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ज्योतिष में रूचि, विश्वास या श्रद्धा रखने वाले महानुभाव कृपया गंभीरता पूर्वक तर्कपूर्ण विचार करें। सृष्टि के प्रारम्भ में ज्योतिष विज्ञान जब प्रकाश में आया और इसकी गणना आदि की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई उस समय से नक्षत्रो में प्रथम नक्षत्र अश्विनी एवं अंतिम नक्षत्र रेवती सौर मण्डल के चतुर्दिक आवृत्त आकाश गंगाओं में सबसे नज़दीक से पृथ्वी पर प्रभाव डालने वाले नक्षत्र थे. और विंशोत्तरी दशा के गणना मान का आधार भी इसी को मानकर शुरू किया गया. देखें मुंबई मुद्रणालय से प्रकाशित नक्षत्र कूर्म प्रकरण एवं कचौड़ी गली वाराणसी से प्रकाशित श्रीमद्भागवत महापुराण का शिशुमार चक्र वर्णन। चूंकि पृथ्वी अपनी बनावट के कारण जिस तरह अपनी कक्ष्या में भ्रमण करती है उससे प्रति वर्ष अयनांश में विचलन होता चला जाता है. आज यह 25 अंश के आस पास है. इस परिवर्तन के साथ प्रत्यक्ष एवं सिद्धांत अर्थात दृग्गणित के सामंजस्य के अनुरूप गणना में भी परिवर्तन होता चला गया. पहले विंशोत्तरी दशा का मान अश्विनी नक्षत्र से सूर्य के अंतर्गत प्रारम्भ हुआ. ज्यो ज्यो परिवर्तन होता गया यह नक्षत्र क्रमशः अश्विनी से भरणी एवं कृत्तिका तक पहुंचा। प्राचीन मनस्वी, विद्वान एवं त्रिकाल दर्शी गणितज्ञ ऋषि-मुनि एवं ज्योतिषाचार्य इसे अपनी अति सूक्ष्म पारलौकिक बुद्धि-विद्या के बल पर अहर्निश श्रम करके इसमें दृग्गणित के अनुरूप संतुलन एवं सामंजस्य बिठाते रहे. और कृत्तिका तक तो गणना चलती रही. (ध्यान रहे गणितीय मान से एक नक्षत्र का सौरमंडलीय मध्यम भोगकाल (Average Tenure) 9300 वर्ष माना गया है. इस प्रकार लगभग मनीषियों ने लगभग 27000 वर्षो तक तो परिश्रम कर के इसकी गणना को नियमित रखे. किन्तु परवर्ती पंडितो एवं ज्योतिशाचार्यो के आलस्य, लिप्सा, पापाचार के कारण कलुषित हुई बुद्धि ने इस श्रम साध्य प्रयत्न से उन्हें विमुख कर दिया। प्रचण्ड कलिकाल ने आदर्श, सदाचार, सेवाभाव एवं बौद्धिक संपदा के प्रति रूचि को नष्ट कर दिया। और आज हम ज्योतिषी उन ऋषि-मुनि प्रतिष्ठित मान्यताओं एवं सिद्धांतो को ताक पर रख कर पाप पूर्ण आचरण करते हुए इस विद्या का गलत एवं भयावह त्रुटियों से युक्त प्रयोग कर श्रद्धालु जनता का धन एवं पुण्य दोनों हरण कर रहे है. और लकीर के फकीर बने इस विद्या के मूल रूप को ध्वस्त कर रहे है. नहीं तो अभी कुछ हजार वर्ष पहले अर्थात भगवान राम के जन्म के समय ही सूर्य मीन राशि के अन्त में उच्च का होता था. जो महर्षि बाल्मीकि द्वारा प्रस्तुत भगवान राम के जन्म कालिक विवरण से स्पष्ट हो जाता है. जैसे भगवान राम का जन्म चैत्र शुक्ल नवमी को कर्क राशि में हुआ था. तथा सभी ग्रह अपनी उच्च राशियों में थे.
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