बलात्कार का सीधा अर्थ अनिच्छा से बलपूर्वक यौन सम्बन्ध बनाना है। कौमार्य का भंग होना ही बलात्कार की परिणति है. लूट, ह्त्या, अपहरण या षडयंत्र आदि का स्थाई उत्प्रेरक कारक होता है. जो किसी अल्प कालिक या दीर्घ कालिक सुनियोजित पूर्व योजना के आधार पर होता है. इसका एक ठोस मूर्त रूप होता है. और इसके परिणाम का एक कल्पित रेखा चित्र मस्तिष्क में पहले ही आभाषी रूप में प्रतिबिंबित होता है. किन्तु कौमार्य भंग या शील अपहरण एक क्षणिक आवेश के तरंग से अनुप्रेरित होता है. इस आवेश में भले बुरे का ज्ञान नहीं रह जाता। ह्त्या या लूट की वारदात में कोई ऐसा आवेश नहीं होता है. इसे समझा बुझा कर, शारीरिक दंड का भय दिखाकर, या जिस अग्रिम लाभ के लिए वह लूट कर रहा है उस लाभ को पहले ही समाप्त कर शांत किया जा सकता है. जैस लूट करने वाले को सश्रम आजीवन कारावास देकर उसकी संपत्ति छीन ली जायेगी। जब लुटेरा यह जान जाएगा कि उसकी लूट का कोई लाभ ही नहीं है तो वह लूट के काम से अलग हो सकता है. किन्तु यौन सम्बन्ध के तात्कालिक उत्पन्न आवेश की शान्ति तभी होती है जब इस उग्र आवेग का कारक स्खलित हो जाता है. उस आवेश में चाहे उसे भाले की नोक चुभाई जाय या गोली मारी जाय. जब तक काम का आवेश या वासना का उफान शांत नहीं होगा वह कामोद्वेलित व्यक्ति शांत नहीं होगा। लूट ह्त्या आदि के वारदात में भौतिक सुख की चिर कालिक अवधारणा सन्निहित होती है. किन्तु यौनाचार का आवेश किसी दीर्घ प्रयोजन से नहीं होता है. यौनाचार एक मानसिक विकार में किन्ही निश्चित कारको के द्वारा उत्पन्न विक्षोभ का परिणाम होता है. इन्द्रिय जनित विकार स्वरुप विविध रक्त कणिकाओं या कोशोकाओं का यौगिक मस्तिष्क के निर्धारित संग्रह कोष का भेदन कर के स्वच्छंद रूप में शरीर के एकादश इन्द्रियों के नियंत्रण रेखा को तोड़ते हुए अपने से विपरीत प्रकृति-स्वरुप वाले जननेन्द्रिय से संपर्क स्थापित करता है तो उसे यौनाचार कहा जाता है. और यही प्रक्रिया जब अनिच्छा पूर्वक होती है तो उसे शील हरण या बलात्कार कहा जाता है.
पीठ पर मच्छर काटता है. तत्काल हाथ उस स्थान को खुजलाने के लिए पहुँच जाता है. यदि मच्छर नहीं काटता तो हाथ उस स्थान को खुजलाने नहीं जाता। अर्थात हाथ के पीठ को खुजलाने के पीछे कारक स्वरुप मच्छर का दंश है. ठीक इसी तरह शुक्राणुओं का पतन एक निश्चित उत्प्रेरक से निर्देशित होता है. ह्त्या आदि करने के लिए बलपूर्वक हाथ को शस्त्र उठाकर वार करवाया जा सकता है. किन्तु बलपूर्वक शुक्राणु पतन नहीं कराया जा सकता। जबकि उसके कारक स्वरुप उत्प्रेरक उपस्थित न हो. और मात्र इन शुक्राणुओ के परस्पर विपरीत जननांगो के आदान-प्रदान के कारण ही एक सामान्य हाथा पाई बलात्कार का रूप ले लेती है.
इस प्रकार हम देखते है कि बलात्कार एक मानसिक विकार का उद्वेलित विक्षोभ है. इसे भौतिक सम्पन्नता या सुख संसाधनों से किसी भी स्थिति में नहीं संलग्न किया जा सकता। अतः बलात्कार जैसी घटना के स्थाई एवं ठोस निवारण के लिए यह आवश्यक एवं एकमात्र उपाय है कि इसके कारको को ही सक्रिय न होने दिया जाय.
जननांगो का नग्न प्रदर्शन, अनुचित एवं व्यसन वासना को भड़काने वाले वस्त्र धारण करना, विपरीत योनि वालो के कामुक आलिंगन का सार्वजनिक प्रदर्शन एवं सामाजिक सम्बन्ध भेद की मर्यादा का उल्लंघन, जब तक प्रतिबंधित नहीं होगा, दुनिया का कोई भी क़ानून चाहे कितना भी कठोर क्यों न हो, काम के उग्र आवेग को नहीं रोक सकता। तथा बलात्कार नहीं रोका जा सकता।
बाप अपनी बेटी के साथ टीवी पर नायक नायिकाओं का उन्मुक्त कामुक आलिंगन देखता है. उसको देख कर मन में काम वासना की आग आवेश के रूप में भड़कती है. क्योकि इस दृश्य का प्रभाव सीधे ज्ञानेन्द्रियो के माध्यम से सम्बंधित ग्रंथियों को प्राप्त होता है. ग्रंथियां उद्वेलित होती है. और उस आवेग में बाप अपनी बेटी के सम्बन्ध को भूल कर आवेग क्षरण के आवेश से उन्मत्त होकर सारे रिस्तो को तार तार कर देता है. यही काम जब कोई अपने घर पर नहीं कर पाता तो अन्य स्त्रियों पर अपने इस आवेश को शून्यता प्रदान करता है. और यह प्रक्रिया चूंकि अनिच्छा पूर्वक होती है. अतः इसे बलात्कार कहा जाता है. इस असह्य आवेग की भयंकर एवं अनावरणीय तीव्रता के चिर कालिक अनुभव को ही दूर दराज क्षेत्रो में अनपढ़, गँवार एवं जाहिल कहे जाने वाले लोग कहावत के रूप में सुनाते है-
“भूख न जाने जूठा भात.
प्यास न जाने धोबी घाट.
नींद न जाने टूटी खाट.
इश्क न जाने जात कुजात।”
जब तक कामुकता को भड़काने वाले कारक समाप्त नहीं किये जायेगें, किसी भी तरह से बलात्कार को नहीं रोका जा सकता। पारदर्शी झीने वस्त्रो से स्तन, नितम्ब, गुप्तांग को झलका कर दिखाना, इन अंगो के गोलाई, नुकीलापन एवं उभार आदि नख-शिख को विशेष रूप से इंगित करते हुए ऐसे चुस्त वस्त्र पहनना जिससे लोगो की दृष्टि सहज ही उन अंगो को देखने के लिए आकर्षित हो जाए, बालो की वेणी न बनाकर उन्हें हवा में लहराते हुए चलना (औरतो को बेहतर मालूम है कि किस अवस्था अर्थात “राजोकाल” से निवृत्ति के बाद विशेषतया पति सहवास के समय बालो को खुला रखा जाता है.) आँख, ओठ एवं गाल आदि पर ऐसे रंग-रोगन चढ़ाना जिसके प्रत्येक हावभाव से अश्लीलता टपकती हो, आखिर ऐसे प्रदर्शन के पीछे क्या कारण हो सकता है सिवाय लोगो में काम वासना भड़काने के.
जबरदस्ती लार नहीं टपकाया जा सकता। उसे टपकने के लिए सुन्दर स्वादिष्ट भोजन की सुगंध चाहिए। काम वासना अपने आप नहीं भड़कती। उसे भड़काने के लिए कामोत्तेजक कारको का उपस्थित होना आवश्यक है.
बलात्कार यज्ञ की पूर्णता तभी संभव है जब उसमें कामुक अंग प्रदर्शन एवं कामुक हावभाव प्रदर्शन की हवन सामग्री को मूक अश्लील आमंत्रण के मन्त्र से वासना आवेग के घी के साथ व्यसन के हवन कुंड में आहुति दी जाय.
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