Menu
blogid : 6000 postid : 1188

पण्डित जी का ज्योतिष एवं पाठक जी का विज्ञान

वेद विज्ञान
वेद विज्ञान
  • 497 Posts
  • 662 Comments
पण्डित जी का ज्योतिष एवं पाठक जी का विज्ञान
जागरण जंक्सन एक मंच है जहाँ पर सब लोग अपना विचार रखने के लिये स्वतंत्र है. अब जिस पाठक को जिसका विचार अच्छा लगता है. वह उसे पढ़े. यदि नहीं अच्छा लगता है तों न पढ़े. किन्तु किसी को किसी के लेख पर तू—तू  मै—-मै करने का कोई औचित्य नहीं है.
दूसरी बात यह कि अंतर्मन क़ी वास्तविक या प्रकुपित विचार धारा ही तूलिका के द्वारा लेखनी के माध्यम से अक्षरों, शब्दों एवं वाक्यों के रूप में प्रकट होती है. आप उससे उस लेखक के मनो मष्तिस्क क़ी स्थिति का अनुमान सहज ही लगा सकते है. इस पर चिढने, चिढाने या घबराने क़ी कोई बात नहीं है.
मै आप ही से कुछ प्रश्न पूछता हूँ. जिसका उत्तर आप क़ी शंका या प्रश्नों का उत्तर होगा–
  1. प्राचीन विद्या ज्योतिष है या आधुनिक विज्ञान?
  2. शोध क़ी आवश्यकता अपूर्ण, अविकशित या अपरिपक्व विषय के लिये होती है या पूर्ण एवं परिपक्व विषय के लिये? अभी आधुनिक विज्ञान नित्य नए शोध क़ी आवश्यकता महसूस कर रहा है. क्योकि यह पूर्ण है ही नहीं. अभी इसमें पता नहीं कितने परिवर्तन होगें. इसकी अपनी ही कितनी मान्यताएं झूठी प्रमाणित हो सकती है. किन्तु ज्योतिष में किसी भी शोध क़ी कोई गुन्जाईस नहीं है. क्योकि यह एक पूर्ण विद्या है. तों जो विद्या स्वयं में अपूर्ण हो, उसकी कसौटी पर दूसरी विद्या को परखना मूर्खता के सिवाय और क्या हो सकता है?
  3. जब अभी किसी उपग्रह (Satellite) का प्रक्षेपण अंतरिक्ष में नहीं हुआ था या किसी सूक्ष्मदर्शी, दूरदर्शी आदि वैज्ञानिक उपकरण का आविष्कार नहीं हुआ था तों  ज्योतिष किस आधुनिक विज्ञान क़ी सहायता से सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण, पूर्णिमा एवं अमावस्या आदि क़ी सटीक गणना या भविष्यवाणी करता था?
  4. कोलंबस एवं वास्कोडिगामा ने जब खोज किया तों पता चला कि अमेरिका एवं भारत आदि उप महाद्वीप एवं द्वीप है. जिनकी संख्या सात है. लेकिन किस उपकरण क़ी सहायता से “अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल एवं पाताल” नामक सात महाद्वीपों क़ी खोज हजारो-हजारो साल पहले ही कर दी गयी थी? क्या अंग्रेजी में कॉन्टिनेंट कह देने से यह प्रामाणिक हो गया और हिंदी में महाद्वीप कह देने से यह निराधार हो गया? देखें—सप्तार्णवाः सप्त कुलाचालाश्च सप्तर्षयो द्वीप वनानि सप्त. भूरादि कृत्वा भुवनानि सप्त कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम.
  5. विविध ग्रहों क़ी गति ज्योतिषियों ने किस वैज्ञानिक उपकरण क़ी सहायता से प्राप्त क़ी थी?
  6. क्या नेपच्यून, यूरेनस आदि कह देने से यह विज्ञान का एक नया आविष्कार माना जाएगा? जब कि उपकेतु, धूमकेतु, दिव्यकेतु आदि हजारो अन्य ग्रह अंतरिक्ष में विचरण कर रहे है. देखें वृहत्संहिता अध्याय 11 श्लोक 5 “शतमेकाधिकमेके सहस्रमपरे वदन्ति केतूनाम. बहुरूपमेकमेव प्राह मुनिर्नारदः केतुम.”  देखें गर्ग को —“अतीतोदयचाराणामशुभानाम च दर्शने. आगंतूनाम सहस्रं स्याद्ग्रहाणाम तन्निबोधमे.” आधुनिक विज्ञान अपने अनेक प्रयोगों एवं अति उत्कृष्ट उपकरणों के आविष्कार के बाद भी अभी कुछ नेप्चुने एवं यूरेनस आदि ग्रहों क़ी खोज कर पाया है. जब कि ज्योतिष इन सब क़ी खोज पता नहीं कितने हजार वर्ष पहले ही कर चुका था. किन्तु ये ग्रह या केतु धरती से इतने दूर है या इनकी प्रकाश विकिरण क्षमता इतनी अल्प है कि इनका प्रभाव धरती के सतह पर पहुँचने के पहले ही अंतरिक्ष में विलीन हो जाता है. फिर भी यदि इनके प्रभाव को गणितीय विधि से जानना है तों उसका उल्लेख ज्योतिष शास्त्रों में किया गया है. देखें———-वृहत्संहिता अध्याय 11 श्लोक 2 —-“दर्शनमस्तनयो वा न गणितविधिनास्य शक्यते ज्ञातुम. दिव्यान्तरिक्ष भौमास्त्रिविधाः स्युह केतवो यस्मात.”
  7. पृथ्वी अपने लिये ग्रह नहीं है. यह दूसरे ग्रहों के लिये ग्रह है. प्रत्येक ग्रह एक दूसरे के लिये ग्रह है.
  8. पृथ्वी का प्रभाव पृथ्वी पर सदा ही पड़ता है. इसीलिए पृथ्वी पर विषुवत, मकर, कर्क आदि रेखाओं क़ी कल्पना क़ी गयी है. यह एक मूर्खता भरा प्रश्न है कि पृथ्वी का प्रभाव धरती वासियों पर क्यों नहीं पड़ता है. यदि ऐसा नहीं होता तों धरती को क्यों बारह भागो में बांटा जाता? अंतरिक्ष स्थित ग्रहों के ही कक्ष्या या उनके वृत्तखंडो से गणना को सीमित कर दिया जाता. यदि ऐसा नहीं होता तों जन्म पत्री निर्माण के समय जन्म के स्थान क़ी गणना क्यों क़ी जाती?
  9. क्या विदेशो में ही उच्च कोटि के विद्वान है या विदेशो में भारत से ज्यादा प्रतिभाशाली लोग है जो ज्योतिष के पक्ष या विपक्ष में अपना विचार दे सकते है? भारतीय विद्वानों या वैज्ञानिकों के पास क्या इतनी बौद्धिक क्षमता नहीं है जो इस पर अपना विचार प्रस्तुत कर सकें? यह मूर्खता या अल्पज्ञता नहीं तों और क्या है कि हम इसकी परख उन विदेशियों के कथन से करते है जिनके यहाँ ज्योतिष के सिद्धांतो क़ी कोई महत्ता नहीं. किन्तु ज्योतिष के फल को मानते है.
  10. विज्ञान आज बताता है कि उसी सूरज क़ी किरण एक निश्चित वक्त में विटामिन डी देती है. और दूसरी अवस्था में बाल, चमड़ी आदि का कैंसर भी देती है. जिसे ज्योतिष ने बहुत साल पहले ही विविध कथाओं, उद्धरणों आदि के द्वारा बता दिया है कि सूर्य चर्म रोग का कारक होता है.
  11. मंगल को ज्योतिष में भौम कहा जाता है. क्योकि इसे शास्त्रों में भूमि का पुत्र माना गया है. वर्ष 2004 में विज्ञान ने अपने उपग्रह प्रक्षेपण के बाद यह बताया कि मंगल धरती से अलग हुआ एक पिंड है. जहाँ पर पृथ्वी के सारे लक्षण मौजूद है. जिसे ज्योतिष अपने सिद्धांत एवं मान्यता के सहारे हजारो साल पहले ही बता दिया था.
  12. 27 नवम्बर 2011 को विश्व के उच्च स्तरीय वैज्ञानिकों का सम्मलेन केन्द्रीय विश्व विद्यालय इलाहाबाद में हुआ था. जहाँ पर आधुनिक चिकित्सा विज्ञान क़ी भयंकर भूलो, त्रुटियों एवं भ्रम को उजागर किया गया. क्या ऐसे विज्ञान पर भरोसा करना मूर्खता नहीं तों और क्या है? इसका उल्लेख मैं अपने पूर्ववर्ती लेख “ज्योतिष, प्रकृति, ग्रह एवं पूर्वाग्रह” में कर दिया है. फिर भी उसका कुछ हिस्सा यहाँ दे रहा हूँ—-जी हां, कल यानी कि 27 नवम्बर को आणविक मेम्ब्रेन मैक्स प्लेक इंस्टीट्युट आफ बायो फिजिक्स, ज़र्मनी के निदेशक प्रोफ़ेसर मिशेल, जिन्हें 1998 में रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार मिल चुका है, जर्मन फौन्डेशन के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर इन्गिस मैथायस क्लेयीनर तथा कोल्डजो संस्थान, मास्को के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर अलेक्जेंडर अलेक्सी इलाहाबाद आये थे. ———————————— जिन महान वैज्ञानिकों का नाम मैंने ऊपर लिया है उनका कथन जो उन्होंने इलाहाबाद आने पर 27 नवम्बर को विज्ञान के छात्रो को संबोधित करते हुए स्पष्ट किया था. देखें 27 नवम्बर 2011 के समस्त समाचार पत्र जिसमें विस्तार से इन नोबेल पुरस्कार प्राप्त प्रसिद्ध वैज्ञानिकों का अभिभाषण छपा है. उन्होंने स्पष्ट कहा है कि आज क़ी 80% दवाईयां सर्वथा हानिकारक है. आप स्वयं ही सोचें कि जब दुनिया के मूर्धन्य आधुनिक वैज्ञानिक यह आंकड़ा प्रस्तुत कर रहे है कि अस्सी प्रतिशत दवाएं हानिकर एवं घातक है तो यह आंकड़ा और भी बढ़ सकता है. अब आप स्वयं सोचें कि ऐसे विज्ञान पर भरोसा करना संसार को ठगना, भ्रमित करना एवं एवं लोगो को एक विनाश क़ी तरफ ले जाना नहीं तों और क्या है?
  13. विज्ञान में शोध कभी भी बन्द नहीं हो सकता है. कारण यह है कि न तों इसका कही आरम्भ है और न तों कही अंत. न ही इसका कोई स्थाई तर्क या प्रमाण है और न तों कोई स्थाई रूप. आज यही विज्ञान अपने ही तर्कों एवं प्रमाणों को नित नए आविष्कारो के द्वारा अपूर्ण/गलत प्रमाणित करता चला जा रहा है. यही कारण है कि आज भी लोग मरीजो को लेकर इस अस्पताल से उस अस्पताल में चक्कर लगा रहे है. या भागा दौड़ी कर रहे है. यदि विज्ञान इतना ही तार्किक, प्रामाणिक और सच्चा है तों क्यों लोग एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल में भागते है. उन्हें एक ही अस्पताल में एक ही चिकित्सक क़ी देख रेख में स्वास्थ्य लाभ कर लेना चाहिए. समस्त एम्.आर.आई, एक्स रे, एवं पैथोलाजिकल टेस्ट के बाद जब रोग पहचान में आ जा रहा है तों विविध डाक्टर उसी रोग के लिये विविध दवाइयां क्यों खाने को कहते है. कोई डाक्टर एक दवा खाने को कहता है. तों दूसरा डाक्टर उसी रोग के लिये दूसरी दवा लिख देता है. यह कौन सा विज्ञान है. जिसका न तों कोई आधार है, न प्रमाण, न स्थायित्व है और न ही विश्वास.? ऐसे चिकित्सा विज्ञान को तों बल पूर्वक जबरदस्ती बन्द कर प्रतिबंधित कर देना चाहिए.
  14. ज्योतिष में नए शोध क़ी कोई गुन्जाईस ही नहीं है. यहाँ प्रत्येक सिद्धांत पूर्ण, प्रामाणिक, ठोस एवं अपरिवर्तनीय है. कोई भी बीज जब सब दृष्टि से पूर्ण है तभी अंकुरित होगा. यदि उसे कीड़े खा गये हो, सड गया हो, टूट-फूट गया हो तों वह अंकुरित नहीं होगा. ज्योतिष एक पूर्ण बीज है. विज्ञान आधे अधूरे सिद्धांत पर आधारित वह अपूर्ण विद्या है जिसे स्वयं अपने आप पर भरोसा नहीं है. इसीलिए उसमें अभी शोध करना है कि कही इसमें कोई और टूट-फूट तों नहीं है. आखिर यह क्यों नहीं अंकुरित हो रहा है?
  15. आज भारत में एक प्रचलन या “ट्रेंड” चल चुका है कि भारतीय मान्यता, परम्परा, साहित्य, समाज एवं आचार-विचार क़ी तुलना विदेशियों से क़ी जा रही है. ऐसे लोगो को भारत में कोई विद्वान नज़र ही नहीं आता है. भारत क़ी संस्कृति, सभ्यता, आचार-विचार, रहन-सहन, परम्परा, रीति-रिवाज, साहित्य एवं शिक्षा-दीक्षा सब कुछ विदेशो के आगे हीन एवं निकृष्ट नज़र लगने लगे है. और तत्काल इनको उन विदेशी कसौटी पर परखने लगते है. जिसे अपने देश के ज्ञान, विज्ञान, विद्वान, साहित्य, आचार-विचार, समाज, संस्कृति एवं परम्परा पर विश्वास नहीं वह दूसरे देश के ज्ञान-विज्ञान के उद्देश्य को क्या समझ सकता है?
  16. पाठक जी यदि ज्योतिष क़ी वैज्ञानिक पृष्ठ भूमि में और ज्यादा जाना है तों मेरे सारे सम्बंधित लेख आप को पढ़ने पड़ेगें. हाँ, इतना मैं अवश्य कह सकता हूँ कि जो कोई भी ज्योतिष को विज्ञान नहीं मानता है, इसमें उसका कोई दोष नहीं है. कारण यह है कि उसने कभी भी यह प्रयत्न नहीं किया कि इसकी वैज्ञानिक पृष्ठ भूमि के बारे में अध्ययन करे. उसे विदेशी साहित्यों से लगाव, झुकाव, उसी में रूचि एवं विश्वास रहा है. उसने सदा विविध देशो को ज्ञान-विज्ञान के सम्बन्ध में भारत से ज्यादा ऊंचा समझा है. उसे सदा ही विदेशियों का कथन सत्य लगा है. उसे भारत में सच बोलने वाला कोई मिला ही नहीं. तों उसे ज्योतिष विद्या विज्ञान के रूप में कैसे नज़र आयेगी?
  17. ज्योतिष विज्ञान आज के आधुनिक विज्ञान से कही बहुत आगे, उसकी पहुँच से कोसो दूर एवं उसके एक अधूरे अँग के रूप में ही ग्राह्य हो सकता है. विज्ञान क़ी सीमा एक परिधि के अन्दर सीमित है. जब कि ज्योतिष एक अत्यंत विशाल परिधि से घिरा है. जिसमें प्रत्येक विद्या का समावेश है.
  18. पाठक जी अंतर मात्र इतना ही है कि विज्ञान को प्रामाणिक कहे जाने वाले कथन अंग्रेजी में है. जब कि ज्योतिष को प्रमाणित करने वाले कथन हिंदी में या संस्कृत में है.
  19. पाठक जी सही कहा है कि—- नीम हकीम खतरे जान. ऐसे लोग ज्योतिष के बारे में स्वयं तों कुछ नहीं ही जानते है. लेकिन जो थोड़ा बहुत इस पर विश्वास करते है, ऐसे लोग उन्हें भी गुमराह कर देते है. तथा अपने आधे अधूरे विज्ञान क़ी अंधेरी गली में लोगो को भटकने के के लिये मज़बूर कर देते है. और सरकारी मान्यता प्राप्त डाक्टर एक ही रोग के लिये अनेक दवाइयां लिख कर रोगी को मार डाकते है.
  20. संभवतः आप को बात स्पष्ट हो गयी होगी. यदि नहीं तों आप मेरे अन्य लेखोको भी अवश्य ही पढ़ें.
  21. और अंत में जो बिल्कुल बेशर्मी होकर यह निश्चित ही कर लिया हो कि चाहे जो कुछ भी हो, उसे ज्योतिष को झूठ ही बताना, कहना, प्रचारित एवं प्रसारित करना है, उसे कोई भी प्रमाण नहीं चाहिए होता है.

पण्डित आर. के. राय

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply