मांगलिक दोष आज समाज में एक बहुत ही प्रचलित दोष बन गया है. कुंडली में कुछ विशेष परिस्थितियों में कुछ विशेष भाव में मंगल के स्थित होने पर यह दोष प्रभावी माना जाता है. मैंने अपने पूर्ववर्ती लेखो में इसकी विशद व्याख्या दे दी है. किन्तु देखने में यह आ रहा है क़ि इसके सम्बन्ध में फ़ैली भ्रांतियां अब बहुत ही विकित रूप धारण कर चुकी है. और अनावश्यक रूप से लोग इसके भ्रम जाल में बुरी तरह फंसते चले जा रहे है. तथा डिग्रीधारी चिकित्सको जिनके पास डिग्री तो है, किन्तु उसके अनुपात में ज्ञान का सर्वथा अभाव है, उनके ही समकक्षी पंडितो की तरह फैले तथा कथित ज्योतिषाचार्यों के द्वारा इस मांगलिक दोष की आड़ में अनेक युवक-युवतियों को ठगा जा रहा है.
मै बता दूं क़ि कुंडली में कुछ निश्चित भावो में मंगल के बैठने से बनने वाले मांगलिक दोष भी ऐसी 4320 कुंडलियों में केवल एक को ही होता है. ज्योतिषाचार्य चाहे तो इसे गणित से जान सकते है. किन्तु गणित की जटिल प्रक्रिया से निजात पाने के लिये सीधा यही कह देते है क़ि कुंडली मांगलिक है. और इसीलिए विवाह में विलम्ब हो रहा है. किन्तु ऐसा नहीं है. विवाह में विलम्ब के आवश्यक एवं महत्व पूर्ण कुछ प्रमुख कारण निम्न प्रकार है.—–
यदि लग्नेश नवांश कुंडली में शत्रु राशिगत होकर पंचम, सप्तम या नवम भाव में बैठा है. तथा शुक्र का किसी भी प्रकार से मंगल से समंध बनता है. तो विवाह में विलम्ब होगा ही. चाहे कुंडली मांगलिक हो या न हो.
यदि सप्तमेश द्वीतीय, छठे या आठवें भाव में बैठा हो. तथा सप्तमांश कुंडली में द्वीतीय भाव में षष्ठेश, अष्टमेश या द्वादशेश तीनो या किन्ही दो की युति हो तो विवाह में विलम्ब होगा.
यदि कुंडली में राहू लग्न या सातवें में बैठा हो. तथा शुक्र दूसरे या आठवें बैठा हो तो विवाह में विलम्ब होता ही है.
जब तक द्वीतियेश, सप्तमेश या अष्टमेश की महा दशा में किसी भी वक्री ग्रह की अन्तर्दशा चलेगी, विवाह नहीं होगा.
यदि सप्तमेश लग्न एवं सप्तमांश कुंडली में अस्त या नीच का होकर पणफर स्थान में बैठा हो, तथा अष्टक वर्ग में सप्तम भाव को 25 से कम अंक मिल रहे हो, विवाह में बहुत विलम्ब होगा.
राहू-शुक्र कुंडली में किसी भी केंद्र में संयुक्त होकर बैठे हो, तथा द्वितीयेश चाहे वह शुक्र ही क्यों न हो यदि वक्री, नीच या अस्तागत हो तो विवाह में विलम्ब होता ही है.
चाहे कुंडली मांगलिक न हो, किन्तु यदि मंगल मकर राशि में हो, तथा सप्तम भाव में गुरु एवं शनि बैठे हो, विवाह अवश्य विलम्ब से होता है.
प्रायः मकर एवं कुम्भ राशि में शुक्र-मंगल की युति विवाह विलम्ब से कराती है.
मृगशिरा, आर्द्रा एवं विशाखा नक्षत्र में जन्म ली हुई लड़कियों का विवाह अवश्य विलम्ब से होगा.
मघा, हस्त एवं शतभिषा नक्षत्र में जन्म लिये हुए लड़को का विवाह अवश्य विलम्ब से होगा यदि सप्तमांश कुंडली में गुरु केंद्र वर्ती न हो.
अपन्हुती, व्यतिरेक, विष्क्लोम, एवं व्यतिपात योग में जन्म प्राप्त लड़को एवं लड़कियों का विवाह अवश्य विलम्ब से होगा.
मंगल एवं शुक्र अलग अलग स्वतंत्र रूप से पंचम एवं नवम भाव में बैठे हो. तथा शनि किसी भी भाव में उच्च का हो तो विवाह विलम्ब से होगा.
यदि लग्न एवं सप्तमांश दोनों ही कुंडलियो में शुक्र नीच, अस्त या वक्री होकर दूसरे, छठे या आठवें भाव में बैठा हो तो विवाह विलम्ब से होगा.
इस प्रकार उपरोक्त कुछ प्रमुख शर्ते है जिनके कारण विवाह में विलम्ब होता है. चाहे कुंडली मांगलिक हो या न हो. दूसरी बात यह क़ि प्रत्यक्ष मांगलिक दिखाई देने वाली कुंडली भी वास्तव में मंगल दोष वाली नहीं हो सकती. उदाहरण के लिये यदि मंगल छठे, आठवे या बारहवें बैठा हो, तथा वह छठे या बारहवें भाव का स्वामी हो. तो प्रचंड मांगलिक योग होने के बावजूद भी सरल योग होने के कारण जातक मांगलिक दोष से मुक्त होता है. तथा उसके लिये मंगल सुख-समृद्धि का कारण बन जाता है. यदि सूर्य के प्रभाव से रहित भद्र एवं हंश योग कुंडली में बन रहे हो.
मंगल दोष बहुत ही बिरले बनता है. जैसा क़ि मैंने ऊपर बताया है, प्रत्यक्ष मांगलिक दोष दिखाई देने वाली 4320 कुंडलियो में केवल एक ही कुंडली मंगल दोष वाली होगी.
This website uses cookie or similar technologies, to enhance your browsing experience and provide personalised recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy. OK
Read Comments