विकिरण वाले (Radioactive) किसी भी नग/रत्न जैसे हीरा, नीलम, लहसुनिया आदि को कभी भी उस अंगुली में न पहने जिसमे पर्व अनुदेशिकाएं (अंगुलियों के ऊपर बिलकुल महीन पतली पतली रेखाएं) शंक्वाकार या शँख की आकृतियाँ बनाती हो.
इसी प्रकार सुधांशु (Calcium) एवं कज्जल (Carbon) के यौगिक (Compound) वाले नग/रत्न जैसे गोमेद, फिरोजा, रंध्रक आदि उस अंगुली में कदापि न पहने जिसमें ये पतली रेखाएँ गोलाई में चक्राकार हो.
यद्यपि एक अंध परम्परा चली आ रही है कि अमुक विशेष ग्रह के लिए कोई अंगुली विशेष है. जैसे मूँगा या पुखराज तर्जनी में पहनने के लिये कह दिया जाता है. किन्तु अंगुलियों का नाम ग्रहों के आधार पर नग/रत्न पहनने के लिये नहीं रखा गया है. बल्कि रेखाओं के पर्वतो एवम पठारों के सञ्चलन मार्ग की निशानदेही के लिये किया गया है. विशेष विवरण “जातकोज्झकीय नारदम” में देखा जा सकता है. सामुद्रिक ज्योतिष के भी अनेक मूल ग्रंथो में इसका यत्र-तत्र विवरण दिया गया है. दक्षिण भारत के प्रसिद्द ग्रन्थ “लब्ध अथर्वणम” के “वल्ली” अनुदेशिका में भी इसे बताया गया है. जो तार्किक एवं वैज्ञानिक पृष्ठ भूमि पर आधारित है.
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