ज्योतिषीय गणना के अनुसार कुंडली में स्थित ग्रहों के आधार पर भावी पति/पत्नी के कुछ लक्षण निम्न प्रकार हैं।
यदि मंगल सप्तमेश होकर किसी भी भाव में द्वीतियेश से दृष्ट एवं तृतीयेश या एकादशेश से युक्त हो तो जीवन साथी विद्युत्/रक्षा विभाग के व्यवसाय से जुडा होगा। या इसी से सम्बंधित शिक्षा दीक्षा होगी।
यदि यही मंगल पंचमेश होकर सप्तम भाव में द्वादशेश से दृष्ट हो तथा तृतीयेश या एकादशेश से युक्त हो तो जीवन साथी वकील/लेखा परीक्षक व्यवसाय से सम्बंधित होगा। या इसी से सम्बंधित शिक्षा दीक्षा होगी।
यदि शुक्र दूसरे भाव में हो तथा सूर्य नवमेश होकर तीसरे या लग्न में हो और किसी भी भाव में बैठा मंगल इन दोनों में से किसी एक पर भी दृष्टि रखता हो तो जीवन साथी प्रशासनिक अधिकारी होगा। या राजनीतिक व्यक्ति होगा।
यदि गुरु किसी भी केंद्र का स्वामी होकर या स्वयं सप्तमेश होकर मंगल या शनि किसी एक से युक्त हो तथा किसी एक से दृष्ट हो तो जीवन साथी प्रबल प्रबंधक होता है। प्रायः ऐसे व्यक्ति होटल प्रबंधन से सम्बंधित होते हैं।
यदि शनि सप्तमेश होकर या सप्तम भाव में बैठ कर मंगल से दृष्ट हो तथा गुरु किसी भी त्रिकोण में हो तो जीवन साथी शिक्षक होता है। किन्तु इस स्थिति में यह आवश्यक है की मंगल, गुरु या शनि तीनो में से कोई एक वर्गोताम होवे।
यदि अष्टक वर्ग में सातवें भाव में नवमेश या पंचमेश 5 या इससे ज्यादा अंक प्राप्त कर रहे हो। तथा सप्तम भाव को 27 से ज्यादा अंक मिल रहे हो तो जीवन साथी अभियंता होता है।
यदि अष्टक वर्ग में मंगल किसी भी त्रिकोण में 6 से ज्यादा अंक प्राप्त कर रहा हो। तथा जिस भाव में मंगल को इस प्रकार ज्यादा अंक मिल रहा हो उस भाव का स्वामी मेष या वृश्चिक राशि में 6 या उससे ज्यादा अंक प्राप्त कर रहा हो तो जीवन साथी उच्च प्रशासनिक अधिकारी होता है।
यदि लग्नेश सातवें भाव में सूर्य से अंशात्मक युति बना रहा हो तथा सप्तमेश – द्वीतियेश की समसप्तक दृष्टि या युति बन रही हो तो पत्नी निन्दित कर्म, नौकरी या व्यवसाय से सम्बंधित होती है। “विलग्नपतयो यद्रांशयुक्तो दिनाधिपतये साकम धनेशो। जाये च जायेश समसप्तदृष्टिर्जायाभिगर्हित संयुक्त कर्मे।” असल में प्राचीन काल में औरतो का व्यवसाय करना घृणित माना जाता था। औरत किसी के घर मज़बूरी में चौका-बर्तन आदि की नौकरी तो कर सकती थी। किन्तु व्यापार-दुकानदारी आदि वर्जित था। इसलिए वर्त्तमान परिप्रेक्ष्य में इस कथन का कोई औचित्य नहीं रह जाता है।
यदि सप्तामांशेश और नवमान्शेश लग्न कुंडली में परस्पर छठे, आठवें या बारहवें बैठें हो तो जीवन साथी भ्रष्ट चरित्र वाला होगा।चाहे वह पत्नी हो या पति। और यदि दोनों में से कोई भी एक नीच का हो तो दुश्चरित्रता के कारण दोनों में से कोई एक दूसरे की ह्त्या कर देता है।
यदि सप्तमान्शेश और लग्नेश दोनों लग्न कुंडली में परस्पर केंद्र या कोण में आमने-सामने बैठे हो। तथा दोनों में से कोई भी नीच का न हो तो विवाह के बाद इस दम्पति की कीर्ति एवं धन दौलत प्रतिष्ठित राज घराने के तुल्य हो जाती है। और कोई इनके सम्मुख नहीं टिकता है।
यदि लग्नेश का मंगल से किसी भी केंद्र में योग बने या शनि का लग्नेश से सप्तम भाव में युति बने। तथा शनि एवं सप्तमेश दोनों वर्गोत्तम हो तो जीवन साथी उच्चशिक्षा प्राप्त एवं शासकीय नौकरी वाला होता है।
यदि शनि लग्नेश या दशमेश होकर तुला राशि में शुक्र के साथ हो तथा उच्चस्थ सूर्य के साथ मंगल लग्न में हो तो जीवन साथी बहुत धनी एवं उच्च पदाधिकारी होने के बावजूद भी पथभ्रष्ट, चरित्रहीन एवं कुलच्छनी होता है। या पत्नी कुलच्छनी होती है।
यदि लग्न में नीच का सूर्य या सप्तम भाव में नीच का मंगल या तीसरे भाव में नीच का गुरु हो एवम सप्तम भाव में अकेला शुक्र बैठा हो तो पति या पत्नी कामुक, नीच लोगो से सम्बन्ध बनाने वाले एवं भ्रष्ट चरित्र वाले होते हैं।
यदि सप्तमांशपति एवं द्वादशांशपति किसी स्त्री की कुंडली में छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो, तथा सप्तमेश अस्तगत या नीचगत हो तो उस स्त्री का कई पुरुषों से सम्बन्ध होता है। और यदि सप्तमांशपति तथा सपतामेश किसी पुरुष की कुंडली में छठे, आठवें या बारहवें बैठे हो, तथा सप्तमेश नीच या अस्त का हो तो उस पुरुष के कई स्त्रियों से नाजायज सम्बन्ध होते है।
यह विवरण वृहज्जातक, पाराशर होराशास्त्र, वृद्ध यवनजातकम, कीर्तिप्रकरणं, सारावली एवं खेटविलास से लिया गया है। जो प्रत्यक्ष रूप से सही प्रमाणित हुए हैं।
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