वैसे तो रुद्राक्ष की महिमा का गुणगान गाने में स्वयं शुकदेव जी महाराज अपने को असमर्थ पाते है, दूसरे का क्या कहना?
रुद्राक्ष यदि बिना मुँह वाला अर्थात फटा न हो तो बहुत ज्यादा प्रभाव वाला होता है. जैसे ही यह फटता है इसकी ऊर्ज़ा विलीन हो जाती है. यद्यपि मेरा यह कथन बहुतो के गले नहीं उतरेगा। किन्तु यह वास्तविकता है. इसमें डेरिकोलिन मेटाफास्फिड़ान एवं मेटासिन्थेसिन सिप्रोमाइड प्रचुर मात्रा में और अति शुद्ध अवस्था में पाया जाता है. इसके ऊपर क्रेमलिन की सुदृढ़ द्रवीभूत परत रहती है. जिसके हटते ही प्रकाश की किरण इसके फास्फिड़ान एवं सिप्रोमाइड पर पड़ती है. और इसके क्लोरोप्लास्ट से फोटोसिंथेसिस की क्रिया प्रारम्भ हो जाती है. और इसके ऊर्ज़ा का वायुमण्डल में विलयन होने लगता है. इसीलिये कहा गया है कि एक मुखी रुद्राक्ष सर्वोत्तम होता है. रुद्राक्ष जितना ही छोटा होगा उतना ही ऊर्ज़ावान होगा। किन्तु ध्यान रहे एक मुखी या बिना मुँह वाला रुद्राक्ष कर्क लग्न एवं कर्क राशि वालो को धारण करने से परहेज करना चाहिये। विशेषतः पुष्य नक्षत्र में जन्म प्राप्त व्यक्तियों को तो धारण करना ही नहीं चाहिये। या दूसरे शब्दो में जिसका मेटाबोलिजम जल प्रधान अर्थात हाइड्रोजन पराक्साइड के बहुविध अणुओं वाला हो उसे तथा यूसोनोफिलिया वालो को नहीं धारण करना चाहिये। दक्षिण भारतीय ग्रन्थ “तुषार मणिबंधम” में इसका उल्लेख मिलता है. जो आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की भी कसौटी पर खरा उतरता है.
रुद्राक्ष की कोई विशेष भौतिक पहचान नहीं है. इसका रासायनिक परिक्षण हो सकता है. यथा यदि इसे माजूफल के मिश्रण एवं समुद्रफेन के विलयन में डाला जाय तो बदबू निकलना शुरू हो जाता है. अर्थात अमोनियम नाइट्रेट की गंध आनी शुरू हो जाती है. किन्तु फिर वह रुद्राक्ष की मनिया निष्क्रिय हो जाती है. जिसका यह परिक्षण किया जाता है. यह एक अति प्रभावशाली ह्रदय प्रतिस्फारक एवं स्फुरक औषधि है. इसीलिये “ डेज मेडिकल लेबोरेट्री” ने इस रुद्राक्ष का “रोड्रिक्स” नाम से कैप्स्यूल बनाया है जो रक्त चाप (Blood Pressure), ह्रदय वेदना (Cardiac Disorder), नाड़ी नियमन (Heart Palpitation), तनाव (Depression) आदि की चिकित्सा में प्रयुक्त होता है. रुद्राक्ष एक अतिशुद्ध ठोस रसायन है. इसका विलक्षण प्रभाव अनेक अनियमितताओं चाहे वह भौतिक हो या दैविक, सब पर इसका बराबर प्रभाव पड़ता है.
आज देखने में आता है कि दुकानो पर कुंतल के हिसाब से रुद्राक्ष की माला उपलब्ध है. जब कि मेरी जानकारी के अनुसार जो मैंने विविध सम्बंधित ग्रंथो में पढ़ा है, इस पूरी धरती पर मात्र बारह ही रुद्राक्ष के वृक्ष उपलब्ध है.
अर्थात पाँच हिमालय की गोद में, दो काशी में, दो इलावर्त या इंदुपुरी या वर्त्तमान इंडोनेसिया में, दो शिवदान या सूडान में और एक बलिपुरम अर्थात वर्त्तमान चिली (अमेरिका का एक तटवर्ती प्रदेश) में.
ग्रंथो का अवलोकन करें तो यह तथ्य प्राप्त होता है कि माता पार्वती के शाप के कारण प्रत्येक वृक्ष एक चांद्र वर्ष में ऋतुओं के हिसाब से 12 दाने ही उगा सकता है. अर्थात एक वृक्ष में वर्ष में मात्र 72 दाने ही लग सकते है. अर्थात एक वर्ष में समस्त धरती पर सब रुद्राक्ष के वृक्ष मिलाकर 864 दाने ही उगा सकते है. इसके विपरीत आज बाज़ार में ट्रको के हिसाब से रुद्राक्ष उपलब्ध है. जब कि आज धरती से पाँच वृक्ष सूख कर समाप्त हो गये है.
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