भयात् का तात्पर्य होता है जन्म के समय तक जन्म नक्षत्र अपने पूरे समय अर्थात भभोग में से कितना समय भुगत चुका है. तथा भभोग का तात्पर्य होता है जन्म नक्षत्र का सम्पूर्ण भोग (Complete Tenure) काल कितना है.
अब मैं एक उदाहरण देता हूँ.
किसी बच्चे का जन्म 8 सितम्बर 2006 को प्रातः 10 बजकर 55 मिनट पर पूना में हुआ है. आज का प्रसिद्द कुण्डली साफ्ट वेयर पाराशर लाइट चल रहा है. उसमें यह समय डालकर देखें। यहाँ-
भयात् 30 घटी, 56 पल एवं 31 विपल है.
भभोग 21 घटी 40 पल 41 विपल है.
अब आप स्वयं देखें, नक्षत्र का पूरा समय ही मात्र 21 घटी 40 पल एवं 41 विपल है. उसमें से 30 घटी 56 पल कैसे निकलेगा। 21 में से 30 घटा दिया और कुछ बच भी गया.
यह है कम्प्यूटर गणित।
इसी भयात एवं भभोग से विविध दशाओं एवं अंतर्दशाओं का निर्धारण होता है.
अब अगर भयात् एवं भभोग ही अशुद्ध है फिर विंशोत्तरी, योगिनी, चन्द्र स्पष्ट आदि कुण्डली का प्रमुख अंश ही अशुद्ध हो जायेगा।ज़रा कम्प्यूटर कुण्डली के गणित को सर्वथा शुद्ध बताकर इतराने एवं घमण्ड करने वाले अपनी खोपड़ी थोड़ा ठोक पीट कर इसमें अपनी विलक्षण क्षमता का प्रदर्शन करें।
कुण्डली में ग्रहो की विविध दशाएं यह बताती है कि किस वर्ष-माह में किस ग्रह की दशा अन्तर्दशा चलेगी। ठीक है, पता चल गया कि अभी गुरु महादशा में मंगल की अन्तर्दशा चल रही है. किन्तु वह सूर्य किस भाव का फल करेगा, यह कहाँ से पता चलेगा क्योकि कुण्डली में भाव दशाएं तो बनी ही नहीं है. इसके लिये संध्या दशा तथा पाचक दशा आदि होती है. जैसे सूर्य की अन्तर्दशा चल रही है. तथा मकर राशि की संध्या दशा में चौथे भाव की पाचक दशा चल रही है. इस प्रकार यह सूर्य चौथे भाव का उस समय अपने बल के अनुसार फल देगा।
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