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वृहत्कात्यायनी अनुष्ठान्न – कन्या विवाह की बाधा

वेद विज्ञान
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वृहत्कात्यायनी अनुष्ठान्न – कन्या विवाह की बाधा
प्रस्तावना- आज से लगभग दस वर्ष पूर्व जब कात्यायनी अनुष्ठान्न से सम्बंधित मेरे लेख को दैनिक जागरण के इलाहाबाद संस्करण में आदरणीय पंडित रामनरेश त्रिपाठी जी ने प्रकाशित किया तो मुझे बीस पच्चीस लोगो से इसकी सफलता की सूचना मिली। किन्तु मैंने इसे महज संयोग मानकर चुप्पी साध ली। कारण यह था कि मैंने यह प्रसंग किसी प्रामाणिक ग्रन्थ से नहीं लिया था। और न ही मुझे इसका कोई वैज्ञानिक आधार ही मिल पा रहा था। क्योकि इसमें प्रयुक्त एकादशावलेह जो कुछ वनस्पतियो, भष्मो, रसायनों एवं द्रव पदार्थो का मिश्रण था उसका वैज्ञानिक प्रभाव तो दिखाई दे रहा था। जैसे बिरबलूची का रस मेलैटोनिक एसिड होता है जो पत्रक भष्म के टिनैलियम फेराक्सिलिन के साथ मिलकर चेहरे की दुर्बलता दूर कर सारे बदन पर ओज एवं स्फूर्ति ला देता है। थोड़ा बहुत ऐसा ही अन्य लाभ दिखाई दे रहा था। किन्तु और कोई तथ्य मुझे नहीं मिल पा रहा था। इसीलिए इस अनुष्ठान्न से लोगो को होने वाले लाभ को मैं मात्र संयोग मानकर रह गया। वह भी लाभान्वित होने वालो की संख्या बीस पच्चीस तक ही सीमित थी। पुनः वर्ष 2010 मेरे इस लेख को महाराष्ट्र के लोकमत एवं मध्य प्रदेश के दैनिक भाष्कर में प्रकाशित किया गया। इसकी बहुत अच्छी प्रतिक्रया मिली। जब वर्ष 2011 में यह राजस्थान पत्रिका के गुजरात एवं बंगलोर संसकरण में प्रकाशित किया गया और मुझे ढेर सारे अनुकूल जबाब मिले तब मैंने इसे महा भगवती देवी कात्यायनी का अतुलित प्रभाव मानकर तथा इसके वैज्ञानिक तथ्यों का विश्लेषण अपने ज्ञान से बहुत दूर मानकर इस लेख को जागरण जंक्शन पर देने का निर्णय लिया।
इसे सबसे पहले मैंने महर्षि कात्यायन की कथा में पढ़ा था। उसके बाद इसका कुछ बिगड़ा हुआ रूप बेताल भैरवी में पढ़ा। इसीसे मिलता जुलता आख्यान यंत्र रहस्यम एवं शिवपुराण में मिला। यही चीज मार्कंडेय पुराण (चौखम्भा प्रकाशन) में भी पढ़ने को मिला।
कात्यायनी अनुष्ठान्न विशेष रूप से कन्या के विवाह में आने वाली बाधाओं को दूर करता है। सर्वप्रथम जिसके लिए यह अनुष्ठान्न करना हो उसकी लगभग उम्र एवं प्रचलित नाम के आधार पर न्यूनाधिक विधि के सिद्धांत के अनुसार अपनी क्षमता के अनुसार सोने, चांदी या तांबे के सूत भर मोटे पत्तर पर कात्यायनी यंत्र उकेर (Engrave) ले। उसके बाद पुराने बने हुए एकादशावलेह जिसमें ग्यारह औषधियां मिली होती है, उसमें लपेट ले। तथा हरे ताजे केले के पत्ते पर उसे रखकर एवं स्वयं भी पूर्वाभिमुख होकर उस यंत्र पर निम्न मन्त्र पढ़कर एक सौ आठ बार गाय का दूध आम के पत्ते से टपकाए-
“ॐ नमो यन्त्रम महाप्रोक्तम गुरुतर फलोपेतम अखंड शक्ति संयुक्तम सुषुप्तावस्थाम त्यक्त्वा जागृतम भव। स्वाहा।”
उसके बाद उसे मधु, कपूर एवं घी मिश्रित दीपक की बत्ती वाले दीपक से उपरोक्त मन्त्र पढ़ते हुए इक्कीस बार दीपक दिखाये। उस पर इक्कीस लाल गुड़हल के फूल या न मिलने पर कोई लाल फूल चढ़ाए। उसके बाद उपरोक्त मन्त्र पढ़ते हुए गंध अर्पित करे। फिर मत्था टेक कर उसे दाहिने हाथ से उठाकर दूध से धोकर साफ़ कर ले। उसके बाद उसे साफ़ पानी से अच्छी तरह धो लेवे।
यह काम गुरूवार को करे। उसके बाद उसे किसी शुद्ध जगह पर रख देवे। उसी दिन से प्रतिदिन इक्कीस दिन तक पान चबाते हुए निम्न मन्त्र का कम से कम एक हजार बार वज्रमुखी रुद्राक्ष के दाने वाले माला से जाप करे। ध्यान रहे आसन केले के पत्ते का ही होगा। भले उसके ऊपर कोई कम्बल या ऊनी वस्त्र डाल दे। शरीर पर वस्त्र भी पीला या लाल ही होना चाहिए। मन्त्र निम्न प्रकार है –
“ॐ कात्यायनि महामाये महायोगिन्य धीश्वरी। नन्द गोप सुतम देवि पतिम में कुरु ते नमः।”
जाप के बाद उठने से पहले यंत्र को झुक कर शीश नवाए तथा निम्न मन्त्र पढ़े –
“ॐ नमो देवी कष्टनिवारिणी भवभय हारिणी विघ्न विनाशिनी मम कन्यका सकल दोष पापमपा कुरु। ॐ श्री कात्यायनी देव्यै नमो नमः।”
ध्यान रहे यदि स्वयं पाठ करना हो तो बहुत अच्छा रहेगा। किन्तु पाठ के अनुनासिक भेद आदि से उच्चारण में अशुद्धि का भय हो तो किसी विद्वान एवं इमानदार ऊर्ध्वनिष्ठ ब्राह्मण से पाठ करावे। किन्तु यदि स्वयं पाठ करना हो तो इस ऊपर के मन्त्र में “मम कन्यका” के स्थान पर केवल “मम” का ही पाठ करे।
विशेष- पूरे पूजा-पाठ के दौरान निरामिष भोजन करते हुए संयमित रहे। तख्ते पर सोये। दिन में यंत्र को सदा अपने साथ पाकिट में डाले रहे। रात में पुनः इसे पूजा के स्थान पर रख दे। गुरूवार के दिन पीले लड्डू का प्रसाद बाँटे। उस दिन केला न खाए। केले के वृक्ष के जड़ में जल चढ़ाये। पूरे जप के दौरान पीले सरसों के तेल का दीपक जलाए।
अवलेह के ग्यारह पदार्थ निम्न प्रकार है- वज्र भष्म, रौप्य भष्म, स्वर्ण भष्म, अजितासव, मृगांकासव, भृंगराजासव, सयनिका (या हरिद्रा), जावित्री, पत्रक मूल, बीरबलूची (या लाल चन्दन) एवं अमरबेल। इनकी मात्रा यजमान के नाम एवं उम्र के अनुपात में निर्धारित होती है। जिसे निराजनी मत से निर्धारित किया जाता है। यह अवलेह कदापि नया बना हुआ नहीं होना चाहिए। अन्यथा यंत्र बिगड़ जाएगा। उसके अक्षर मिट सकते हैं। यह किसी भी रसायन शाला में या रसायनज्ञ पंडित के यहाँ मिल सकता है। या यदि स्वयं बनाना हो तो यह मिश्रण तैयार कर के कम से कम इक्कीस दिन तक सम्पुट में रखे। उसके बाद प्रयोग करे।
किसी ज्योतिषी से पहले यह निश्चित करवा ले कि कन्या किसी भी तरह शनि या राहु के प्रभाव में तो नहीं है। यदि ऐसा हो तो पहले हाथ या गले में शनि का किंकिण यंत्र डाल ले। किन्तु जाप के समय उसे उतार कर रख दे। किंकिण यंत्र कोई भी जानकार पंडित दो-तीन दिन में बनाकर दे देगा।
पंडित आर के राय
Email- khojiduniya@gmail.com

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