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कुंडली में विवाह एवं संतान

वेद विज्ञान
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कुंडली में विवाह एवं संतान
एक व्यक्ति के जीवन में विवाह एवं संतान की अहम् भूमिका है. यदि भाग्य में सन्तति योग नहीं है. तो अच्छा खासा दाम्पत्य जीवन तहस नहस हो जाता है. यद्यपि आज कल एक “ट्रेंड” चला है कि “जवानी एवं सौन्दर्य” को बनाए रखो. बच्चा पैदा ही मत करो. यौन सुख लेते रहो. गर्भ निरोधक दवाएं (Contraceptives) लेते रहो. मांस पेशियाँ ढीली मत करो. यदि संतान चाहिए तो किसी के बच्चे को खरीद लो या गोद लेकर संतान वाले कहलाने लगो. क्योकि पुराणादि ग्रंथो में औरस, क्रीत, दत्तक आदि पुत्रो की अनेक प्रजातियों का उल्लेख मिलता है. किन्तु वही पर इनकी श्रेणियों का भी विभाजन कर दिया गया है. जैसे कौन सी श्रेणी उत्तम और कौन मध्यम तथा अधम आदि है. जिसमें अपने स्वयम के राजोवीर्य से उत्पन्न संतान सर्वश्रेष्ठ मानी गई है. “लोकान्तरम सुखम पुण्यम तपो दान समुद्भवम।
संततिः शुद्ध वंश्या हि परत्रेह च शर्मणे।”
अर्थात अपने वंश की शुद्ध संतान ही परलोक एवं इहलोक अर्थात संसार दोनों में सुख देने वाली होती है. शेष पुत्रो की प्रजातियाँ केवल संतोष मात्र के लिए ही होती है. कहा गया है तथा प्रत्यक्ष देखने में भी ऐसा आया है कि जिस परिवार में अपने औरस संतान के अभाव में दत्तक या क्रीत पुत्र का सहारा लिया गया वह वंश वहीँ से उत्खनित होना शुरू हो जाता है. चाहे लाख बड़े घर-खानदान के पुत्र को गोद क्यों न लिया जाय. इसलिए अपने औरस पुत्र का होना पूर्ण दाम्पत्य सुख के लिए आवश्यक है.
अस्तु, हम मुख्य विषय पर आते है. यहाँ हम संतान या विवाह को पृथक पृथक नहीं देखेगें। बल्कि यह देखेगें कि परिपूर्ण दाम्पत्य सुख की क्या शर्तें आवश्यक है.
प्रथम तो गणना को देखते है. यदि गणना में नाडी दोष नहीं है. तो विवाह में संतान सुख होता है. यदि किसी कारण से नाडी दोष है किन्तु लड़का एवं लड़की के पंचमेश वर्गोत्तम है तो नाडी दोष होते हुए भी संतान सुख होगा। विवाह कर लेना चाहिए। यदि ये दोनों शर्ते नहीं मिलती, तथा लड़का-लड़की के पंचमेश बिना किसी छाया-अस्तादी दोष से रहित होकर पञ्च महापुरुष योग कुंडली में बना रहे हो तो भी विवाह करने से संतान योग होता है. कही कही पर उल्लेख मिलता है कि यदि लड़का-लड़की दोनों के वर्ण ब्राह्मण हो तो उन्हें नाडी दोष नहीं लगता है. किन्तु यह मत संशयग्रस्त है. क्योकि नाडी दोष भले न लगे किन्तु गुरु की पंचमेश की दशा संतान हानि देती है. अतः ऐसी अवस्था में विवाह नहीं करना चाहिए।
कभी कभी कुंडली में संतान सुख होने के बावजूद भी दाम्पत्य जीवन अत्यंत दुखी हो जाता है. जैसे संतान तो है. किन्तु विवाह के सम्बन्ध का विच्छेद हो जाता है. या माता-पिता में से कोई जीवित नहीं बचता है. जैसे यदि लडके की कुंडली में मृत, गलित, अधमा, विरुद या प्लव योग बन रहा हो तो संतान सुख तो होता है. किन्तु ऐसा बालक परस्त्री द्वारा पालित होता है. अर्थात माता अपना दूध पिलाने के लिए जीवित नहीं बचती है. भले ही गणना में नाडी दोष न हो. इसी प्रकार यदि लड़की की कुंडली में दुरित, वर्ज्या, अवसान या सुंडल योग बन रहा हो तो विवाह से संतान सुख तो होता है. किन्तु पिता बच्चे का मुंडन संस्कार नहीं देख पाता है. अर्थात कुछ ही दिनों में पिता की मृत्यु हो जाती है. चाहे भले नाडी दोष न हो.
यदि दोनों की कुंडली में दंष्ट्रा, यम, रज्जु, घनटारि दोष हो तो नाडी दोष न रहते हुए भी संतान सुख नहीं होता है. तथा इसके लिये कोई दोष निवारण उपाय भी नहीं है. यद्यपि परमेश्वरी माता भुवनेश्वरी की कृपा अपरम्पार है. उनकी इच्छा हो तो विधाता को ही पलट दें, विधान क्या चीज है. किन्तु शास्त्रों में किसी उपाय का उल्लेख नहीं मिलता है.
यदि शेष कोई दोष है तो उसके निवारण के लिये वासुकि आदि यंत्र, यज्ञिक प्रजाति के नग तथा पुत्रेष्टि आदि यज्ञ करने से यह दोष मिट जाता है. तथा संतान सुख मिलता है.
इसलिए एक सफल, सुखी एवं पूर्ण दाम्पत्य जीवन की इच्छा रखने वाले विवाह के पूर्व कुंडली के उपर्युक्त दोषादि का सम्यक विवेचन अवश्य कर लें. यदि अनजाने में किसी कारण से बिना उपर्युक्त तथ्यों पर विचार किये विवाह हो गया हो तो निर्दिष्ट विधान से उसका समय रहते निवारण अवश्य कर लें. कारण यह है कि इन उपर्युक्त उपायों को करने की एक निश्चित समय सीमा होती है. उसके बीत जाने के बाद कुछ भी नहीं किया जा सकता।
पंडित आर. के. राय
Email- khojiduniya@gmail.com

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