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राहु एवं मंगल

वेद विज्ञान
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राहु एवं मंगल

ध्यान रहे, मंगल एवं राहु दोनों एक ही स्वभाव के है. शास्त्र तो यह बात आज से हजारो लाखो साल पहले से ही कहता आ रहा है-

“मेदास्थि भग्नो जीर्णत्वात वक्रो राहु भाव भवेत्।”
किन्तु 12 सितम्बर 2013 को अंतरिक्ष अनुसंधान में कार्यरत हरफोर्ड विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध वैज्ञानिक सर हेनरी मैक्लो लियान एस. ने इस बात की पुष्टि कर दी है कि गुण, स्वभाव, प्रभाव, विकिरण एवं आकर्षण-प्रत्याकर्षण दोनों का समान है. यद्यपि राहु की अंतरिक्ष में कोई स्वतंत्र स्थिति नहीं है. किन्तु इसके सतह पर या वलय पर जमा होने वाले विकिरणात्मक तत्त्व (Radioactive Elements) मंगल की तरह के गुण-स्वभाव-प्रभाव वाले है.
वैसे भी राहु सदा वक्री (Retro gated) रहता है. और मंगल का एक नाम “वक्र” भी है.
बड़ी ख़ुशी की बात है कि आधुनिक विज्ञान अब इन ज्योतिषीय सिद्धांतो के रहस्य में रूचि ले रहा है. और अपने नित्य परिवर्तन शील अपूर्ण-अपुष्ट सिद्धांतो एवं प्रायोगिक उपस्करों उपकरणों से इन ज्योतिषीय सिद्धांतो को प्रमाणित करता चला जा रहा है.
राहु एवं मंगल दोनों का प्रभाव शरीर के सुधांशु (Calcium) निर्मित अवयवों पर पड़ता है. मंगल हड्डियों पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालता है- जैसे अस्थि भंग, अस्थि विचलन, संधि विद्रूपता आदि. जब कि राहु अस्थि दूषण, अस्थि विकृति आदि उत्पन्न करता है. अर्थात टूट-फुट आदि मंगल के कारण तथा आमवात, संधिवात, हड्डियों का सूखना गलना आदि राहु के कारण होता है.
इसके बाद यदि शरीर के अलावा देखते है तो मंगल का प्रभाव स्थाई धन संपदा, भूमि-भवन-वाहन आदि से सम्बंधित होता है. जब कि राहु चल संपदा जैसे मुक़द्दमा, युद्ध, वसीयत तथा दान आदि राहु से सम्बंधित होते है.
यद्यपि मंगल के अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिये मूँगा (Coral) तथा राहु के लिये गोमेद (Zircon) धारण करते है. किन्तु ध्यान रहे यदि मंगल किसी भी तरह अपने से तीसरे, छठे, आठवें या बारहवे भाव के स्वामी के प्रभाव में हो तो सामान्य मूँगा हानि ही करेगा। इसके लिए काबली मूँगा ही लाभप्रद हो सकता है. क्योकि इसमें परिष्टोम (ब्रोमाइड) की मात्रा ज्यादा होती है. इसी प्रकार यदि राहु किसी भी तरह किसी ऐसी राशि में हो जिसका स्वामी अपनी शत्रु या किसी वक्री ग्रह की राशि में हो तो सामान्य गोमेद हानि करेगा। बल्कि इसके लिये किञ्जल्क गोमेद ही उपयुक्त होगा।
पण्डित आर के राय
Email- khojiduniya@gmail.com

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