हिन्दू धर्मशास्त्र एवं उसकी विद्रूपता-???? (भाग 2)
वेद विज्ञान
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हिन्दू धर्मशास्त्र एवं उसकी विद्रूपता-???? (भाग 2)
विप्रादि (चातुर्वर्ण्य) का गृहद्वार –
“विप्रादीनां व्यासात् पञ्चासो अष्टादशाङ्गुलसमेतः।
साष्टांशो विष्कम्भो द्वारस्य त्रिगुण उच्छ्रायः।।”
वर्णानुसार घर की चौड़ाई का पाँचवाँ भाग जान लें. उसमें 18 जोड़ें। इस योगफल का आठवाँ भाग और जोड़ लें. इस योगफल के बराबर चौड़ा अंगुलात्मक दरवाजा रहेगा।
चौड़ाई गुणे 3 करने से दरवाजे की ऊंचाई ज्ञात हो जायेगी। यह सब टीकाकारो ने कहा है. हमारे विचार से यहाँ भी 32 (गृह विस्तार) जोड़ा जायेगा। ब्राह्मण के घर में द्वार की ऊंचाई निकालकर दिखाई जा रही है. चौड़ाई 32 हाथ का पंचमांश 6 हाथ +18= 24 अंगुल मिले। इसमें इसीका अष्टमांश और जोड़ा तो 24+3=27 अंगुल चौड़ाई एवं 27 गुणे 3 =81 अंगुल ऊंचाई दरवाजे की रहेगी।
यह ऊंचाई 81 अंगुल = 60″ या 5′ होती है. तथा चौड़ाई 1″ 8′ है. यह बिलकुल ही अव्यावहारिक है. इतनी चौड़ाई का दरवाजा तो किसी झुग्गी में भी नहीं होता होगा। ऊंचाई तो किसी तरह गले के नीचे उतार भी लें, तब भी चौड़ाई सदा असंगत ही रहेगी।
वराह मिहिर जैसा ज्योतिष का उद्भट एवं वैदिक गणित का मूर्द्धन्य विद्वान यदि मान भी लें तो त्रिकालदर्शी स्वयं मन्त्र कर्त्ता ऋषि मुनि इतनी भयङ्कर भूल कैसे कर सकते है?
इस प्रकार ऊपर के श्लोक में “द्विगुण उच्छ्राय” की जगह “त्रिगुण उच्छ्राय” बदल दिया गया है.
इसी प्रकार यही नहीं समस्त संहिता एवं सिद्धांत एवं प्रामाणिक धार्मिक ग्रंथो में आप को विचलन दिखाई देगा जो हमारे ऋषियो तक को बदनाम करता है.
इसी प्रकार अन्य जगहो पर भी देखें-
कुण्डली में चन्द्रमा के दोष के निवारण हेतु लौकी का विविध प्रयोग बताया गया है.
अर्थात ज्युद्राक्ष (लौकी) का सेवन चन्द्रमा के दुर्गुण को और बढ़ाता है. अतः यदि किसी का चन्द्रमा अशुभ हो तो उसे भूल कर भी यहाँ तक कि घर के आसपास भी लौकी का पौधा तक न लगावे। वर्त्तमान समय में आधुनिक चिकित्सा विज्ञान भी जलीय रोगो (हीड्रोफ्रीडरिक डिजीजेज) में लौकी (pumpkin) का सेवन उसके जलीय तत्व की विकृति का शिकार होना बताया गया है.
किन्तु हमारे अन्यान्य शास्त्रो में ऐसी अनर्गल, निराधार एवं असत्य तथ्यो का समावेश मात्र इसीलिये कराया गया है ताकि इनकी प्रामाणिकता समाप्त होवे। तर्क के आधार पर ये झूठे प्रमाणित हों. लोगो का विश्वास इन पर से उठ जाय. तथा धार्मिक ग्रंथो एवं मान्यताओं का उत्खनन हो जाय.
इसी आधार पर हमारे नीम हक़ीम खतरे जान वाले तथा कथित ज्योतिषाचार्य अपने ज्योतिष की दूकान को खूब पल्लवित पुष्पित कर रहे हैं. और अगर कोई बात या विवाद होता है तो झटपट शास्त्र के कथन का प्रमाण दे देते है. वे यह नहीं सोचते कि क्या वास्तव में यह कथन उस ऋषि-मुनि या आचार्य का हो सकता है.
और लोग ऋषि मुनि का कथन सर्वोपरि मानकर उस पर आँख बंद कर विश्वास कर लेते है. और जब परिणाम कुछ नहीं मिलता या विपरीत मिलता है तो वह शास्त्रो से दूर भागना शुरू कर देता है.
और अंत में अनुरोध——यही है कि शास्त्र के कथन का उदाहरण देने से पूर्व उसकी सान्वयी व्याख्या, धरातलीय औचित्य एवं उसकी व्यावहारिक प्रामाणिकता के अलावा उसकी मौलिकता का परीक्षण अवश्य कर लें
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