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ज्योतिष एवं आयुर्वेद

वेद विज्ञान
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ज्योतिष एवं आयुर्वेद
ग्रहों के विकिरण अर्थात उनसे निकलने वाली किरणों से समस्त जगत  प्रभावित होता है। तथा प्राक्रतिक संतुलन एवं नियमन भी इनके ही कारण होता है। इनकी किरणे वनस्पतियो, खनिज, वायु एवं अन्य तत्वों पर प्रभाव डाल कर नित्य नवीन भौतिक एवं रासायनिक परिवर्तन करती रहती हैं। इसे प्राचीन वैज्ञानिकों (ज्योतिषियों एवं ऋषि-मुनि) आदि ने नजदीक से देखा एवं अनुभव किया। फिर उसके बाद उनका एक दूसरे से सम्बन्ध देखा। उनका एक दूसरे पर प्रभाव देखा। तत्पश्चात उसे ज्योतिष एवं भिषक (चिकित्सा) दो भागो में विभक्त किया। भिषक दो शब्दों से बना है। “भेश” या भिषः अर्थात ग्रह तथा कृत्य या “क” अर्थात कार्य। ग्रहों के प्रकृति से सम्बंधित विशेष कार्य को भिषक या वैद्यक कहते हैं।
प्रसिद्द प्राचीन ज्योतिषाचार्य जिनका युवावस्था में नाम मार्कंडेय भट्टाद्रि था, तथा जिन्हें बाद में उनकी विलक्षण बौद्धिक क्षमता एवं विद्वत्ता के कारण मन्त्रेश्वर के नाम से जाना गया, उनकी कालजयी कृति “फलदीपिका” में ग्रहों के द्वारा प्रभावित होने वाले या उनसे सम्बंधित खनिज, वनस्पति तथा द्रव्यों का विशद विवरण उपलब्ध है। उदाहरण स्वरुप फलदीपिका के दूसरे अध्याय “ग्रह भेद” में 28वें एवं 29वें श्लोक को देखते हैं-
“गोधूमं तांडूलम वै तिलचणककुलुत्थाढकश्याममुद्गा निष्पावा माष अर्केन्द्वसितगुरुशिखिक्रूरविद्भृग्वहीनाम।   ———-सौराष्ट्रावन्ति सिंधू ———कीकटान्श्च—–माणिक्यं———सौम्यस्य गारुत्मतम———देवेडयस्य च पुष्पराग——-गोमेधवैदुर्यके।”
इसमें बताया गया है कि किन अनाज, देश एवं रत्नों से किन ग्रहों का सम्बन्ध होता है। इसी अध्याय में श्लोक सत्रह से बीस तक यह बताया गया है कि किस ग्रह का अन्य किन वस्तुओ से सम्बन्ध है। इसका और अधिक विश्लेषण आचार्य वराह मिहिर कृत वृहत्संहिता के “ग्रह भक्तियोगाध्याय” के सोलहवें अध्याय में दिया गया है। यही बात कश्यप ने भी बतायी है-
“अरण्यवासिव्यालाश्च कार्षका बालकास्तथा।
गौरपत्यं च किञ्जल्कम पुंसङ्ग्या ये च जन्तवः।
सर्वेषां भाष्करः स्वामी तेजस्तेजस्विनामपि।”
महर्षि पाराशर ने अपने “वृहत्पाराशरहोराशास्त्रम” के “सृष्टिक्रमवर्णनाध्याय” के श्लोक संख्या चालीस एवं इकतालीस में इसी प्रकार ग्रहों का वनस्पतियो से सम्बन्ध बताया है।
“स्थूलान जनयति त्वर्को दुर्भगान सुर्यपुत्रकः।
क्षिरोपेतान्स्तथा चन्द्रः कटुकाद्यान धरासुतः।
सफलानफलान्जीवबुधौ पुष्पतरूनकविः।
नीरसान सुर्यपुत्रश्च एवं ज्ञेयाः खगा द्विज।”
उसके बाद जातक ग्रंथो जैसे- पाराशर होराशास्त्र, वृहत्जातक, वृद्धयवनजातकम, पूर्व एवं उत्तर कालामृत आदि , से यह निर्धारित किया जाता है कि किस ग्रह या राशि के कारण क्या रोग होता है। ‘जातकालंकार” के षष्ठ भाव फल वाले अध्याय के प्रथम श्लोक को देखें-
“षष्ठेशे पापयुक्ते तनुनिधनगते नु: शरीरेव्रणास्यु ——–शशितनयो वाक्पतिर्नाभिमूले।”
अर्थात षष्ठेश पापग्रहो से युक्त लग्न में अथवा अष्टम भाव में पडा हो तो ऐसे जातक के शरीर में व्रण (घाव) बहुत होता है। इस प्रकार मान लिया की षष्ठेश बुध है। तथा वह छठे वृश्चिक राशि में पडा है। तो वृहत्संहिता के “ग्रहभक्तियोगाध्याय” के सोलहवें अध्याय के श्लोक संख्या उन्नीस के अनुसार –
“आरक्षकनटनर्तकघृततैलस्नेहबीजतिक्तानि।
व्रतचारि रसायन कुशल वेसराश्चन्द्रपुत्रस्य।”
घी या तिल के तेल में अशोक के पत्ते को पीस कर रख लें। अशोक वृक्ष बुध का वृक्ष है। इस पत्रप्रधान वृक्ष के बारे में फल दीपिका के “ग्रह भेदाध्याय” के श्लोक संख्या 37 में स्पष्ट किया गया है।-
“अन्तः सारसमुन्नतद्रुररुणो वल्ली सितेंदु स्मृतौ गुल्मः केतुरहिश्च कंटकनगौ भौमार्कजौ कीर्तितौ।
वागीशः सफलो अफलः शाशिसुतः क्षीरप्रसूनद्रुमौ शुकेंदु विधुरोषधिः शनिरसारागश्च सालद्रुमः।”
उसके बाद वृश्चिक राशि की वनस्पति-
“अष्टमराशाविक्षु: सैक्यं लोहान्यजाविकम चापि।” के अनुसार गन्ना के रस (सिरका) में कांसा पीस कर रख लें। तथा ऊपर के अशोक के पत्ते के मिश्रण को भी इसी मिश्रण को मिलाकर लेप करने से वह घाव ठीक हो जाएगा। इसकी प्रशंसा के लिए आयुर्वेद का भैषज्य तरंग देखा जा सकता है।
इस कांस्य भष्म, सिरका, घी एवं अशोक के मिश्रण को आयुर्वेद के प्रत्येक आचार्यो ने एक मत से व्रणघ्न माना है। देखें आयुर्वेद सार संग्रह, भैषज्य रत्नावली, सिद्ध योग संग्रह, रसराज सुन्दर, वृहत निघट्टू रसायन तथा रसयोग सार एवं शारंगधर संहिता आदि।                                                                                     किन्तु यह एक अत्यंत जटिल, श्रम साध्य एवं उबाऊ कार्य है। इसके लिए कुछ तथ्यों की जानकारी के लिए संहिता ग्रन्थ, कुछ के लिए फलित एवं कुछ के लिये साहित्यिक ग्रंथो का सहयोग लेकर विविध तथ्यों एवं कारको को एकत्र करना होगा। तब यह स्वतः सिद्ध हो जाएगा कि आयुर्वेद एवं ज्योतिष एक दूसरे के पूरक है।
पंडित आर के राय
Email- khojiduniya@gmail.com

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