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यंत्रो की महिमा एवं आधुनिक परिप्रेक्ष्य में स्वरुप

वेद विज्ञान
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यंत्रो की महिमा एवं आधुनिक परिप्रेक्ष्य में स्वरुप
भविष्य के भयावह परिणाम से आँख मूंदे, सुखी भविष्य के लिए अपने वर्तमान को दाँव पर न लगाने की पाखण्ड पूर्ण दार्शनिकता का लबादा ओढ़े वर्तमान समय में अंधाधुंध दौड़ लगा रही मानवता, प्रकृति या पराप्रकृति से मिलने वाले अनमोल उपहार को भी दुकानदार की दूकान से खरीदे जाने वाले नित्य चर्या के प्रयोग की सामग्री मानते हुए हठ पूर्वक दावा कर रहा है कि मैंने पैसा तो दे दिया अब सामग्री तो दे दो. अर्थात मैंने यंत्र या पूजा, अनुष्ठान्न या यज्ञ तो कर दिया अब मनोकामना तो जल्दी पूरी करो. और मनोकामना पूरी करने वाले उस महान शक्ति सम्पन्न पुरुष, प्रकृति या पराप्रकृति को भी अपनी ही तरह संकुचित बुद्धि, चेत या संकीर्ण ज्ञान वाला मानते हुए “चट मंगनी पट व्याह” की ही अपेक्षा करता है. यह नहीं सोचता है कि हम याचक होकर इतनी बुद्धि रखते है तो जो दाता है उसके पास कितनी बुद्धि या कितनी तीक्ष्ण और दूर दृष्टि होगी?
अस्तु हम मुख्य विषय पर आते हैं. प्राचीन ग्रंथो में वर्णित विविध छोटे बड़े यंत्र आज की अंग्रेजी भाषा में “CHIPS” के नाम से जाने जाते है. आप को आश्चर्य होगा कि इस “CHIPS” की अवधारणा या “CONCEPT” ही प्राचीन यंत्रो के सिद्धांत पर आधारित है. तथा विविध “MEMORY CARD” या मोबाइल के “SIM” इन्ही यंत्रो के मूल भूत सिद्धांत पर बनाये गये हैं.
इन विविध मेमोरी कार्ड या चिप्स में क्या होता है? विशेष तरह के किरण समूह की भावना निर्धारित धातु को प्रदान कर उसे आयुर्वेद के सिद्धांत “मर्दनम गुण वर्धनम” के आधार पर आवेशित या “CHARGED” कर दिया जाता है. तथा उस आवेशित धातु पटल से उत्सर्जित होने वाली किरण अपने को प्राप्त भावना की क्षमता के अनुरूप अंतरिक्ष की संवेदनाओं को कर्षित कर लेती है.
इस सन्दर्भ में मैं श्रीरामचरितमानस की एक अंतर्कथा का उद्धरण देना चाहूँगा। जब पवन पुत्र हनुमान सीता माता का पता लगाने लंका की तरफ जाते हुए समुद्र के ऊपर से उड़ान भर रहे थे. तो समुद्र में उन्हें एक अंतरिक्ष यान वेधक संयंत्र (Anti Aircraft Gun) दिखाई दिया। जिसे रावण ने अपनी सीमा सुरक्षा के लिए समुद्र में स्थापित कर रखा था. देखें सुन्दर काण्ड-
“निशिचरि एक सिन्धु मँह रहई. करि माया नभ के खग गहई.
जीव जंतु जे गगन उड़ाही। जल विलोकि तिन्हकी परछाही।
गहई छाँह सक सो न उडाई। एहि विधि सदा गगनचर खाई.”
अर्थात जो भी जीव जंतु जो आकाश मार्ग से लंका की तरफ उड़ते हुए जाता था. उसकी परछाई पकड़ कर वह यंत्र (राक्षसी) उसे खींच कर समुद्र में डूबा देता था.
यह एक तरह का यंत्र या आज की अंग्रेजी भाषा का सिम ही था. ध्यान दें, यूरेनियम के अत्यंत छोटे खण्ड या टुकडे या परमाणु के नाभिक (Nucleus) के इलेक्ट्रान की  कक्ष्या या Orbit या संचार मार्ग को स्खलित या तोड़ दिया जाय तो इलेक्ट्रान के उस विखंडन या Explosion से जो ऊष्मा श्रृंखला बद्ध प्रतिक्रिया या Chain Reaction  से उत्सर्जित होगी उससे एक रेलगाड़ी 100 किलोमीटर की गति से 100 वर्षो तक निरंतर चल सकती है. यह पुराण या वेद का कथन नहीं बल्कि आज के आधुनिक विज्ञान की खोज है. इसी ऊर्जा को अन्य प्रतिरोधी सक्षम किरण समूह से नियंत्रित कर जब एक निश्चित एवं निर्धारित दिशा में लगाया जाता है तो वह एक चमत्कारिक यंत्र बन जाता है. हम एक अत्यंत साधारण पौराणिक या तांत्रिक यंत्र को उदाहरण के लिए लेते है. आप को यदि विज्ञान की साधारण भी जानकारी होगी तो यह ज्ञात होगा कि ताम्बा ऊर्जा या विद्युत् आवेश का सर्वोत्तम सुचालक (Good Conductor) होता है. इसीलिए यंत्र निर्माण के लिए ताम्बे की ही प्लेट ली जाती है. उस ताम्बे की प्लेट को पहले फिटकरी के पानी से धोते है. फिटकरी में पोटैसियम, अल्यूमिनियम, गंधक एवं सान्द्र हाई ड्रोक्लोराइड के 24 अणु पाये जाते है. गंधक के कारण ताम्बे को सघन आवेश मिलता है. इसे प्रतिदिन यदि एक सप्ताह धोया जाय तो यह ताम्बे की प्लेट पूर्णतया आवेशित हो जाती है. उसके बाद उसे एक सप्ताह तक चुकंदर एवं धतूरे के रस में डुबाकर बलिस्त भर गहरे ज़मीन में गाड़ देते हैं. उसके बाद उसे बाहर निकाल कर गाय के कच्चे दूध से भली भाँती धो देते हैं. ध्यान रहे चुकंदर में लौह एवं धतूरे में फास्फोरस की मात्रा बहुत ज्यादा होती है. इस प्रकार उस आवेशित ताम्बे की प्लेट में तीव्र एवं अत्यंत ज्वलन शील किन्तु अदृष्य धारा प्रवाहित होने लगती है. ध्यान रहे, एक निश्चित अवधि में मिटटी में दबा कोयला भी हीरा बन जाता है. यह किसी पुराण या तंत्र का कथन नहीं बल्कि आधुनिक विज्ञान का कथन है. उस ताम्बे की प्लेट पर जिस व्यक्ति को वह यंत्र प्रदान करना है उसके मंगल के भुक्त अंश के अनुसार मोटे, पतले, छोटे, बड़े या चौकोर-आयताकार-वर्गाकार आदि रूप में निर्धारित अक्षरों-मंत्रो को उकेर कर उस प्लेट की ऊर्जा को निश्चित दिशा प्रदान कर दी जाती है. इस प्रकार वह यंत्र या SIM या CHIPS तैयार हो जाता है. इसी तरह अन्य यंत्र भी तैयार किये जाते है.
किन्तु इसके लिये भू भौतिक रसायन (Geochemistry एवं Physio-chemistry) का गहन एवं सूक्ष्म ज्ञान आवश्यक है.
और यंत्र चाहने वाले को भी प्रतीक्षा करने की क्षमता एवं धैर्य रखना पडेगा। “चट मंगनी एवं पट व्याह” से यह नहीं बनने वाला है.
पंडित आर के राय
Email-khojiduniya@gmail.com

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