Menu
blogid : 6000 postid : 658842

क्या शुभ ग्रह शुभ स्थान में बैठ कर शुभ फल देगें?

वेद विज्ञान
वेद विज्ञान
  • 497 Posts
  • 662 Comments
क्या शुभ ग्रह शुभ स्थान में बैठ कर शुभ फल देगें?
चाहे गुरु हो या शुक्र, चन्द्रमा हो या बुध, भले ही कुण्डली में शुभ भाव में बैठे हो, और उच्चस्थ ही क्यों न हो, किन्तु फिर भी शुभ फल नहीं देगें यदि उनका वेध हो रहा हो. अर्थात गुरु भले ही केंद्र में तथा अपने उच्च कर्क राशि में ही क्यों न बैठा हो तथा उस पर भले शुक्र, चन्द्र आदि की दृष्टि हो या इनसे युक्त हो, किन्तु यदि इसके वेध स्थान में कोई ग्रह बैठा हो तो गुरु अशुभ फल देने लगता है.—–
“षष्ठ्यांत्यै खजले सुताय भवने त्र्यंके रवेः स्यान्मिथ।
स्त्रयंके जन्मसुते खके मृत्तिभवे ह्यस्ते षडंत्ये विधो:I
त्र्यर्के लाभसुते सपत्नतपसोर्व्यर्क़ाशुभानां व्यधो –
अष्टाद्ये पुत्रधने अष्टखे कसहाजे अर्यंके भवान्त्ये विदः।।2
दव्यस्ते अष्टादिमयो: खके नवसुते त्रिंशे अष्टपुत्रे त्रिका–
द्ये अर्यन्त्ये कभवे भृगोर्ज्ञशशिनो: शन्यर्कयोर्नो व्यधः।।
विद्धो व्यस्तफलो भवेद्दिविचरो हेमाद्रिविन्ध्यान्तरे।।
खेटर्क्षाद्वयधखेचरं विगणयान्यत्रोभयं जन्मभात।।3
(मुहूर्तमार्तण्ड अध्याय 10, गोचरप्रकरणम्)
अर्थात सूर्य का 6=12, 10=4, 5=11, 3=9 स्थानो में परस्पर वेध होता है. जैसे सूर्य छठे हो और बारहवें कोई दूसरा ग्रह हो सूर्य को ग्रह से परस्पर वेध होता है. इसी तरह आगे भी जानें-
चंद्रमा का- 3=9, 1=5, 10=4, 8=11, 2=7, 6-12
मंगल अन्य पाप ग्रहो का- 3=12, 11=5, 6=9
बुध का- 8=1, 5=2, 8=10, 4=3, 6=9, 11=12
शुक्र का- 2=7, 8=1, 10=4, 9=5, 3=11, 8=5, 3=1, 6=12, 4=11,
यहाँ पर मैंने गुरु का वेध नहीं बताया है क्योकि गुरु का वामवेध भी होता है. जिसे मुहूर्त मार्तण्ड, मुहूर्त चिंतामणि, पिंडाचार, खखोल्काचारम आदि में बताया गया है. यदि थोड़ा प्रयत्न किया जाय तो इसकी वैज्ञानिक पृष्ठ भूमि भी स्पष्ट हो जाती है.
गुरु- 2=12, 5=4, 11=8, 7=3, 9=10
किन्तु इसके वाम वेध का मतलब यह होता है कि जैसे 2 में गुरु हो तथा 12वें कोई ग्रह हो तो अशुभ होता है. किन्तु इसके विपरीत यदि 12वें गुरु हो तथा 2 में कोई ग्रह हो तो यह वेध बहुत शुभ होता है. जब कि अन्य ग्रहो के साथ ऐसा नहीं होता है.
भौगोलिक तथ्यो से यह स्पष्ट है कि हिमालय एवं विन्ध्याचल के बीच वाले देशो में वेध राशि की गणना उस राशि से करनी चाहिये जिस राशि में ग्रह हो. जैसे सूर्य जन्म काल में जिस राशि में हो उससे छठी राशि में गोचर में हो और सूर्य से बारहवें कोई दूसरा ग्रह हो तो वेध होगा। ऐसा ही सब ग्रहो में समझें। किन्तु दूसरे देशो में जन्म राशि से ही दोनों ग्रहो को देखना चाहिये। जैसे जन्म राशि से छठे सूर्य और बारहवें दूसरा ग्रह हो तो वेध होगा।
कारण यह है कि विन्ध्योत्तर का क्षेत्र शेष भूखंड से 40 से 89 अंश तक उठा हुआ है. जिससे ग्रहो के द्वारा नित्य संचरण में यहाँ की राशियाँ सीधे इनके प्रभाव में आ जाती है. जब कि शेष भूखण्ड में भू परिधि के पश्चिमी जीवा का नजदीकी संपर्क चन्द्रमा से रहता है. ध्यान रहे झुके हुए भाग सदा चन्द्रमा के कर्षण क्षेत्र में होते है जिससे वहाँ पर ज्वार भाटा हमेशा आता रहता है. जब कि सूर्य के स्पष्ट प्रभाव में आने वाले भूखण्ड के निवासी प्रायः काले या साँवले रँग के होते है. इसी तथ्य को ऊपर के श्लोक की अंतिम दो पंक्तियो में बताया गया है.
पण्डित आर के राय
Email- khojiduniya@gmail.com


Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply