अक्षुणिक आकाशगङ्गा के हमारे सौर मंडल में भी ग्रहो की प्रतिस्थापना पार ब्रह्म परमेश्वर ने ही की है. यदि ग्रहो को उस ईश्वर द्वारा यह अधिकार (प्रभाव) प्रदान किया गया है कि वह अपनी शक्ति (किरणो) द्वारा रोग उत्पन्न करता है तो उसके अनुकूल (प्रसन्नता) हेतु निर्धारित स्तुति तथा मंत्रादि से उसे शांत भी करने का विधान है. चिकित्सक एक ही सूचिका (इंजेक्शन) से रोगी को सुलाने वाली दवा शरीर में प्रवेश कराता है तो उसी सूचिका से रोगी को मूर्च्छा से जगाने वाली भी दवा भी देता है. सावधानी यही रखनी पड़ती है कि दवा Intravenous की जगह Intramuscular न दी जाय.
ईश्वर ने यदि सूर्य को ताप पूर्ण बनाया है तो उस उत्ताप से त्राण पाने के लिये बादल तथा शीतल हवा की भी व्यवस्था कर रखी है. किन्तु यहाँ पर भी बादलो एवं हवा के रूप एवं प्रकृति को निश्चित कार्य के लिये निर्धारित किया गया है. यही बादल अचानक फटने पर तबाही मचा देता है तो हवा का प्रचण्ड रूप विनाशकारी तूफ़ान भी उपस्थित कर देता है.
मन्त्र सदा ही प्रभावकारी, सफल एवं अचूक प्रभाव वाले होते है. उनका प्रयोग विचलन उसके अनुरूप फल प्रदान करता है.
वर्त्तमान समय में प्रकृति (परमेश्वर) प्रदत्त इस अमोघ उपाय का रूप इतना विकृत एवं प्रदूषित कर दिया गया है कि जनसमुदाय इसके लाभ से वञ्चित होता जा रहा है.
अग्नि जलाने का मन्त्र देखें- “ॐ उद्बुध्य स्वाग्ने प्रति जागृहि त्वमिष्टा पूर्ते सं सृजेथामयम च. अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन् विश्वेदेवास यजमानश्च सीदति।”
किन्तु यह नहीं पता कि वेद प्रायोजित इस मन्त्र से किस अग्नि को प्रज्ज्वलित करने का विधान है. जब कि तीनो (ऋग्वेद, सामवेद एवं यजुर्वेद) वेदो में तीनो अग्नियों (जठराग्नि, बडवाग्नि एवं दावाग्नि {Submarine}) के लिये पृथक पृथक मंत्रो का विधान है.
उपर्युक्त मन्त्र ऊर्ध्वाग्नि ( Gastric Acid) को संतुलित करने के लिये है. किन्तु इसका प्रयोग बुध ग्रह के लिये तथा साथ ही में अनुष्ठान्न आदि कि अग्नि प्रज्ज्वलित करने में भी धड़ल्ले से किया जा रहा है.
जब कि वेद प्रोक्त अग्नि सूक्त में अनुष्ठान्न आदि कि अग्नि (बडवाग्नि) प्रज्ज्वलित करने का मन्त्र दिया गया है.-” ॐ अग्निः पूर्वेभिॠषिभिरिडयो नूतनैरुत। स देवान वच्छति।”
केवल किसी एक मन्त्र पाठ को बिना किसी नियम विधान या प्रतिबन्ध-अनुबंध के करने से कोई फल नहीं मिलने वाला है. अन्यथा रात दिन मन्त्र पाठ को बार बार दुहराने वाले सीडी या कैसेट को अंत में तोड़ कर फेकना ही पड़ता है. उसका उद्धार नहीं होता।
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