगल तथा गुरु आदि कुंडली को स्थान देना चाहिए.
पण्डित आर. के. राय
Email- khojiduniya@gmail.com

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