जमीनी हकीकत को नकारा नहीं जा सकता। जिस पण्डित जी ने मुझे यह पत्र लिखा है, उनकी बात शत प्रतिशत सत्य है. इसीलिये मैं उनका उत्तर नहीं दे पाया हूँ. इनके तर्क में दम है. उनका पत्र मैं उन्ही की भाषा में प्रस्तुत कर रहा हूँ.
पण्डित जी
प्रणाम
वैसे तो निश्चित रूप से मैं आयु में आप से बड़ा हूँ. फिर भी प्रणाम कर रहा हूँ. क्योकि विद्वत्ता का मूल्याँकन उसकी उम्र नहीं बल्कि गुरुता एवं प्रगल्भता से किया जाता है. यद्यपि आप की उद्धर्त गर्जना, भयंकर भाव भंगिमा एवं विचारो के प्रलयंकारी ताण्डव से भयभीत मैं आप से कुछ भी निवेदन करने का साहस नहीं जुटा पा रहा था. किन्तु भयंकर तूफ़ान से सबकुछ तहस नहस करने वाले महासागर का अन्तःस्थल शांत एवं गम्भीर होता है, यही सोच कर तथा आप की सपाट स्पष्ट एवं सत्यवादिता से अभिभूत होकर मैं कुछ निवेदन करना चाहता हूँ.
ईंट सीमेंट का काम करने वाला मिस्त्री भी एक दिन की मजदूरी 500 रुपये से लेकर 700 रुपये तक लेता है. और उसे ऊँची अट्टालिकाएं बनवाने वाले बड़े प्रेम से दे भी देते है. ऊपर से उसे पुरस्कार भी देते है. किन्तु आप को निश्चित रूप से पता होगा, एक सर्वांगी जन्म पत्रिका बनाने में कम से कम 10 दिन लग जाते है. तो क्या उस मिस्त्री के हिसाब से हमारे 5000/ रुपये भी नहीं हुए?
अब आप ही सोचें, यदि हमने एक कुण्डली के 5000/ रुपये माँग दिये तो जजमान जलते हुए आग का अँगारा हो जायेगा। तथा दान दक्षिणा तो नहीं ही देगा। ऊपर से चुन चुन कर जीतनी क्लिष्ट, अभद्र एवं अश्लील गालियाँ होगी दे देगा।
तो अब आप ही बताइये, क्या हम उस मजदूर से भी गए गुजरे हो गये? क्या हमारी पढ़ाई, तपस्या एवं साधना की औकात इतनी भी नहीं है? अब हम 50 एवं 100/ रुपये में कौन सी कुण्डली बनायेगें?
पण्डित जी नाराज मत होइयेगा और न ही कठोर शाप दीजियेगा किन्तु मेरे निवेदन के औचित्य पर अवश्य विचार कीजियेगा।
This website uses cookie or similar technologies, to enhance your browsing experience and provide personalised recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy. OK
Read Comments