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ज्योतिष को तो बदनाम होना ही है।

वेद विज्ञान
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ज्योतिष को तो बदनाम होना ही है।
यह जानते हुए भी कि बड़े बुजुर्गों एवं ऋषि-मुनियों की बातें निरर्थक नहीं होती हैं। और उनका कथन  वृथा नहीं हो सकता। फिर भी मन मानता नहीं है। बुद्धि-विवेक के तीक्ष्ण किन्तु सत्य निर्णय को स्वीकार करने से घबराता है।
यही बात ज्योतिषाचार्यों के साथ है। आज स्थिति यह आ गयी है की इन उदर पोषण में संलग्न अपराधी ज्योतिषाचार्यों इस समूचे ज्योतिष विज्ञान को ही उखाड़ फेंकने में जी जान से लगे हुए है। परिणाम स्वरुप आज लोग इनसे इतना भयभीत हो गये हैं कि इनसे कतराकर तो चलते ही हैं,  लोगों में यह भावना भी भरने लगे हैं कि ज्योतिष एक पाखण्ड एवं ब्राह्मणों की ठगी विद्या है। इस पर मत विशवास करो और न ही इसका आदर करो। और मैं कहता हूँ कि इनका यह कथन सत्य एवं लाज़मी भी है। आदमी डाक्टर के पास अपने रोग के इलाज़ के लिए जाता है। किन्तु यदि कोई फ़ायदा न हो तो वह तो उसकी निन्दा करेगा ही।
ज्योतिष प्रणेता त्रिकालदर्शी महान वैज्ञानिक अबाध एवं अतिशक्ति संपन्न मानसिक तथा बौद्धिक क्षमता वाले ऋषि-मुनि जड़, जंगम एवं स्थावर के प्रत्येक पहलू का सूक्ष्म अध्ययन कर तद तद अनुरूप सिद्धांतो को प्रतिष्ठित किये। किन्तु वर्त्तमान निकृष्ट एवं पापाचारी कुकुरमुत्तों की तरह उग आये तथाकथित ज्योतिषाचार्यों ने अपनी पाप पूर्ण निकृष्ट बुद्धि, आलस्य एवं श्रम के भय से निर्धारित किन्तु जटिल सिद्धांतो की उपेक्षा करते हुए हर व्यक्ति, वस्तु एवं स्थान के लिए एक ही सिद्धांत सामान्य रूप से लागू कर रखा है। ठीक वैसे ही जैसे दर्द चाहे फोड़े का हो या सिर का, डिस्प्रिन की टिकिया दे दो।
कुंडली बनाना एक बहुत ही श्रम साध्य, जटिल एवं उबाऊ कार्य है। इसमें कोई संदेह नहीं। कम्प्युटर की कुंडली किसी भी स्तर पर सही नहीं हो सकती। कम्प्युटर एक निर्जीव यंत्र मात्र है। जो सजीव अर्थात उसे चलाने वाला जैसे चलाएगा वैसे ही चलेगा। उसके पास अपनी कोई सोच या भावना नहीं होती है। उसमें जैसा “डाटा फीड” होगा वह उसी का रिसपोंस देगा। वह आप के द्वारा दिए गए डाटा या “प्रोग्रामिंग” में स्वयं कोई परिवर्तन नहीं कर सकता। किन्तु आज उसी पर भरोसा कर के और धडाधड कुंडली बन रही है। परिणाम प्रत्यक्ष है। विवाह के मामले में तो यह एक अभिशाप बन गया है। अच्छी खासी शादियाँ इसी कारण टूट जा रही हैं।
एक उदाहरण देखिये। हमारे भारत के क्रिकेट टीम के एक खिलाड़ी जिसका नाम मनीष तिवारी है, उसका जन्म कालिक विवरण निम्न प्रकार है-
जन्म की तारीख- 17 जुलाई 1989
जन्म का समय — प्रातः 7 बजकर 21 मिनट
जन्म स्थान — दिल्ली
अब आप कम्प्यूटर में यह डाटा दाल दीजिये। तत्काल आप को मिथुन लग्न की कुंडली सामने मिल जायेगी। अब आप देखिये लग्न में मंगल, सातवें शनि एवं चतुर्थ एवं दशम में राहुकेतु। सब कुछ छोड़ दीजिये, आप देखिये यह कुंडली मनीष के शरीर का रंग कैसा बता रही है? लग्न में मंगल, लग्न पर शनि की पूर्ण दृष्टि तथा वक्री लग्नेश बुध बारहवें घर में। इस लडके को काले रंग का होना चाहिये। आप ने मनीष को देखा भी होगा। क्या वह काला है?
दूसरा उदाहरण देखें— भाजपा नेता श्री लाल कृष्ण अडवाणी का जन्म पाकिस्तान के हैदराबाद में 8 नवम्बर 1927 को प्रातः 7 बजकर 50 मिनट पर हुआ। अब आप इसे कम्प्युटर में कुंडली के साफ्ट वेयर में भरिये। और कमाण्ड देते ही वृश्चिक लग्न की कुण्डली आप को दिखाई देगी। लग्न में शानिकेतु, सातवें राहू, छठे चन्द्रमा, दशमेश सूर्य एवं सप्तमेश शुक्र दोनों केन्द्राधिपति नीच राशिगत, भाग्येश अशुभ भावगत, लग्नेश दशमेश एवं लाभेश तीनो बारहवें भाव में गए हुए, अब आप किस आधार पर इस कुंडली को इतने प्रसिद्ध व्यक्तित्व की कुंडली कह सकते है? और फिर क्या लाल कृष्ण अडवानी काले रंग के हैं? लग्न में शनि-केतु एवं लग्नेश मंगल बारहवें किस रंग के द्योतक है?
ऐसे बहुत उदाहरण देखने को मिल सकते है।
अभी मैं एक बहुत ही छोटा एवं सबके समझाने लायक उदाहरण देता हूँ।
पूरी राशियाँ केवल 12 ही हैं।  सूर्य उदय से अगले सूर्य उदय तक ये राशियाँ एक चक्कर लगा लेती हैं। अर्थात 24 घंटे में 12 राशियाँ भुगत जाती है। अर्थात दो घंटे में एक लग्न भुगतती है। तो सीधा सीधा सूर्योदय के समय स्पष्ट सूर्य राशि में जन्म के समय तक जितने घंटे बीत गए हो उतना जोड़ दीजिये। लग्न निकल आयेगी। जैसे सूर्योदय के समय सूर्य कर्क राशि में 8 अंशो पर है। और किसी का जन्म शाम को 8 बजे हुआ है। जिस जगह जन्म हुआ है वहां पर मान लेते है सूर्योदय 6 बजे हुआ है। तो 6 बजे से लेकर शाम को 8 बजे तक 14 घंटे होते है। दो दो घंटे के हिसाब से सूर्य 14 घंटे में 7 राशियाँ आगे चला जाएगा तो सूर्य में जो उदय के समय कर्क राशि में 8 अंशो पर था, उस कर्क राशि में 7 राशि और जोड़ देते है। तो यह 11 अर्थात कुम्भ राशि होगी। अर्थात जन्म लग्न कुम्भ होगी। यह बिलकुल स्पष्ट, प्रामाणिक एवं तार्किक है।
अब इसे चरपल, भुज, कोटि एवं पलभा के आधार पर निकालने की क्या आवश्यकता है? धरती को बराबर बराबर 30-30 अंशो के 12 हिस्सों में बाँट दिया गया है। यह भी नहीं की किसी को 30 और किसी को 20 अंश का बनाया गया है। सब खंड बराबर अंशो के है? फिर यह चरपल, भुज एवं कोटि का क्या काम?
जब धरती से अलग अंतरिक्ष की घटनाओं की गणना करनी हो, तब तो उसका चरपल बनाना, भुज एवं कोटि तथा क्रान्त्यानयन करना तार्किक है।  ये सारी घटनाएँ जैसे—सूर्य ग्रहण, चंद्रग्रहण, उल्कापात, बादल फटना आदि, जो धरती से अलग अंतरिक्ष में होते है, उनके लिए उस स्थान का लग्न निश्चित करने के लिए कोटि एवं भुज आदि आवश्यक है। किन्तु दूसरे ग्रह एवं पिंड के लग्न को धरतीवासियों पर लागू करना कहाँ तक उचित, तार्किक एवं न्यायपूर्ण होगा?
ज्योतिष पितामह महर्षि पाराशर ने इसका उल्लेख अपने होराशास्त्र में कर दिया है।
किन्तु बड़े पश्चात्ताप की बात है की आज हम उन्हें वही तक मानते है जहां तक हमारी समझ में बिना किसी श्रम या दिमाग खर्च करने के आ जाता है।ज्योही थोड़ा श्रम करना हुआ, हम उनके सिद्धांतो को तिलांजलि दे देते है। परिणाम यह होता है कि हम पाराशर की अनदेखी करते है, तथा त्रुटी ढूँढने वाले इसीलिए झूठ एवं पाखंडी करार दे देते है।
यही नहीं स्वयं “पाराशर लाइट” नाम का प्रचलित “कुंडली साफ्ट वेयर” ही पाराशर के इस सिद्धांत को नहीं मानता है। और नाम पाराशर लाईट रखा है।
आगे और भी देखें। चाहे कुंडली में कोई भी ग्रह कही भी बैठा हो, सबके लिए बस एक ही दशा–विंशोत्तरी महादशा से भविष्य कथन कर दिया जाता है। जब की ग्रहों की  भिन्न भिन्न स्थिति के लिए भिन्न भिन्न दशाओं से फल कथन का निर्देश है। यथा, यदि केंद्र में राहू हो तो वहां पर अष्टोत्तरी महादशा से फल कथन करना चाहिए। किन्तु न तो कम्प्युटर इन सब बातो-तथ्यों का ख्याल रखता है। और न ही कोई ज्योतिषाचार्य पंडित।
तो जब ज्योतिषाचार्य ही इन मूलभूत सिद्धांतो की उपेक्षा करता है। तो आम लोग तो बड़ी सरलता के साथ यह कहने के लिए स्वतंत्र हैं कि सिद्धांत यदि झूठा है तो उसका फल कथन क्योकर सत्य होगा? बातों में दम है। शंका एवं प्रश्न भी तार्किक है।
इस प्रकार ज्योतिष तो बदनाम होना ही है।
पंडित आर के राय

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