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एक मेरे फेसबुक मित्र का पत्र (मूल) रूप में और उसका उत्तर

वेद विज्ञान
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एक मेरे फेसबुक मित्र का पत्र (मूल) रूप में और उसका उत्तर
कृपया पिछले “ब्लॉग” को सम्बंधित कर के इसे देखें)
Pa ParveenRespected Pandit R.K. Rai aur khat likhne vaale respected ko mera namaskar. Main koi astrologer nahi hun. Shayad yatharth sirf ye hai k aaj astrologers ki line me frauds ki sankhya kuchh jyada ho gayi he, isliye baar-baar yah prashna uth jata he. pahle bina kuchh liye bhi pandit ya brahman ko raja ya aur rich log bahut kuchh de diya karte the but ab hum aam insaan k liye pahchanana bahut mushkil ho gaya he k kaun genuine he. aur ek astrologer (bhavishyavakta) se hum aam aadmi ki expectatinos kuchh jyada hi badi hui rahte hain ek vakeel, doctor ya kisi aur profesisonal k bajay. Maafi chahungi agar kisi ko bhi meri kisi bhi baat se koi takleef hui ho to.
about an hour ago · Like
परवीन जी

सम्भवतः आप ने जो लिखा है उसे स्वयं नहीं पढ़ा. क्या डाक्टर और वकील फ्राड नहीं है? क्या उनसे लोगो की “एक्स्पेक्टेशन्स” नहीं होती है? क्या लोग नहीं चाहते कि “फ्री” में सफल इलाज मिल जाय? या “फ्री” में कोई वकील उसका मुकद्दमा जिता दे? केवल पंडितो से ही “एक्स्पेक्टेशन्स” होती है? क्या गुर्दा, बेचना, दिल निकालकर बेचना डाक्टर के लिये फ्राड नहीं है? तो क्या डाक्टरी के व्यवसाय को फ्राड घोषित किया गया है? “जेनुइन” एस्ट्रोलाजर तो आप के लिये पहचानना मुश्किल है. लेकिन डाक्टर को पहचान जाती है तो क्या डाक्टरी के व्यवसाय को फ्राड घोषित किया जाता है. क्या यह केवल इसलिये है कि डाक्टर को यह सब करने के लिये “लाइसेंस” मिला हुआ है? क्या यह इसलिये है कि प्रायः “पंडिताई” या ज्योतिष के क्षेत्र में केवल एक समुदाय विशेष के लोग ही आते है और डाक्टरी के क्षेत्र में हर समुदाय के लोग आते है? क्या सबके फ्राड का पर्दाफास करने वाले तहलका के “तरुण तेजपाल” से एक्स्पेक्टेशन्स नहीं थी? शासकीय तौर पर डाक्टर, इंजिनीयर को तो नौकरी दी जाती है? क्या ज्योतिषी के तौर पर किसी को शासकीय नौकरी दी जाती है? क्या पंडित के पास उसकी कोई “एक्स्पेक्टेशन्स” नहीं होती?
इसे एक्स्पेक्टेशन्स नहीं बल्कि सीधे शब्दो में अपना “मतलब” या स्वार्थ कहना चाहिये। अपनी एक्स्पेक्टेशन्स की आड़ में हम पंडित के एक्स्पेक्टेशन्स को चूल्हे भाड़ में झोंक देते है.
पुराने जमाने में पण्डित निःशुल्क सेवा करते थे. उस समय ज्योतिषियों को राजाश्रय प्राप्त था. शासन में राजगुरु, ज्योतिषाचार्य, धर्माधिकारी आदि की शासकीय नियुक्ति होती थी. ऐसी अवस्था में समाज के कमजोर एवं असहाय तबके की सेवा में ज्योतिषी या पण्डित को कोई कठिनाई नहीं होती थी.
आज स्वयं पण्डित ही शासकीय तौर पर असहाय एवं बेरोजगार कर दिया गया है. तो फिर वह किस आधार पर निःशुल्क सेवा करेगा?
जब तक कोई दूसरो की “एक्स्पेक्टेशन्स” नहीं समझता उसे दूसरे से किसी “एक्स्पेक्टेशन” की उम्मीद नहीं करनी चाहिये।
मैं पहले ही कह चुका हूँ कि इस तथ्यहीन एवं सतही हकीकत से परे विषय पर तर्क वितर्क से कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है.
कुछ चीजे केवल कहने एवं पढने में ही अच्छी लगती है. उनका यथार्थ से कोई सम्बन्ध नहीं होता है.

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