किसी बड़े व्यावसायिक प्रतिष्ठान्न या उसके स्वामी का विनाश
वेद विज्ञान
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किसी बड़े व्यावसायिक प्रतिष्ठान्न या उसके स्वामी का विनाश
19 नवम्बर 2013 को मंगलवार के दिन गुरु उच्चाभिलाषी होते हुए (लगभग 29 अंशो पर) मिथुन राशि में पुनर्वसु नक्षत्र में वक्री हो जा रहा है.तत्कालीन शनि अपनी उच्च राशि में विशाखा नक्षत्र में संचरित है. यह फाल्गुन कृष्ण द्वितीया बुधवार संवत २०६९ को स्वाति के चतुर्थ चरण में वक्री हुआ था. तथा आषाढ़ कृष्ण एकादशी बुधवार संवत 2070 को स्वाति द्वितीय चरण में मार्गी हुआ. और (हिंदी) वर्षान्त (2070 के अंत तक) में बुध, मंगल एवं शुक्र भी वक्री हो जा रहे है. शुक्र शुक्रवार के दिन पूर्वाषाढ़ा (धनु राशि) में एकादशी तिथि को वक्री हो रहा है. बुध बुधवार को शतभिषा नक्षत्र (कुम्भ राशि) में वक्री हो रहा है. तथा मंगल मंगलवार के दिन (फाल्गुन शुक्ल तृतीया को) चित्रा नक्षत्र में वक्री हो रहा है. तीनो योग एक साथ बन रहे है- मंडूक, विषलोम एवं श्रिप्लुत। यदि गोल (पृथ्वी) के ऊर्ध्वाधर, लम्बवत या परालम्बावत किसी भी बिंदु से देखें तो सप्तम एवं दशम पात बिन्दुओ का समानांतर क्रान्ति बिंदु से भी कही न कही स्पर्श हो जा रहा है. प्राथमिक स्तर पर गुरु के द्वारा जो भूखण्ड आरक्षित हो रहा है उसका क्षेत्रफल 19 से लेकर 25 अक्षांश तथा 70 से लेकर 85 अंश देशान्तर बन रहा है. जिससे शुक्र की उत्तर, मँगल की भी उत्तर तथा गुरु एवं बुध की किरणो का अपवर्तन पश्चिम हो रहा है. इनकी छाया जिसमें राहु भी घिरा हुआ है, तथा उस पर शनि की पूर्ण दृष्टि (आयताकार अवनयन) इसकी भीषणता और बढ़ा रहा है.
गुरु एवं शनि- स्वाति का दूसरा एवं चतुर्थ चरण, मंगल चित्रा एवं बुध शतभिषा तथा शुक्र पूर्वाषाढ़ा।
यदि हम इसे कूर्म बँटवारे के हिसाब से देखते है तो गुरु-शनि विषलोम, बुध-शुक्र मण्डूक एवं मंगल श्रीलुप्त की स्थिति बना रहे है. अब देखें महाभाष्य-
“चित्रास्ये प्रमदाजनलेखकचित्रज्ञचित्रभाण्डानि।
स्वातौ मागधचरदूतसूतपोतप्लवनटायाः।
ज्येष्ठाद्यं पन्चर्क्ष क्षुतस्कररोगदं प्रबाधयते।
काश्मीराश्मकमत्स्यान् सचारूदेवीनवंतिंश्च।
अत्रारोहेदद्रविडाधीराम्बष्ठत्रिगर्तसौराष्ट्रान्।
नाशयति सिंधुसौवीरकांश्च काशीश्वरस्य वधः.”
आचार्य वराह ने भी अपनी वृहत्संहिता में ठीक यही बताया है.
इस प्रकार सिद्धान्त गणित के अनुसार उपरोक्त क्षेत्र में किसी बहुत बड़े व्यवसाय या व्यवसायी का निधन (ह्त्या या अकाल निधन) अवश्यम्भावी है. और यह “रसान्द्वर्धिकक्षिप्तः कालेषु प्रवर्तितः।” के अनुसार होलिका के चौथे पक्ष अर्थात लगभग वैशाख माह के मध्य तक घटित ही हो जाना है.
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