यद्यपि वास्तु शास्त्र (भारतीय मत) एवं अन्य मतमतान्तर में गृह कला एवं तत्सम्बन्धी गुण दोष के अनेक प्रामाणिक एवं भ्रममूलक प्रकार बताये गए है. किन्तु यदि कभी ऐसी स्थिति आये कि गृह दोष का पता न लग पाये या उसका वर्गीकरण न हो पाये तो यह उपाय करें-
मोथा (एक तरह की घास) के चार पाँच पौधे समूल उखाड़ लें. उनमें से प्रत्येक को बीच से चीरा लगावें। ध्यान रहे चीरा हाथ या नाखून से ही लगावें। किसी हथियार का प्रयोग न करें। उसके बाद अपने घर के आँगन या घर के परिक्षेत्र (Campus- Premise) में जहाँ खुली धुप आती हो वहाँ धुप आते ही उन पौधों में से एक पौधे को गाड़ दें. ध्यान रखें, मोथे के पौधे को इस तरह चीरा लगावें कि उसका एक हिस्सा बिना चीरा का रहे. बिना चीरा वाला हिस्सा ही मिटटी में दबाएँ। दबाने के पहले उस स्थान को अपने हाथ के लम्बाई चौड़ाई के बराबर जमीन को शुद्ध बेसन एवम हल्दी मिलाकर लिपाई कर दें. ध्यान रखें यदि बेसन शुद्ध नहीं होगा तो उसका अन्तर्स्खलित गंधकीय शर्करा (Diferosulfied Maltose) हल्दी के प्रत्यादिक अम्ल (Turmeric Acid) को जागृत एवं विकिरित (Radiated) नहीं होने देगा। इसलिए बेसन एवं हल्दी कि शुद्धता पर आवश्यक रूप से ध्यान रखें।
मोथे को जमीन खोद कर न गाड़ें। मिटटी लेकर उसे हल्का गीला कर लें. और उस गीली मिटटी (कीचड सदृश) में ही गाड़ें। मोथे को कोशिश करें बीचो बीच फटे. तीन-चार-पाँच या इससे अधिक मोथे को फाड़ कर कोशिश करें। जो ज्यादा से ज्यादा बीच में फटे उसे ही गाड़ें।
जब उस पौधे से धुप हट जाय तब देखें कि उस मोथे के पौधे की दिशा में विचलन-प्रचलन किस दिशा में हुआ है. पुनः चीरा के दोनों हिस्सो में किसमें सिकुड़न ज्यादा है. और किस हिस्से का झुकाव किस दिशा में ज्यादा है.
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