प्रत्येक व्यक्ति की कुंडली में मंगल आठवें होते हुए भी अशुभ फल क्यों नहीं देता है?
समस्त पृथ्वी के लिये सूरज एक ही है. किन्तु कही दिन तो दूसरी जगह रात, कही बर्फीली हवाएँ तो दूसरी जगह गर्म लू के थपेड़े, कही पर सूरज की वृहतशीर्ष किरणें (Macrocephalic Rays) कोशिकीय ऊर्ज़ा प्रणाली (Cellular Mitochondrial System) के माध्यम से माधवी द्रव्य (Calsoflevin Hydrobromide) का निर्माण कर शरीर के अस्थि प्रभाग (हड्डियों) को मज़बूती एवं चमड़े (Epidermic System) को सुचारुता प्रदान करती है. तो कही उसकी संकुलित परावैगनी किरणे (Concentrated Ultraviolet Rays) चर्म रोग- चमड़े का कैन्सर उत्पन्न कर देती है.
ऐसा क्यों?
ऐसा स्थान भेद, पर्यावरण, वातावरण एवं भौगोलिक बनावट के अलावा उस स्थान पर पाये जाने वाले विविध भौतिक एवं रासायनिक पदार्थो के संसर्ग-संपर्क एवं कर्षण-विकिरण के कारण होता है.
ठीक उसी तरह प्रत्येक कुंडली में आठवें स्थित मंगल अपने ऊपर पड़ने वाली राशियों एवं ग्रहो की दृष्टि, अन्य ग्रहो से सम्बन्ध, अपनी जागृत-सुषुप्त, मृत-युवा-बाल आदि अवस्थाओं, षड्बल एवं अपनी अधिष्ठात्री राशि के प्रभाव के अनुसार फल देता है.
उदाहरण के तौर पर मेष लग्न की कुंडली में आठवें मंगल को देखें। ऐसी स्थिति में यदि सातवें शुक्र-चन्द्र एवं दशवें शनि पर गुरु की सीधी दृष्टि हो तो ऐसा व्यक्ति शत्रुहीन, रोगहीन, दरिद्रताहीन, अतुलनीय साहसी, प्रबल पराक्रमी एवं भूमि-भवन-वाहन से युक्त हो जाता है. और भी देखें-
मंगल यदि शनि से ही युक्त क्यों न हो और लग्न मिथुन हो तथा चौथे बुध एवं सातवें गुरु हो तो एकादशेश होते हुए भी मंगल सदा मंगल ही करेगा।
कन्या लग्न में आठवें मंगल यदि सूर्य से युक्त तथा शुक्र की सीधी दृष्टि में हो तो ऐसा व्यक्ति दीर्घायु एवं दुर्धर्ष पराक्रमी एवं यशस्वी होता है.
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