Menu
blogid : 6000 postid : 626657

ज्योतिषियों के हठ का परिणाम

वेद विज्ञान
वेद विज्ञान
  • 497 Posts
  • 662 Comments

ज्योतिषियों के हठ का परिणाम

ज्योतिष में रूचि, विश्वास या श्रद्धा  रखने वाले महानुभाव कृपया गंभीरता पूर्वक तर्कपूर्ण विचार करें। सृष्टि के प्रारम्भ में ज्योतिष विज्ञान जब प्रकाश में आया और इसकी गणना आदि की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई उस समय से नक्षत्रो में प्रथम नक्षत्र अश्विनी एवं अंतिम नक्षत्र रेवती सौर मण्डल के चतुर्दिक आवृत्त आकाश गंगाओं में सबसे नज़दीक से पृथ्वी पर प्रभाव डालने वाले नक्षत्र थे. और विंशोत्तरी दशा के गणना मान का आधार भी इसी को मानकर शुरू किया गया. देखें मुंबई मुद्रणालय से प्रकाशित नक्षत्र कूर्म प्रकरण एवं कचौड़ी गली वाराणसी से प्रकाशित श्रीमद्भागवत महापुराण का शिशुमार चक्र वर्णन। चूंकि पृथ्वी अपनी बनावट के कारण जिस तरह अपनी कक्ष्या में भ्रमण करती है उससे प्रति वर्ष अयनांश में विचलन होता चला जाता है. आज यह 25 अंश के आस पास है. इस परिवर्तन के साथ प्रत्यक्ष एवं सिद्धांत अर्थात दृग्गणित के सामंजस्य के अनुरूप गणना में भी परिवर्तन होता चला गया. पहले विंशोत्तरी दशा का मान अश्विनी नक्षत्र से सूर्य के अंतर्गत प्रारम्भ हुआ. ज्यो ज्यो परिवर्तन होता गया यह नक्षत्र क्रमशः अश्विनी से भरणी एवं कृत्तिका तक पहुंचा। प्राचीन मनस्वी, विद्वान एवं त्रिकाल दर्शी गणितज्ञ ऋषि-मुनि एवं ज्योतिषाचार्य इसे अपनी अति सूक्ष्म पारलौकिक बुद्धि-विद्या के बल पर अहर्निश श्रम करके इसमें दृग्गणित के अनुरूप संतुलन एवं सामंजस्य बिठाते रहे. और कृत्तिका तक तो गणना चलती रही. (ध्यान रहे गणितीय मान से एक नक्षत्र का सौरमंडलीय मध्यम भोगकाल (Average Tenure) 9300 वर्ष माना गया है. इस प्रकार लगभग मनीषियों ने लगभग 27000 वर्षो तक तो परिश्रम कर के इसकी गणना को नियमित रखे. किन्तु परवर्ती पंडितो एवं ज्योतिशाचार्यो के आलस्य, लिप्सा, पापाचार के कारण कलुषित हुई बुद्धि ने इस श्रम साध्य प्रयत्न से उन्हें विमुख कर दिया। प्रचण्ड कलिकाल ने आदर्श, सदाचार, सेवाभाव एवं बौद्धिक संपदा के प्रति रूचि को नष्ट कर दिया। और आज हम ज्योतिषी उन ऋषि-मुनि प्रतिष्ठित मान्यताओं एवं सिद्धांतो को ताक पर रख कर पाप पूर्ण आचरण करते हुए इस विद्या का गलत एवं भयावह त्रुटियों से युक्त प्रयोग कर श्रद्धालु जनता का धन एवं पुण्य दोनों हरण कर रहे है. और लकीर के फकीर बने इस विद्या के मूल रूप को ध्वस्त कर रहे है. नहीं तो अभी कुछ हजार वर्ष पहले अर्थात भगवान राम के जन्म के समय ही सूर्य मीन राशि के अन्त में उच्च का होता था. जो महर्षि बाल्मीकि द्वारा प्रस्तुत भगवान राम के जन्म कालिक विवरण से स्पष्ट हो जाता है. जैसे भगवान राम का जन्म चैत्र शुक्ल नवमी को कर्क राशि में हुआ था. तथा सभी ग्रह अपनी उच्च राशियों में थे.

अब आप स्वयं देखें-
नवमी अर्थात नौ दिन बीत रहा था. एक दिन में एक नक्षत्र 13 अंश 20 कला भोग करता है. तो अष्टमी के दिन तक 8 दिन में 106 अंश 40 कला भोग दिया था. उसके बाद नवमी को दोपहर मध्याह्न काल में कर्क लग्न में जन्म बाल्मीकि जी ने बताया है. दोपहर के पूर्व तथा दोपहर के बाद दिन के दो भाग एवं रात्रि में अर्द्ध रात्रि के पूर्व एवं बाद इस प्रकार चार भाग हुए जिसे एक नक्षत्र 13 अंश 20 कला के रूप में भोगता है. तो चूंकि भगवान का जन्म दोपहर दिन में अर्थात प्रथम चतुर्थांश में हुआ था. तो एक नक्षत्र का चौथाई 3 अंश 20 कला हुआ. अर्थात नवमी के दिन जन्म के समय तक चन्द्रमा 110 अंशो तक भुगत चुका था. अब यदि हम उस समय सूर्य को मेष में उच्च का मानते है तो उसके बाद 110 अंश तथा सूर्य के मेष राशि के 15 अंश सब मिलाकर 125 अंश हो जायेगें। 125 अंश अर्थात ४ राशि के बाद पांचवी राशि में 5 अंश. पांचवी राशि सिंह होती है. किन्तु बाल्मीकि के अनुसार भगवान राम का जन्म कर्क राशि में हुआ था. इस प्रकार बाल्मीकि का कथन गणित से झूठा प्रमाणित हो रहा है. किन्तु ऐसे त्रिकालदर्शी  एवं महान तत्त्व वेत्ता की वाणी झूठी कैसे हो सकती है? यही सिद्ध करता है की उस समय सूर्य मॆनान्त में ही उच्च का होता था. मेष में उच्च का नहीं होता था. जैसा कि आज है.
ऐसे प्रत्यक्ष उदाहरण सामने होने के बावजूद भी यदि ज्योतिषाचार्य हठ पूर्वक गलती करने एवं अपनी गलती को ही सत्य प्रमाणित करने का प्रयत्न करता एवं दूसरे पर भी थोपता है तो इसे इस महान विद्या का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा।
यदि मेड़ ही खेत को चरने लगे तो फिर कौन खेत की रखवाली कर सकता है?
पण्डित आर के राय
Email- khojiduniya@gmail.com

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply