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विचित्र किन्तु सत्य

वेद विज्ञान
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विचित्र किन्तु सत्य
आज सोना जिसका रासायनिक सूत्र Au है, 32000 रुपये का 10 ग्राम है. उससे सस्ता थोरियम मेटा सल्फाइड अर्थात लहसुनिया (Cat’s Eye) और टेट्रा लिनोक्सिन थोरोनेट (वैदूर्यमणि-शुद्ध नीलम) बाजार में मिल रहा है. जब कि वैदूर्यमणि को तो कम से कम सोने से 100 गुना मँहगा होना चाहिये। ऐसे रत्नो से सिवाय उपद्रव या हानि के कोई भी लाभ नहीं हो सकता। केवल मूंगा (Coral) सम्भवतः सोने के बराबर कीमत का हो सकता है.
इससे अच्छा है कि भगवान एवं आदि शक्ति माता भुवनेश्वरी का ध्यान कर के अपनी टूटी फूटी भाषा एवं सामर्थ्य से अराधना एवं पूजन किया जाय. परिणाम तो मिलेगा ही, विलम्ब कितना होगा, यह हमारी मानसिक सबलता पर निर्भर है. किन्तु रत्न खरीदने में कम से कम पैसा और बदले में सम्भावित हानि का तो नुकसान नहीं उठाना पडेगा।
एक तो शुद्ध रत्न न होने की आशंका, उसके बाद यदि वह शुद्ध हुआ भी तो शरीर का तंतु समन्वय एवं अनुर्जता परीक्षण यदि अनुकूल न हुआ तो ज्यादा नुकसान।
हीरा (Diamond) शुद्ध कज्जल (Carbon) का एक रूप है. धरती के अंदर विविध अन्य पदार्थो से संयोग कर यह कम से कम 1000 वर्ष बाद विभिन्न गुण एवं प्रभाव वाला हो जाता है. इसीलिये इसके विविध नाम भी इसके गुणो के आधार पर रखे गये है- यथा हीरा, वज्र, वारीमुद, ईषत्पाणि, रसाद्रि आदि. कारण यह है कि जब कार्बन का फास्फाइड के यौगिकों से संयोग होता है तो वह दृढ मेखला जैसे श्रोणि मेखला (Pelvic Girdle) आदि के सन्निकट कोशिकाओं की रिक्तिकाओं (Vacuums) की शर्करा भित्ति (Cellulose Wall) को विवर्द्धित होने के स्थान पर संवर्द्धित (Develops in a balanced manner) करती है. और जब यह सल्फाइड के यौगिकों से संयोग करता है तो विरल मेखला जैसे अंश मेखला (Clavicle Girdle) के सन्निकट रक्त विन्दुओं के विपात द्रव्य (Gresulin Matricides) से विवाल नीरव (Unidentified Oratorical Fluid) को छन्नित कर देता है. इसीलिये इन विविध गुणो के आधार पर हीरा के विविध नाम दिये गये है.
हमें ज्ञात है कि हीरा शुक्र ग्रह से सम्बंधित है. किन्तु चाहे शुक्र कुण्डली के किसी भी भाव में बैठे हम बस वही बाजार में मिलने वाले तरासे (Cultured) हीरे को धारण कर लेते है. अनुकूल परिणाम तो भले ही न मिले किन्तु इसका रासायनिक विकिरण (Biochemical Radiation) जिसका व्यास (Diameter) कम से कम 12 हाथ बताया गया है, के क्षेत्र में अनेक भिन्न भिन्न उपद्रव एवं प्रतिकूल प्रभाव उत्पन्न करता है. यथा बाँझपन, मानसिक विकलांगता आदि.
आज कल इसे “स्टेटस सिम्बल” के रूप में धारण किया जा रहा है. जिससे वैवाहिक जीवन में बिखराव, कुष्ठ एवं ह्रदय रोग तथा चारित्रिक शिथिलता आदि प्रधान उपद्रव दिखाई दे रहे है. शुक्र इस बात का है कि तरासे होने के कारण इसकी किरणो का परावर्तन किसी निश्चित दिशा में नहीं हो पा रहा है. जिससे ये सारे उपद्रव लगभग दो ढाई साल बाद प्रकट हो रहे है.
शुक्र जिस भाव में हो, जिस राशि में हो, जिस ग्रह के साथ हो, जिस ग्रह की दृष्टि हो, जिस राशि की दृष्टि हो आदि सब के प्रभाव का अध्ययन कर के तब निश्चित करना चाहिये कि व्यक्ति को किस श्रेणी या वर्ग या प्रजाति का हीरा धारण करना चाहिये।
उदाहरण के लिये यदि शुक्र पांचवें भाव में 20 अंशो में कर्क राशि में बुध के साथ जन्म कुण्डली में हो. तो वह तृतीयेश एवं अष्टमेश होगा। चूंकि वह 20 अंशो में है अतः उसका मुख भाग अन्दर होगा। अर्थात ग्यारहवें भाव पर अन्ध दृष्टि होगी। ध्यान रहे शुक्र का मुख भाग अप्रकाशित है जिसका अनुमोदन करते हुए आधुनिक विज्ञान ने कहा है कि इसका ऊपरी पूर्व भाग मटमैले ग्रेनाइट का सतह है. तथा पौराणिक मतानुसार शुक्र एक आँख का अंधा है. अतः जहां भी इसकी आधार रेखा से वृहतकोण बनेगा उसका सम्मुख कोण अर्थात कर्ण का ऊपरी हिस्सा 15 से 29 अंशो के मध्य ही बनेगा। यह गणित सिद्ध है. और इस प्रकार इसकी दोनों भुजाओं के मध्य के क्षेत्र का भाग शुक्र के प्रकाश से रहित होगा। प्रस्तुत उदाहरण में बुध चतुर्थ एवं सप्तम भाव का स्वामी होगा। सिद्धांत के अनुसार कोई भी ग्रह यदि केंद्र का स्वामी होकर कोण में बैठा है तो शुभ अन्यथा अशुभ फल तथा कोई भी ग्रह कोण का स्वामी होकर केंद्र में बैठा हो तो अति शुभ फल देगा भले वह नैसर्गिक पाप ग्रह ही क्यों न हो. इस प्रकार बुध से उसे कोई अशुभता नहीं मिल रही है. अब वह कर्क राशि में बैठा है. चन्द्रमा मान लेते है किसी तरह अशुभ है. शुक्र एवं चन्द्रमा के अंशो का अंतर लेते है. और चूंकि शुक्र पंचम भाव में है अतः इसका पाँचवाँ अंश देखेगें। कल्पना करते है कि यह वृश्चिक का अंश होता है. वृश्चिक राशि आठवी है. चन्द्र-शुक्र के अंतर को 324 से गुणा करते है. तथा गुणनफल में पाँच का भाग देते है. जो शेष मिलता है उतने काठिन्य का कज्जल (हीरा) धारण करना चाहिये। यहाँ 324 दिन लिया गया है जो एक चांद्र मास में होता है. चन्द्रमा के हिसाब से 27 दिन का एक माह तो 12 माह में 324 दिन ही होते है. यदि शेष शून्य आता है तो बिना काठिन्य का हीरा धारण करना चाहिये। .                                      पण्डित आर के राय
Email- khojiduniya@gmail.com

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