आषाढ़ मांस में अपने चातुर्मास प्रवास के अन्तराल में किसी अति सुरक्षित एवं सुखकारी स्थान की खोज में महर्षि कश्यप के द्वारा नियुक्त भगवान अपनी दूती से जब पूछ रहे थे। तब उस महा ज्ञानिनी “वृहत्पाशा” ने बड़े ही हताशा में तत्कालीन स्थिति के अनुसार यह उदगार भगवान से व्यक्त किया था।
अर्थात चन्द्रमा के राशि परिवर्तन के समय यदि आठवें भाव में क्रम से पांचो ग्रह – सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध एवं गुरु पड़ जाएँ। तथा शनि उच्चस्थ होकर राहु से युक्त हो जाय। जिस राशि में यह पञ्चग्रही योग बने उसका स्वामी वक्री होवे। तथा तत्कालीन करण “वणिज” होवे तो सम्बंधित उद्योगों का या तो सत्यानाश होवे या वह उद्योग जनता के लिए विनाश कारी होवे। और जन सामान्य मंहगाई की असह्य पीड़ा से बिलबिला उठे।
6 जुलाई 2013 शनिवार को आषाढ़ कृष्ण त्रयोदशी के दिन मृगशिरा नक्षत्र के तृतीय चरण में यह योग बन रहा है। उस दिन वणिज करण है। इसी दिन चन्द्रमा अपने उच्च अर्थात वृषभ राशि से अवरोही होते हुए दिन के चार बजे के लगभग में मिथुन राशि में प्रवेश कर रहा है। क्षितिज पर तत्काल में वृश्चिक राशि उदित रहेगी। मिथुन राशि का स्वामी बुध वक्री है। और शनि मध्य अर्थात वक्री-मार्गी की संधि पर है। इस प्रकार आठवें भाव में मिथुन राशि में पञ्चग्रही योग बन रहा है।
उत्तरा खंड की विनाश लीला तो समाप्त हो गई। यह दुर्घटना तो जन सामान्य के साथ हुई है। किन्तु अब जो दुर्घटना स्थान लेने जा रही है उसमें गणमान्य एवं प्रसिद्द हस्तियों का संहार होगा।
बड़े बड़े उद्योग मटियामेट होगें। खाद्यान्न लुप्त होता नज़र आयेगा। चापार्ध में यह स्थिति होने के कारण भारत का आधा हिस्सा इसमें पूरी तरह सम्बद्ध होगा। अर्थात आधा दक्षिण भारत, पूरा पश्चिम भारत एवं एवं आधा उत्तर भारत इसमें संलिप्त होगा।
रस रसायन अर्थात औषधियों, खाद्य तेलों, मदिरा, इंधन (पेट्रोल, डीजल आदि) की भयंकर महामारी उपस्थित होगी।
रेवती, अश्विनी, अनुराधा, ज्येष्ठा एवं मृगशिरा नक्षत्र में जिनका जन्म हुआ हो उन्हें विशेष सावधान रहने की आवश्यकता है।
इस दिन अंतरिक्ष का नज़ारा कुछ अलग ही होगा। शाम को सूर्यास्त से पूर्व ही पश्चिम दिशा बहुत ही भयावह रूप से लाल हो जायेगी। और यदि आसमान साफ़ रहा तो दक्षिण दिशा में सूर्यास्त से पूर्व ही खूब चमकते तारे दिखाई देने लगेगें। सूर्य-मंगल का परस्पर युद्ध बहुत ही उपद्रव देने वाला होगा।
इसका प्रभाव विदेशो में मध्य अमेरिका, पश्चिमी रूस, पूर्वी तटीय आस्ट्रेलिया, अरब सागर से सटे समस्त देश एवं यूराल पर्वत का उत्तरी भाग बहुत ज्यादा होगा।
“मासम शुक्र बुधादित्या —-” के अनुसार यह परिणाम भाद्रपद के अंत तक (लगभग बीस सितम्बर तक) प्रत्यक्ष दिखाई दे जायेगें। यद्यपि गुरु का भोग काल बहुत अधिक होता है। जिससे विद्या क्षय, पढ़ने वालो की उपेक्षा, नाचने-गाने वालो, मदारी एवं खिलाडियों का भूरिभूरी सम्मान तथा बौद्धिक संपदा का तिरस्कार अत्यधिक होगा। यह सब गुरु के कारण होगा।
समस्त देवी देवताओं की आराध्या सर्वेश्वरी दुर्गा माता की अराधना सर्वथा श्रेयस्कर होगी।
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