शुक्र एवं बुध दोनों ही स्वाभाविक शुभ ग्रह हैं। दोनों ही पवित्र एवं सात्विक ग्रह हैं। किन्तु इनकी थोड़ी भी युति यदि अशुद्धता या अशुभता से हो जाती है तो इन्हें स्वाभाविक अनूर्जता का शिकार हो जाना पड़ता है। यही कारण है कि सूर्य जैसे क्रूर-उग्र ग्रह की युति प्राप्त होने पर भी बुध अति शुभ बुधादित्य योग बनाता है। किन्तु यदि यही योग छठे-आठवें-बारहवें भाव में बनाता है तथा द्वादशांश में बुध मंगल, शनि या शुक्र की राशि में पड़ता है तो कुष्ठ, त्रिशांश में यदि इन्ही ग्रहों की राशि में पड़ता है तो गठिया, आमवात, संधिवात, षोडशांश में इन्ही राशियों में पड़ता है तो ह्रदय रोग आदि होता है।
इसी प्रकार शुक्र यदि नवांश में बुध के साथ, बुध की राशि तथा द्वादशांश में मंगल या शनि की राशि में हो तो अस्थि अर्बुद, त्रिशांश में हो तो वसार्बुद (कैंसर), षोडशांश में हो तो रक्तार्बुद या रक्त कर्कट – जिसे चिकित्सा विज्ञान की वर्त्तमान भाषा में “एड्स” कहा जाता है, तथा दशांश में वक्री शनि या मंगल के साथ हो तो कुब्ज (Carbuncle) या कुबडापन होता है।
एक सीधी एवं सपाट सोच आम लोगो में बनी हुई है कि पञ्च महापुरुष योग बनाने वाले ग्रह कभी भी रोग नहीं देते। किन्तु यह भ्रम है। कोई भी ग्रह सदा अपने अगले घर का फल देता है। जैसे मकर लग्न में शनि लग्न में बैठ कर पञ्च महापुरुष योग बनाएगा किन्तु शुभ फल अपनी अगली राशि कुम्भ अर्थात धन भाव का देगा। ऐसी स्थिति में यदि शनि की युति लग्न में बुध से होती है तो यही शनि कुष्ठार्बुद या गलित कुष्ठ तथा रक्त रोग देगा।
इसी प्रकार वृषभ राशि में लग्न में शुक्र पञ्च महापुरुष योग निर्माण करते हुए यदि गुरु से युति करे तो द्वितीयार्ध में गठिया, आमवात, संधिवात, रक्त चाप एवं ह्रदय रोग अवश्य देगा।
अब यहाँ पर आप देख सकते है कि दोनों ही ग्रह – गुरु एवं शुक्र अत्यंत शुभ ग्रह लग्न में बैठे है। किन्तु इस शुक्र का शुभ फल पञ्च महापुरुष के रूप में शत्रु नाश, ख्याति वृद्धि, पदोन्नति के रूप में मिलेगी। किन्तु आँत (Intestine) एवं गुर्दे (Kidney) की जटिल व्याधि देगा।
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