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कुंडली- मंगल-शनि की स्थिति, दुर्योग

वेद विज्ञान
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कुंडली- मंगल-शनि की स्थिति, दुर्योग
कुंडली में मंगल-शनि-गुरु की स्थिति अन्य ग्रहो से पृथक होती है. ये सम्पूर्ण कुण्डली को आमूल परिवर्तित कर देने की क्षमता रखते है. चौथे भाव में शनि को नपुंसकत्व एवं अन्य पीड़ा देने वाला बताया गया है. किन्तु वृश्चिक लग्न में यदि चौथे भाव में शनि-मंगल युति हो और इन दोनों में कोई अस्त न हो तो कुंडली के सारे दुर्योग तिरोहित या शक्तिहीन हो जाते है. और मनुष्य राजा होता है. इसी प्रकार गुरु लग्नेश होकर आठवें भाव में उच्चस्थ ही क्यों न हो, यदि मंगल से युत हो तो वह व्यक्ति समस्त दुःख, पीड़ा, हानि एवं कष्ट भोगता है. इसके विपरीत यदि गुरु व्ययेश भी हो किन्तु दशम भाव में उच्चस्थ मंगल के साथ हो तो ऐसा व्यक्ति धन, सम्मान एवं नैरुज्यसब कुछ पा जाता है.
पंडित आर के राय
Email- khojiduniya@gmail.com

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