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मेरे लेखो में कही कही कुछ ऐसे भी शब्द आ जाते है जिनके बारे में मेरे पाठको को कुछ असुविधा हो जाती है. कुछ को देखें-

वेद विज्ञान
वेद विज्ञान
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मेरे लेखो में कही कही कुछ ऐसे भी शब्द आ जाते है जिनके बारे में मेरे पाठको को कुछ असुविधा हो जाती है. कुछ को देखें-
त्रिकटु– सोंठ, पीपल और काली मिर्च के समभाग मिश्रण को त्रिकटु कहते है.
त्रिकंटक- कटेली, धमाला और गोखरू को त्रिकंटक कहते है.
त्रिमद– एकत्र मिले हुए वायविडंग, नागरमोथा और चित्रक को त्रिमद कहते है.
त्रिजात– दालचीनी, तेजपात और इलायची को त्रिजात कहते है.
त्रिलवण– मिले हुए सेंधा, काला एवं विड्नमक को त्रिलवण कहते है.
क्षारत्रय– यवक्षार, सज्जीखार एवं सुहागा के मिश्रण को क्षारत्रय कहते है.
मधुरत्रय– न्यूनाधिक मात्रा में मिले हुए घृत, मधु तथा गुड को मधुरत्रय कहते है.
त्रिगंध- मिले हुए गंधक, हरिताल और मैनसिल को त्रिगंध कहते है.
चतुर्जात- एकत्र मिले हुए दालचीनी, तेजपात, इलायची और नागकेशर को चतुर्जात कहते है.
चातुरभद्र– एकत्र मिले हुए सोंठ, अतीश, मोथा और गिलोय को चातुरभद्र कहते है.
चातुर्बीज– एकत्र मिले हुए मेंथी, अजवायन, काला जीरा और हालो के बीज को चातुर्बीज कहते है.
चतुरुष्ण– एकत्र मिले हुए सोंठ, कालीमिर्च, पीपल और पीपलामूल को चतुरुष्ण कहते है.
चतुःसम– हरड़, लौंग, सेंधानमक और अजवायन को चतुःसम कहते है.
बलाचतुष्टय– एकत्र मिले हुए खरैंटी, सहदेई, कंघी और गगेरन को बलाचतुष्टय कहते है.
पञ्चवल्कल- आम, बड़, गूलर, पीपल और पाकड इन पञ्चक्षीर वृक्षो के वल्कलो के मिश्रण को पञ्चवल्कल कहते है.
तृणपञ्चमूल– एकत्र मिले हुए कुश, काँश, सरकण्डा, डाभ और गन्ने के मूल को तृणपञ्चकमूल कहते है.
अम्लपञ्चक– एकत्र मिले हुए बिजौरा, सन्तरा, इमली, अम्लवेत और जम्बीरी नीम्बू को अम्लपञ्चक कहते है.
लघुपञ्चमूल– शालिपर्णी, पृश्निपर्णी, छोटी कटेली, बड़ी कटेली और गोखरू को लघुपञ्चमूल कहते है.
वृहतपञ्चमूल– अरणी, श्योनाक, पाढ़ल की छाल, बेल और गम्भारी को वृहतपञ्चमूल कहते है.
पञ्चपल्लव- एकत्र मिले हुए आम, कैथ, बिजौरा, बेल और जामुन के पत्ते को पञ्चपल्लव कहते है.
मित्रपञ्चक– एकत्र मिले हुए गुड, घी, घुघुची, सुहागा और गुगुल को मित्रपञ्चक कहते है.
पञ्चकोल- एकत्र मिले हुए पीपल, पिपलामूल, चव्य, चित्रक और नागर (सोंठ) को पञ्चकोल कहते है.
पञ्चगव्य- एकत्र मिले हुए गाय के दूध, दही, घृत, गोबर एवं गोमूत्र को पञ्चगव्य कहते है.
पञ्चलवण– एकत्र मिले हुए सेंधा, काला, वीडु, सोचल और समुद्र लवण को पञ्चलवण कहते है.
पञ्चक्षार- तिलक्षार, पलाशक्षार, अपामार्ग क्षार और यवक्षार को पञ्चक्षार कहते है.
पञ्चसुगन्धि- शीतल चीनी, सुपारी, लौंग, जावित्री और जायफल को पञ्चसुगन्धि कहते है.
षडूषण– पञ्चकोल में काली मिर्च मिला देने से षडूषण कहते है.
सप्तधातु- सुवर्ण, चाँदी, ताम्र, वंग, यशद, शीशा, और लोहा को सप्त धातु कहते है.
सप्त उपधातु – सुवर्णमाक्षिक, रौप्यमाक्षिक, नीलाथोथा, मुरदासंग, खर्पर, सिन्दूर एवं मण्डूर को सप्त उपधातु कहते है.
सप्त उपरत्न- वैक्रान्त, राजावर्त, फ़िरोज़ा, शुक्ति, शँख, सूर्यकान्त और चंद्रकांत को सप्त उपरत्न कहते है.
सप्त सुगन्धि- अगर, शीतल मिर्च, लोबान, लौंग, कपूर, केशर और चतुर्जात को सप्त सुगन्धि कहते है.
अष्टवर्ग- मेदा, महामेदा, काकोली, क्षीरकाकोली, जीवक, ऋषभक, ऋद्धि एवं वृद्धि को अष्टवर्ग कहते है.
मूत्राष्टक- गाय, भैंस, बकरी, भेंड़, ऊँटनी, गधी, घोड़ी और हथिनी के मूत्र को मूत्राष्टक कहते है.
क्षाराष्टक– अपामार्ग, आक, इमली, तिल, ढाक, थूहर इनके पञ्चाङ्ग के क्षार तथा सज्जीक्षार “क्षाराष्टक” कहलाते है.
नवरत्न– हीरा, मोती, पन्ना, प्रवाल, लहसुनियाँ, गोमेदमणि, माणिक्य, नीलम और पुखराज ये नवरत्न कहलाते है.
नव उपविष- थूहर, आक, कलिहारी, चिरभिटी (गूंजा), जमालगोटा, कनेर, धतूर और अफीम ये नव उपविष कहलाते है.
दशमूल- लघुपञ्चमूल और वृहत पञ्चमूल को मिला देने से दशमूल बन जाता है.
पण्डित आर के राय
Email- khojiduniya@gmail.com

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