कुंडली में सातवें भाव में मंगल की कोई (मेष या वृश्चिक) राशि हो, तथा उसमें शुक्र एवं शनि हो या दोनों में से कोई एक हो तथा मंगल किसी भी भाव में सूर्य के साथ अस्त हो तो पत्नी पुन्श्चला (व्यभिचारिणी) होती है. और यदि सातवें भाव में शनि की कोई (मकर या कुम्भ) राशि हो तथा उसमें मंगल एवं सूर्य हो या दोनों में कोई एक हो तथा लग्न में मंगल हो तो पति व्यभिचारी होता है. यह सर्वेक्षण में नब्बे प्रतिशत सत्य पाया गया है. वृद्ध यवन जातकम में भी आचार्य मीनराज ने यही कहा है-
“सहधर्मिणे यदि अजालि जातो मन्दो कवि वा युतश्चास्तमत।
न संभवे वामांगी शुभे सा कलंक कुल खलु पुन्श्चला प्रदन्तु।
तदेव यातो घटे मकरगो वक्रो सभानु वैको करोती।
कुजो इन्दुजः यदा विलग्ने स नरः परदार रतो न संशयः।”
आचार्य वराह मिहिर ने वृहज्जातकम के 69वें अध्याय में कहा है है-
“कनिष्ठिका वा तदनन्तरा वा महीं न यस्याः स्पृशती स्त्रियाः स्यात।
अर्थात स्त्री के पैर की सबसे छोटी या उसके बराबर वाली भूमि पर न टिकती हो अथवा अँगूठे के बराबर वाली अँगुली अँगूठे से बहुत लम्बी हो तो ऐसी स्त्री परिस्थिति वशात चरित्र से शिथिल, नियंत्रण में न रहने वाली, बहुत पापाचरण करने वाली (क्रूर या विषम स्वभाव) की होती है.
अर्थात हाथ के नाखूनों पर उभरी हुई रेखाएं हो तो नपुंसक, चपटे नाखूनों से निर्धन, कुरूप व विवर्ण नाखूनों से दूसरो का मुँह ताकने वाले तथा ताम्र वर्ण के नाखून से सैनिक या सेनापति होता है.
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