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क्या आप भी हवन करने जा रहे है

वेद विज्ञान
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———–क्या आप भी हवन करने जा रहे है?——

आज नववर्ष के उपलक्ष्य में कुछ एक स्थानो पर हवन होते हुए देखा। सम्भवतः किसी कारण वश पहली जनवरी को हवन नहीं हो पाया होगा। मुझे दुःख हुआ कि लोग हम पंडितो के कहने पर हवन आदि कराते है. पूजा पाठ आदि विविध अनुष्ठान्न कराते है. हवन के लिये जितनी सामग्री बतायी जाती है उतना व्यक्ति खरीद भी लेता है. बताये गये नियम से सब व्यवस्था भी कर लेता है. फिर भी उसका कोई परिणाम नहीं मिलता।

मैंने देखा हवन लोहे के बने एक बड़े परात में लकड़ी सजा कर किया जा रहा था. उस पर भी लकड़ी के ऊपर लक्ष्य, उपलक्ष्य, शंकु, अवितान आदि का कोई संकेत विधान नहीं था. वह्निमार्ग का कोई चिन्ह नहीं था. उपाश्रु कही दिखाई नहीं दे रहा था. यजमान का शंकुष्टि या प्रतिपात हुआ ही नहीं था. चूंकि यह सेना का कार्यक्रम नहीं था. मैं तो सिर्फ आमंत्रण पर गया था. इसलिये हस्तक्षेप भी नहीं कर सकता था. मैं भी लोगो के मध्य बैठ गया. बात बड़े आदमी की थी. संयुक्त महानिदेशक (सिविल सुरक्षा) के घर पर यह आयोजन था. और जो पण्डित जी थे वह उस क्षेत्र क्या लगभग उस राज्य के प्रतिष्ठा लब्ध आचार्य थे. आखिर कार श्री जामवाल साहब की नज़र हम पर पड़ी. मुझे भी बुलाकर बिठा लिया गया. मैं भी सबके साथ स्वाहा स्वाहा का उच्चारण सब के साथ स्वर मिलाकर करने लगा. आग उसमें पहले से ही लगाईं जा चुकी थी. हवन सामग्री पड़ते ही धूआँ उठना शुरू हो गया. समूचा वरांडा, सामने का टेरेस एवं घर धूआँ से भर गया. सबकी आँख-नाक से पानी गिरना शुरू हो गया. हालत यह हो गई कि सब उठ कर चले गये. मैं, साहब की श्रीमती, एक नौकर और पंडित जी किसी तरह बैठे रहे. मन्त्र तो सही पढ़ रहे थे किन्तु क्रम क्या था उसके बारे में मैं न तो कभी देखा था और न ही कही पढ़ा हूँ. हवन समाप्त होने के बाद पण्डित जी ने एक दीपक जला कर नौकर से बोले सबको दिखा दो. बड़े घर की बात थी. आगंतुक भी “अतिविशिष्ट” श्रेणी के थे. उस दीपक के थाल में “नोटों” की बरसात शुरू हुई. क्योकि “प्रेस्टिज” की बात थी. तथा हम किसी से कम नहीं। किसी ने पचास की नोट डाली तो दूसरा थोड़ा बढ़कर थोड़ा सबको दिखाते हुए सौ की नोट डाला। इस तरह उसमें लगभग बीस पच्चीस नोट लगभग हजार के भी दिखाई दे रहे थे. तत्काल पंडित जी ने बिना गिनती किये सब समेट कर नाश्ते की कुर्सी पर बैठे और जल्दी जल्दी नाश्ता निपटा कर अतिशीघ्रता पूर्वक बाहर निकलकर बाइक स्टार्ट किये और चलते बने. अभी थोड़ा भी समय नहीं बीता तब तक डी जी साहब के तत्काल प्रभाव से स्थानान्तरण का आदेश आ गया. जिसे आप लोगो ने आज टीवी एवं समाचार पत्रो में भी पढ़ा होगा।
खैर मैं यह नहीं कहता कि यह सब पण्डित जी के कारण हुआ.
किन्तु हवन का वह विधान सर्वथा अनिष्टकारी था. न तो दिशाविधान, मन्त्रविधान, प्रतिपस्थविधान, न तो कोई यज्ञानुग्रह, न कोई क्रम, न मन्त्र में अंशु, उपांशु तथा प्रगल्भ यज्ञ का स्थान, अब ऐसे यज्ञ-हवन से किसी तरह की अपेक्षा सिकतातैलमर्दन ही कहलायेगा।
एक अच्छे पढ़े लिखे से लगने वाले सज्जनको यह भी कहते हुए वही पर सूना कि हवन के प्लेट को उठाकर पूरे घर में घुमा दो. वह धुंए का परात पूरे घर में घुमाया गया था. कह रहे थे कि धुवें से पूरा घर शुद्ध हो जाता है. मैं इसका स्पष्टीकरण दे देना चाहता हूँ.
हवन में  सामग्री के अलावा गूगल, लोबान, अगर, तगर, लाख, गुड, तिल एवं घी मुख्य रूप से पड़ता है.
आग में जलने के बाद जब गूगल का भस्मीकरण (आक्सीडेशन) होता है तो यदि लौ (Flame) नहीं फूटी है तो उससे टेट्राकार्बो सल्फाक्सिन मेथिनाइड गैस निकलती है. जिससे लोबान का इथियोलाइसीन मोनोकार्बाइड मिलकर एक जहरीली गैस फेनॉक्सोलिथिसिन ब्रोमोसाइड का निर्माण करता है. जो सघन राज्यक्षमा (Critical Bactria Of Pulmonary Tuberculosis) तथा डीफ्रेगमेंटेसन आफ क्यूबोल्युअर एक्टिविटी को कज्जलनायनित (कार्बोसाइटरेक्टीफाइड) कर स्थाई रूप से धमनी (Arterial Duct) को कुण्ठित (Clotted) कर देता है.
किन्तु यदि ज्वाला में उपरोक्त पदार्थ डालते है तो मेथिलोक्सिन को ब्रोमाइड बनाने का अवसर नहीं मिल पाता है. तथा सेल्सियल नाइट्रस रिबोक्सीडेसन समस्त कशेरुका एवं आलिन्द को स्फ़ुर्जन विलयन (Proprietorial Bicarbonate) प्रदान करता है. जिससे घर के सारे सदस्यो या हवन में बैठे सदस्यो के चारो तरफ सुदृढ़ एवं सघन अभेद्य किरणो का सुरक्षा कवच बन जाता है. कोई भी बाहरी विकिरणात्मक या दृष्य दुर्घटना नहीं होने पाती। और एक तरह का कर्षणात्मक बल चारो तरफ सक्रीय हो जाता है.
इसी चक्र का प्रयोग आज कल आधुनिक विज्ञान द्वारा विविध उपग्रहों को उनकी निर्धारित कक्ष्या (Orbit) में स्थिर करने में किया जा रहा है. यही कारण है कि वैदिक मन्त्र जो यद्यपि बुध ग्रह का है किन्तु अग्नि प्रज्ज्वलित करने में भी प्रयुक्त होता है, उसमें प्रज्ज्वलित अग्नि में ही हवन डालने का विधान बताया गया है.
“ॐ उद्बुद्ध्यस्वाग्ने प्रतिजागृहि त्वमिष्टा पूर्ते सं सृजेथामयम् च. अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन् विश्वे देवा यजमानश्च सीदति।”
हवन को मजाक न बनायें।
“ॐ हिरण्यगर्भ समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेकासीद्।
स दाधार पृथिवींद्यामुतेताम कस्मै देवाय हविषा विधेम ?
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प्रजापते त्वदेतान्यानि विश्वाजातानि परिता बभूव।
स दाधार पृथिवीम द्यामुतताम कस्मै देवाय हविषा विधेम?”

पण्डित आर के राय
Email – khojiduniya@gmail.com

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