Menu
blogid : 6000 postid : 1205

विवाह में जल्दबाजी न करें। थोड़ी सी चूक जीवन भर के लिए शाप बन कर रह जायेगी।

वेद विज्ञान
वेद विज्ञान
  • 497 Posts
  • 662 Comments
विवाह में जल्दबाजी न करें। थोड़ी सी चूक जीवन भर के लिए शाप बन कर रह जायेगी।
वैसे तो अंधाधुंध गति से दौड़ लगाते, समय-चक्र के साथ थोड़ी प्रतीक्षा करना आधुनिक लडके लड़कियों को असह्य है। तथा ऊपर से कुंडली, ज्योतिष, गणना एवं परिवार-अभिभावक के नाना प्रतिबन्ध उन्हें किसी आतंक वादी कार्यवाही से कम नज़र नहीं आते। और सबसे ऊपर बात यह की अब बच्चे पढ़ लिख कर अपने भले-बुरे के प्रति चैतन्य हो गए हैं, यह मान कर अभिभावकों द्वारा उन्हें स्वतंत्र-स्वच्छंद एवं उन्मुक्त बना देना, थोड़े समय के हास-परिहास, भोग-विलास एवम भाव-तरंग आदि के खोखट-गड्ढे जब भर जाते है, तब बारी आती है पश्चात्ताप की। किन्तु तब तक जीवन का एक परम पावन, बहुत दिनों से सँजोये सपने एवम काल्पनिक सारे सुखो एवं खुशियों की मनोरम कुटिया मूर्खता के उन्माद एवं भूल के भयंकर तूफ़ान में तार-तार होकर बिखर चुके होते है। और चाह कर भी वह सामाजिक प्रतिष्ठा, मान-मार्यादा और सब के साथ सिर उठाकर एक सम्मान जनक जीवन जीने की ख्वाहिश मात्र सपना बन कर ही रह जाती है। फिर अपनी नज़र में भले ही सम्पन्नता एवं श्रेष्ठता का ताज अपने सर पर रख कर घूमते नज़र आओ, एक मर्यादित समाज में किस नज़र से स्वागत होगा, इसका ज़रा सहज अनुमान लगाएं।
क्षणिक उन्माद एवं ज्यादा उन्नत दिखने के लोभ में दूसरे देशो की संस्कृति एवं सभ्यता को अपना कर सदा के लिये अपने ही परिवार में बुढापे में बेगाना न बनें। अन्यथा अपनी ही संतान द्वारा घृणित कुष्ठ रोगी की तरह वृद्धावस्था में उपेक्षित कर दिये जाओगे। यह सन्देश मात्र अभिभावकों के लिए ही नहीं, बल्कि भविष्य में बनने वाले अभिभावकों एवं अपनी संतान के माँ-बाप बनने वालो के लिये भी है। बुजुर्गो, ऋषि-मुनि एवम समाज द्वारा स्थापित प्रत्येक मान्यता एवम प्रतिबन्ध के पीछे एक ठोस कारण एवम आधार है। जिसे आज थोड़ा पढ़ लिख कर और दो चार किताबों की कुछ एक पाश्चात्य प्रभाव में संकलित वाक्यों को ढाल बनाकर उन्हें पंडितो का धोखा, बुजुर्गो की सठियाई बुद्धि एवम जाहिलता की पराकाष्ठा बताकर उन्हें त्याज्य कह देते है।
अस्तु, मुख्य विषय पर आते हैं। आज कल कुछ एक भूल के कारण, व्यावसायिक पंडितो के लोभ या जबरदस्ती के कारण कुंडली के कुछ तथ्यों को नज़र अंदाज़ कर बहुत से अच्छे रिश्ते बिगाड़ दिये जाते हैं। या फिर बहुत से गलत रिश्ते बना दिये जाते है। मैं यहाँ उनमें से दो एक तथ्यों को रखना चाहूंगा।
  1. मांगलिक रिस्ता– अक्सर देखने में आता है की लडके या लड़की में से किसी एक के मांगलिक होने पर विवाह रोक दिया जाता है। क्योकि इससे वैवाहिक जीवन के बिखराव की प्रबल संभावना होती है। बात सत्य है। किन्तु यह तभी संभव है जब कुंडली में दांपत्य जीवन बल शून्य हो। अर्थात यदि विवाह का भाव बिलकुल ही निर्बल है। तो मांगलिक प्रभाव और भी बुरा प्रभाव दिखाता है। किन्तु यहाँ मैं बात स्पष्ट करना चाहूंगा कि भले कुंडली मांगलिक न हो और यदि दाम्पत्य जीवन का भाव निर्बल हो तो बिना मांगलिक के भी वैवाहिक जीवन तहस-नहस हो सकता है। उदाहरण के लिये यदि कुंडली में मंगल बारहवें भाव में खूब बली होकर अपने उच्च में ही क्यों न बैठा हो, और इस तरह कुंडली प्रबल मांगलिक ही क्यों न हो किन्तु यदि (1)-सातवें भाव को 29 से 35 के बीच में अंक मिलते है, (2)- जन्म नक्षत्र अपने बीच वृहत्कोंण बनाते हो, (3)- दोनों की कुंडली में सप्तमेश या सप्तम भाव वर्गोत्तम स्थिति उत्पन्न करता हो या दोनों के सप्तमान्शेश परस्पर मित्र हो (4)- सप्तमांश कुंडली में प्रत्यय वर्ग बनता हो (5)- दोनों की कुंडली में सप्तमेश सप्तम भाव में 6 से अधिक अंक प्राप्त कर रहे हो। तो वैवाहिक जीवन बहुत सुखद एवं संपन्न होता है। तथा मंगल विपदा एवं कलंक को मिटाने वाला हो जाता है। इसके विपरीत यदि कुण्डली मांगलिक न हो, किन्तु यदि (1)- सातवें भाव को 22 से कम अंक मिलते हो (2)- सप्तामान्शेश सप्तमेश के मध्य शत्रुता हो (3)- सप्तमेश सप्तम भाव में 3 या इससे कम अंक प्राप्त करते हो, तो वैवाहिक जीवन तहस-नहस हो जाता है। इसलिये मात्र मांगलिक होने या न होने के आधार पर किसी रिस्ते को बनाना या बिगाड़ना बहुत बड़ी भूल होगी।
  2. नाडी दोष- बहुत से रिस्ते नाडी एक होने पर नहीं बनाए जाते है। इससे वंश वृद्धि लुप्त हो जाती है। दम्पति को संतान सुख नहीं मिलता है। सही बात है। मैं अपने पिछले लेखो में इसका वैज्ञानिक कारण प्रस्तुत कर चुका हूँ। यहाँ मैं सिर्फ इसका शास्त्रीय स्वरुप ही प्रस्तुत कर रहा हूँ। वैवाहिक गणना में नाडी मिलान को सबसे ज्यादा 8 अंक प्राप्त करने होते है। गणना के 36  अंक होते है। जिनमें आठ तथ्यों का मिलान करना होता है। प्रत्येक को वृद्धि क्रम क्रम से 1 से 8 अंक विभाजित होते है। इसमें सबसे ज्यादा 8 अंक नाडी मिलान को प्राप्त हैं। अब यदि इकट्ठा 8 अंक गणना में से कम हो जाते है। तो गणना बिगड़ जाती है। इसलिए गणना मिलान में इसे बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण स्थान मिला है। किन्तु इसमें भी उपर्युक्त की तरह कुछ तथ्यों को ध्यान में रखना पड़ता है। अन्यथा मात्र नाडी के न मिलने से बहुत अच्छे रिश्ते टूट जाते है। मान लीजिये यदि नाडी मिलान में पूरे 8 अंक मिल जाते है। किन्तु (1)- दोनों की कुंडली में पंचम भाव को 19 या इससे कम अंक मिले है। तो संतान सुख नहीं प्राप्त होगा। (2)- पंचम भाव में भले ही परम शुभ ग्रह गुरु की धनु राशि ही क्यों न हो, यदि ग्यारहवें भाव में अष्टमेश-षष्ठेश की युति हो तथा पांचवें भाव में राहु एवं छठे भाव में गुरु हो तो संतान सुख नहीं होगा। (3)- यदि पांचवें भाव में नीच-वक्र योग हो तो चाहे पंचमेश उच्चास्थ ही क्यों न हो संतान नहीं होती है। (4)- यदि चतुर्थांश कुंडली में लग्न कुंडली का पंचमेश धृति अंश में है तो भी संतान सुख नहीं होगा। इसके विपरीत यदि गणना में नाडी मिलान को भले ही शून्य अंक मिले हो, किन्तु यदि (1)- पंचम भाव को 27 से ज्यादा अंक मिलते हो (2)- चतुर्थेश ही चतुर्थांश का स्वामी हो, (3)- दोनों की कुंडली में पंचमेश पंचम भाव में 7 या इससे ज्यादा अंक प्राप्त करते हो (4)- पंचम भाव में विपुल योग बनता हो (5)- पंचमेश एवं लग्नेश के द्वारा पञ्च महापुरुष योग बनता हो, (6)- सूर्य उच्चस्थ होकर मंगल के साथ ग्यारहवें भाव में हो तो संतान का भरपूर सुख मिलता है।
  3. लत्ता पात या विषकन्या आदि योग- यदि कन्या की कुंडली में पांचवें भाव में मृगशिरा, आर्द्रा, धनिष्ठा, पूर्वाभाद्रपद या मघा पूर्ण रूप से या आंशिक रूप से भी हो तथा लग्न में अश्लेषा, रोहिणी, तीनो उत्तरा या तीनो तीनो पूर्वा में से कोई पूर्ण या आंशिक रूप से हो तो विषकन्या योग पूर्ण प्रभावित माना जा सकता है। किन्तु यदि (1)- लग्नेश वर्गोत्तम हो तथा गुरु के द्वारा पञ्च महापुरुष योग बन रहा हो या (2)- सप्तमेश वर्गोत्तम हो तथा द्वीतीयेश के द्वारा पञ्च महापुरुष बन रहा हो, या (3)- द्वीतीयेश वर्गोत्तम हो तथा सप्तमेश के द्वारा पञ्च महापुरुष योग बन रहा हो या (4)- पंचमेश-सप्तमेश का स्थान परिवर्तन हो तथा इनमें से कोई भी अस्त या वक्री न हो, या (5)- नवमेश-सप्तमेश का स्थान परिवर्तन हो तथा इनमें से कोई अस्त या वक्री न हो तथा दोनों ही शर्तों में द्वीतीय एवं सप्तम भाव को किसी भी हालत में 29 से कम अंक न मिलते हो। तो लत्ता-पात-विषकन्या आदि का कोई दोष नहीं होता है।
पंडित आर के राय
Email- khojiduniya@gmail.com

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply