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वास्तु दोष- प्रधान कारण

वेद विज्ञान
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वास्तु दोष- प्रधान कारण
अन्येन समायुक्ता न तिंदुकी शिंशपा च शुभप्रदा।।15
न श्रीपर्णेन च देवदारुवृक्षो न चाप्यसनः।
शुभदौ तु शालशाकौ परस्परं संयुतौ पृथक पृथक चैव.I I 16
तद्वत पृथक प्रशस्तौ सहितौ च हरिद्रककदम्बौ।
सर्वः स्पंदनरचितो न शुभः प्राणान हिनस्ति चाम्बकृत।।17
असनो अन्यदारुसहितः क्षिप्रं दोषान करोति बहून।
अम्बस्पंदनचन्दनवृक्षाणां स्पंदनाच्छुभाः पादाः।।18
फलतरूणा शयनासनमिष्टफलं भवति सर्वेण।
(वृहत्संहिता अध्याय 78)
अर्थात तिन्दुक शीशम की लकड़ी को एक साथ किसी अन्य लकड़ी के साथ संयुक्त कर घर निर्माण या शैय्या निर्माण में प्रयोग करने से अति उग्र भयंकर एवं असाध्य रोगो का प्रकोप होता है.
श्रीपर्ण के साथ देवदारु एवं कमरकस का मेल अशुभ है.
शाल एवं शाक वृक्ष की लकड़ी परस्पर मिलाकर प्रयुक्त की जायँ या इनका प्रयोग अकेला अकेला ही किया जाय तो बहुत शुभ फल होता है.
इसी तरह हरिद एवं कदम्ब की लकड़ी का प्रयोग एक साथ करने से शुभ फल प्राप्त होता है. किन्तु इनमे से किसी के साथ जामुन की लकड़ी का प्रयोग नहीं होना चाहिये। अन्यथा शासकीय दण्ड एवं बंधन होता है.
स्पंदन वृक्ष का अकेला प्रयोग कर के निर्मित घर या शैय्या अचानक दरिद्रता को जन्म देता है. और यदि इसका प्रयोग अम्ब (आम) की लकड़ी के साथ हुआ तो यह प्राणघातक हो जाता है.
विजयसार (असन) की लकड़ी का प्रयोग घर या शैय्या के लिये किया जाय तो अनेक भयावह दोष उत्पन्न करता है.
निम्ब एवं कटहल की लकड़ी का प्रयोग या निम्ब या जामुन की लकड़ी का एक साथ प्रयोग उसमें रहने वालो की कई पीढ़ी को दुःख देने वाला होता है. बिम्बल या शीशम की लकड़ी का प्रयोग महुआ की लकड़ी के साथ कभी भी शुभ फल नहीं दे सकता।
आचार्य वराह बहुत बड़े त्रिकाल दर्शी, रस रसायन एवं तत्व-यौगिक ज्ञान से भरपूर थे. उनके उपर्युक्त कथन में सतही सत्यता है. क्योकि कुछ लकडियो के तन्वहरित (Termoplast) एवं विद्रस्व आसव (Elastoplast) विविध लकडियो में पाये जाने वाले रँगविराज (Metholiyadizon Pyrodoxide Alcohol) के किरण एवं वायवीय संक्रमण से अनेक भयंकर उपद्रव उत्पन्न करते है.

Pt. R. K. Rai

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