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प्रबल भाग्य सुख संपत्ति दाता

वेद विज्ञान
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प्रबल भाग्य सुख संपत्ति दाता
भाग्येन विनश्यते दारिद्र्यं आधि व्याधि समन्वितम।
शोक संताप क्षयं याति भय बंधन च प्रमुच्यते।
यदि भाग्य बलवान हो तो दरिद्रता, शोक, भय एवं रोगादि सबका नाश हो जाता है। कुंडली में भाग्य भाव यदि समृद्ध हो तो अनेक दोष स्वतः दूर हो जाते हैं।कष्ट एवं विघ्न बाधा का निवारण सरलता पूर्वक हो जाता है। रात दिन परिश्रम करने वाला व्यक्ति भी अपनी असफलता से दुखी हो जाता है। हर तरह से प्रयास करने के बावजूद भी निराशा, हताशा एवं असफलता ही हाथ लगती है। कारण यह है कि यदि भाग्य भाव निर्बल है तो कोई भी काम सफल नहीं होने देगा। अथक परिश्रम, उच्च शिक्षा, समुचित सहयोग आदि सब बेकार सिद्ध होगें। हम यह सोच कर कोई काम करेगें कि अमुक काम करने का यह तरीका उचित एवं सरल है। किन्तु अंत में हानि ही हाथ लगेगी।
कुंडली में यदि निम्न स्थिति हो तो भाग्य साथ नहीं देगी-
  • यदि अष्टमेश एकादशेश के साथ नवम भाव में बैठे तो दुर्भाग्य की स्थिति होती है। चाहे भले अष्टमेश गुरु, शुक्र या बुध ही क्यों न हो। किन्तु यदि शनि ही क्यों न हो यदि मकराधिपति होकर अष्टमेश के रूप में नवम भाव में एकादशेश के साथ बैठे तो व्यक्ति परम भाग्य शाली होगा। यद्यपि ऐसी स्थिति में नवम भाव में मंगल षष्ठेश हो सकता है। किन्तु ध्यान रहे यदि आठवें में मकर राशि है तो भाग्य में स्वयं शनि अपने घर का होगा।
  • गुरु ही क्यों न हो, यदि धनु राशि का अष्टमेश होकर नवम भाव में भले गजकेसरी योग बनावे जातक भाग्यहीन होगा।
  • शुक्र ही क्यों न हो, यदि तुला राशि का अष्टमेश होकर अपने मित्र एवं लाभेश शनि के साथ भाग्य भाव में क्यों न हो, जातक अभागा होगा।
  • लग्नेश यदि नवमांश कुंडली में भले उच्चस्थ, स्वक्षेत्री या मित्र युक्त हो, किन्तु आठवें भाव में है, तो जातक भाग्यहीन होगा।
  • छाया दशा का दूसरा, पांचवां या दशवाँ भाग यदि राहु, मंगल या सूर्य के किसी भी अंश में पड़े, जातक भाग्यहीन होगा।
  • यदि उस भाव की पाचक दशा जिसमें अष्टमेश बैठा हो, किसी भी महादशा में लग्नेश की अन्तर्दशा के साथ आते ही दुर्भाग्य प्रारम्भ होगा।
  • यदि नवमेश नीच का होकर वक्री लग्नेश के साथ छठे, आठवे या बारहवे बैठा हो तो जातक भाग्यहीन होगा।
  • यदि नवम भाव में सूर्य लग्नेश ही होकर क्यों न बैठे, किन्तु यदि उदित वक्री शनि के साथ बैठ जाय तो जातक अभागा होगा।
  • यदि भाग्य भाव में अपरान्तक नक्षत्र उदित हो तथा भाग्येश स्वयं ह्रस्व नक्षत्र में स्थित हो तो जातक अभागा होगा।
  • यदि कोई भी स्वाभाविक पापग्रह षष्ठेश एवं अष्टमेश होकर संयुक्त रूप से आठवें बैठ जायँ तो भाग्येश भले उच्चस्थ होकर केंद्र या कोण में ही क्यों न बैठे, जातक निश्चित रूप से अभागा होगा।

ध्यान रहे, नवें भाव में बिन्दुपात, आसवी, छिद्रा या व्यातापक संधि रहने पर निवारण का कोई उपाय शास्त्र में नहीं बताया गया है सिवाय ईश पूजा के। जगन्माता शक्तिपुन्जा देवी दुर्गा ही ऐसे व्यक्ति को दुर्भाग्य से मुक्ति दिला सकती है।

नवें भाव में जो नक्षत्र जितने अंश पर हो, उसमें उन अंशो को जोड़े
  1. जिस भाव में जिस नक्षत्र के जितने अंश पर भाग्येश बैठा हो।
  2. जिस ग्रह की नवें भाव पर दृष्टि हो वह ग्रह जिस नक्षत्र के जितने अंश पर बैठा हो।
  3. जिस ग्रह की भाग्येश पर दृष्टि हो वह जिस नक्षत्र पर बैठा हो।

इन सबको जोड़ ले। योग में 9 से भाग दे। जो शेष बचे उसे रख ले। यदि योग 9 से कम हो तो योगफल को 9 में से घटा दे। और जो शेष बचे उसे ग्रहण करे। तथा उतने माशा की चौड़ाई का एक परतीय भोजपत्र ले। भाव एवं भावेश के निर्धारित पुष्पराग ले। उसमें भाग्येश का रत्न डाल कर एक सप्ताह छोड़ दे। एक सप्ताह बाद उसे निकाल कर बिना साफ़ किये या धोये उस भोजपत्र में लपेट कर भावेश के अंग जैसे बुध का बायाँ हाथ होगा, उसमें बाँध दे। एक माह बीत जाने के बाद उसे भोजपत्र से निकाल कर उस रत्न की अंगूठी बनवाकर निर्धारित अंगुली में पहन ले।

वैसे यह विधि अनुभव में सदा ही खरी उतरी है। इसके अलावा इसकी प्रशंसा “निर्णय गवाक्ष”, “भाग्य प्रवाह”, “रत्न किञ्जलिका” तथा “जाताकानुधेयम” में विस्तृत रूप में किया गया है। महाराष्ट्र के कोंकण, सौराष्ट्र, उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर, कौशाम्बी, आसाम के पूर्वोत्तर क्षेत्र, समूचा सह्याद्रि क्षेत्र, दक्षिण भारत एवं जम्मू-हिमाचल के मध्य के क्षेत्र में आज भी इस विधान का विद्वान पंडितो द्वारा सफल प्रयोग किया जा रहा है।
आधुनिक रसायन विज्ञान भी लगभग इसकी भौतिकतावादी महत्ता से चकित है। किन्तु आधुनिक विज्ञान अर्थवादी होने के कारण इस तरफ ज्यादा तवज्जो देना मुनासिब नहीं समझता। क्योकि यह ढोंगी पाखंडी पंडितो का विषय है।
यही कारण है कि पूर्वानुमान लगाने वाले अपने उच्च तकनीकी आधारित अत्याधुनिक संयंत्रो से सुसज्जित अतिविकसित कहलाने वाले यूरोप एवं अमेरिका जैसे देश अनेक बर्फीले एवं समुद्री तूफानों से आकस्मिक धन एवं जन संहार झेल रहे है। किन्तु उनका संयंत्र इसका कोई पूर्वानुमान नहीं दे पाता। और हठवादिता (या बेशर्मी) इतनी कि ज्योतिष को हिन्दुओं का विषय मानकर उस पर विचार करना अपनी तौहीनी समझते है। वैसे छिपे या अप्रत्यक्ष तौर पर आज इन देशो का एक विशाल उच्च शिक्षित वर्ग इस पर आँख बंद कर विश्वास करने लगा है। चीन, जापान, मिश्र, पुर्तगाल, दक्षिणी-पूर्वी आस्ट्रेलिया तथा दक्षिणी-पश्चिमी अफ्रिका में इस ज्योतिषीय तकनीकी को आज खूब सम्मान मिला हुआ है। लेकिन जिस घर में इस विधा का जन्म एवं संस्करण हुआ वही इसे अपमानित, तिरस्कृत एवं उपेक्षित कर विदेशी विधाओं को सम्मानित किया जा रहा है। “हरि इच्छा बलवान”
पंडित आर के राय
Email- khojiduniya@gmail.com

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