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विवाह एवं संतानोत्पत्ति

वेद विज्ञान
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विवाह एवं संतानोत्पत्ति

प्रस्थपञ्चक (मृगशिरा, आर्द्रा, मघा, अनुराधा एवं श्रवण) नक्षत्र में पूर्वापर पाद में जन्म के कारण यदि विवाह या संतानोत्पत्ति में बाधा हो तो

  1. गुलेहरी- 5 तोला
  2. गिलोय सत- 5 तोला
  3. अनफ़सा ताल – 5 तोला
  4. गोखरू (सतालिक)– 5 तोला
  5. बनहठी सफ़ेद- 5 तोला

ये पांचो वनस्पतियो को खरल में रात के अँधेरे में खूब कूट पीस कर मिला ले. इस मिश्रण को 5 किलो पानी में मिटटी के बर्तन में धीमी आँच पर धीरे धीरे पकावे। जब पानी की मात्रा सवा किलो के आस पास बचे तो इसे गर्म ही साफ़ महीन कपडे से छान लेवे। इस द्रव को साफ़ शीशे के बोतल में भर लेवे। तथा अरण्डी के दो चार पत्तो में अच्छी तरह लपेट कर अपने बलिस्त (हाथ) भर गहरे गड्ढे में दबा देवे। सात दिन के बाद जब भी रविवार पड़े उस दिन रात को उसे निकाल लेवे। उस द्रव में से रोज एक छटाक निकाल कर हलके गुनगुने पानी (लगभग 25 किलो पानी) में डाल कर स्नान करे. इस दौरान साबुन आदि न लगावे। शरीर में सिर्फ आवश्यक होने पर गुलाब या चमेली का ही तेल लगावे। वह भी मिश्रित नहीं होना चाहिये।

सुबह शाम गुलबनी एवं वंग भष्म एक एक रत्ती सिद्ध मकरध्वज के साथ 12 सप्ताह सेवन करे..
आशा से ज्यादा लाभ होगा।बिहार (झारखण्ड) के सांथाल परगना एवं दक्षिणी छोटा नागपुर तथा छत्तीस गढ़ के चटगाँव वाले दूरस्थ क्षेत्रो में इसका सफल प्रयोग आज भी होता चला आ रहा है.
पण्डित आर के राय
Email- khojiduniya@gmail.com

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