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अपूर्ण कुंडली- असत्य भविष्य कथन

वेद विज्ञान
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अपूर्ण कुंडली- असत्य भविष्य कथन
एक कुंडली के कई भाग होते हैं। इन प्रत्येक विभागों का अपना महत्व होता है। और प्रत्येक विभाग एक दूसरे के पूरक होते है। जिनके बिना कुंडली अधूरी या त्रुटिपूर्ण होती है.  जैसे एक छोटा उदाहरण लेते है. यदि जन्म स्थान की देशांतर संख्या का ज्ञान नहीं है तो समय का संस्कार नहीं हो सकता है. और फिर कुंडली में आगे की सारी गणना असत्य हो जाती है. इसी प्रकार अष्टोत्तरी, विंशोत्तरी, षोडशोत्तरी आदि दशाएं अलग अलग कुंडली के लिये प्रयुक्त होती है। प्रत्येक कुंडली का भविष्य कथन किसी एक दशा -विंशोत्तरी या अष्टोत्तरी पर नहीं किया जा सकता.
विंशोत्तरी दशा के आधार पर यह बताया जाता है कि कौन ग्रह कब कैसा फल देगा. किन्तु उससे यह नहीं बताया जा सकता है कि अमुक काम यथा नौकरी कब लगेगी या विवाह कब होगा आदि नहीं बताया जा सकता.  इसके लिये संध्या दशा एवं पाचक दशा का विश्लेषण आवश्यक है. कारण यह है की संध्या दशा भावो-पत्नी, नौकरी, संतान आदि की दशा है.
ज्योतिष लक्षित, आभाषी, अवधारित एवम संचरित क्रिया-प्रतिक्रया का परिणाम है. सिद्धांत एवं दृग्गणित की साम्यता इसका परिक्षण विन्दु होता है. इसके द्वारा निर्धारित सिद्धांतो से परिवर्तन एवं परिवर्तन से निर्धारित सिद्धांतो का पोषण होता है. ज्योतिष कर्म की सीमा नहीं निर्धारित करता है. बल्कि कर्म से उपार्जित भाग्य को परिसीमित करता है. इस प्रकार निरंतर परिवर्तन शील कर्म की अवधारणा मात्र ही ज्योतिष से प्राप्त की जा सकती है.
यही कारण है कि योगिराज भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमद्भागवत गीता में मात्र कर्म करने का उपदेश दिया है. क्योकि निर्धारित, उचित, समग्र एवम अनुशंसित कर्म से अनेक कष्टों एवं दुखो से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है. और ज्योतिष इन्ही कर्मो-उपायों यथा यंत्र, मन्त्र, तंत्र, पूजा, हवन, यज्ञ, जप, तप तथा दान आदि के बारे में दिशा निर्देश करता है.
कम्प्युटर में जो आंकड़ा डाला गया होता है, वह उसीका उत्तर देता है. वह स्वयं सोचने की शक्ति नहीं रखता है. बल्कि उसमें पहले से सोची हुई बात भरी रहती है. जिसका समसामयिक विचलन या संचरण से कोई सम्बन्ध नहीं होता है. यही कारण है कि कम्प्युटर से भैरवी, छाया, पाचक, वर्गांतरण आदि दशाओं एवम आगत का निर्धारण नहीं हो पाता है. सत्य भी है, निरंतर परिवर्तनशील गतिविधियों का निर्धारण किसी दशा विशेष के आधार पर निश्चित एवं निर्धारित स्थिर तथ्य से कैसे किया जा सकता है? जैसा कि आज कल कम्प्यूटर से किया जा रहा है.
इसीलिए ज्योतिष पितामह महर्षि पाराशर ने कहा है कि-
“ऊहापोह पटु ———-गणितेषु कृतश्रमः ———“
किन्तु वर्तमान समय में श्रम से भयभीत होने या उचित पारिश्रमिक (दक्षिणा) न मिलने के कारण ज्योतिषी वृन्द संध्या दशा, पाचक दशा, छाया दशा, कालचक्र, वर्गांतरण, भैरवी, वलय सारणी तथा कूट चक्र आदि की गणना नहीं कर रहे है.  और तो और अधिकाँश कुंडलियो में तो योगिनी दशा भी नहीं निकाली जा रही है. और सबसे पश्चात्ताप की बात तो यह है कि बिना निर्धारण के प्रत्येक कुंडली में चाहे उसके लिए लागू हो या न हो, विंशोत्तरी दशा निकालकर कुंडली की इतिश्री कर दी जा रही है.
इस तरह अधूरी कुंडली से भविष्य कथन कभी सत्य नहीं हो सकता है .
पंडित आर के राय
Email- khojiduniya@gmail.com

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