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हाय रे ज्योतिष एवं धन्य हो ज्योतिषी

वेद विज्ञान
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हाय रे ज्योतिष एवं धन्य हो ज्योतिषी

एक वैद्य के यहाँ एक कम्पाउण्डर नौकरी करता था. जब कही वैद्य रोगी देखने किसी गॉव घर जाता था. तो वह कम्पाउण्डर उसके दवा का थैला लेकर उसके साथ जाता था. वह कम्पाउण्डर बड़े ध्यान से वैद्य की हर एक गतिविधि को देखता था. उसको नौकरी करते बहुत दिन हो गया था. अब वह सोच रहा था कि आखिर वैद्य यह कैसे पता लगा लेता है कि मरीज के पेट में क्या है या उसने क्या खाया है जो बीमार पड़ गया.

एक दिन किसी गॉव में वह वैद्य के साथ एक खाँसी-बुखार से पीड़ित रोगी को देखने गया. वैद्य ने उसकी नाड़ी देखी। उसके पेट पर हाथ रखा. जीभ, आँख आदि देखा। और बोला कि दुष्टो इसे खाँसी है और तुम लोगो ने इसे मट्ठा और चावल खिला दिया? उसके घर वाले चौंक गये. यह वैद्य इसके पेट के अंदर की चीज कैसे देख लिया? किन्तु वह वैद्य उस क्षेत्र का प्रतिष्ठालब्ध चिकित्सक था. इसलिये किसी को ज्यादा अविश्वास नहीं करना पड़ा.
किन्तु वह कम्पाउण्डर बहुत परेशान हो गया. आखिर यह वैद्य यह कैसे जान गया कि उसने मट्ठा और चावल खाया है. तभी उसकी नज़र चारपाई के दूसरी तरफ पड़ी जहां कुछ चावल के टुकड़े छाछ से लिपटे हुए मिले। बस कम्पाउण्डर भेद समझ गया. अब वह जान गया कि कौन मरीज क्या खाया है इसका पता कैसे लगाया जाएगा। और उसने अपनी अलग दुकान खोल ली.
एक दिन वह किसी गॉव में मरीज देखने गया. वह आदमी घोड़े की देखभाल करने वाला सईस था. वह वाही घुड़साल में लेटा हुआ था. यह वहाँ पहुँच कर उसकी नाड़ी पकड़ कर चारो तरफ देखने लगा. पास में ही घोड़े की लीद फैली हुई दिखाई दी. बस वह गुस्सा होकर चिल्लाकर बोला ” अरे दुष्टो तुमने इसे घोड़े की लीद खिला दी. इसीलिये यह बीमार पड़ गया.”
इतना कह कर वह कुछ दवा दिया और उसे खूब छाछ पिलाने को कह दिया।
तत्काल उसे दवा देकर छाछ पिलाया गया. और वह मरीज मर गया. अब उसे श्मशान ले जाना था. अर्थी बनाई गई. उसे लिटाया गया. और लोग उसे उठाकर श्मशान चलने लगे. यह कम्पाउण्डर भी अर्थी में आगे लगा हुआ था. ज्यो ज्यो लोग चलते थे उस मरे आदमी के पेट से छाछ हलक हलक कर उस कम्पाउण्डर के सिर पर गिरता था. किन्तु बात शवयात्रा की थी. इसलिये वह कुछ नहीं बोला। और अन्तिम संस्कार करवाकर घर वापास आया और नहाया धोया।
अगले दिन एक दूसरा व्यक्ति मरीज देखने के लिये बुलाने आया. वह कम्पाउण्डर बोला —
“भाई मैं मरीज देखने तो चलूँगा। किन्तु अर्थी में आगे नहीं रहूँगा।”
वह व्यक्ति उसे पागल समझ कर वापस चला गया.
मुझे इस अंतर्कथा के माध्याम से कुछ एक बातें बतानी है. आज यजमान से ज्यादा पण्डित और ज्योतिषी हो गये है. बस रास्ते में कही एक अदरक की गाँठ मिल गई और किराना की दुकान लगा दिये। कुछ एक किताबें देख लिये जिनका न कोई आधार है, न प्रामाणिकता और न कोई मौलिकता। आँवले के पेड के नीचे पूजा करने से भगवान प्रसन्न होते है. तो क्या उनको आम के पेड़ से घृणा या वैर है?
केले की पूजा से वृहस्पति प्रसन्न होते है. तो क्या अमरूद की पूजा से वह शाप देगें?
भालू के पूँछ एवं घोड़े की पूँछ के बाल से बने यंत्र से नज़र, जादू, टोना आदि दूर होता है.
पीतल के लोटे से जल चढाने से देवता प्रसन्न होते है.
तिल चढाने से पितृ एवं सूर्य देव तृप्त होते है।
क्या इन सबका आधार है? क्या किसी ने किताब में लिख दिया तो वह आर्षमत हो गया?
क्या ऋषि मुनि सब ऐसी ही भ्रामक बातें करते एवं लोगो को गुमराह किया करते थे?
क्या बिना किसी प्रमाण या बिना किसी आधार के ही ऋषि मुनि आदेश, सम्मति या निर्देश दिया करते थे?
ऋषि मुनि तो आदेश, निर्देश एवं उपदेश सप्रमाण एवं सोद्देश्य देते थे. किन्तु उसे तोड़ मरोड़ कर या अपनी अज्ञानता, दुष्टता के कारण उसे भ्रामक एवं दोषपूर्ण बनाकर अपनी पंडिताई एवं ज्योतिष की दुकान चलाने के लिये आज कल के कुकरमुत्ते की तरह यत्र तत्र उग आये तथाकथित ज्योतिषी समस्त क्रिया कलाप एवं ज्योतिष को ही धोखा दे रहे है.
कोई क्यों नहीं बताता है कि भगवान सूर्य को तिल एवं गुड क्यों प्रिय है? या उन्होंने कहाँ कहा है कि संक्रांति के दिन पूड़ी खाने वाले पर वह प्रसन्न नहीं होगें? या तिल खाने वाले को ज्यादा एवं गुड खाने वाले को कम वरदान देगें? या गेहूँ जौ चढाने से सूर्य देव क्यों नहीं ज्यादा वरदान देते है?
यदि ज्योतिष एवं कर्मकाण्ड की महिमा, गुरुता, सम्मान एवं उपयोगिता को पल्लवित पुष्पित करना या इसे बचा सहेज कर रखना है तो भ्रम, जालसाजी एवं थोथे ज्ञान का प्रदर्शन बंद कर इसका पूर्ण, सूक्ष्म एवं सुव्यवस्थित अध्ययन कर फिर इसे सामान्य लोगो तक पहुँचाना पडेगा। जिससे इस महान विज्ञान को सीमित न किया जा सके. तथा यह हिन्दुओ से ज्यादा गैर हिन्दू सम्प्रदाय में यश, प्रतिष्ठा एवं सम्मान प्राप्त कर सके.
“शिवः त्व पन्थानस्तु”

पण्डित आर के राय
Email- khojiduniya@gmail.com

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