प्रामाणिक सूर्य मन्त्र एवं यंत्र (वैज्ञानिक तथ्यो समेत)
वेद विज्ञान
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प्रामाणिक सूर्य मन्त्र एवं यंत्र (वैज्ञानिक तथ्यो समेत)
ॐ अध्वनामध्वपते प्र मा तिर्स्वस्ति में अस्मिन्पथि देवयाने भूयात्।
——- (मेरे द्वारा यज्ञ में प्रयुक्त विविध एवं प्रभूत हव्य काव्य आदि यज्ञ समिधा सृजित त्रिरूप- ठोस, द्रव एवं गैस से अपनी किरण रूप ऊर्ज़ा को सामर्थ्य प्रदान करते हुए)—–
” अध्वर अर्थात उत्कृष्ट यज्ञो के अधिपति (भगवान सूर्य देव) अपनी निरंतर बढती हुई शक्ति से हमारे वांच्छित संचरण मार्ग को प्रशस्त करें।”
======यह एक स्वतः सिद्ध सूर्य मन्त्र है जिसे सूर्य यंत्र के साथ धारण करने से क्रिया शील हो जाता है.
=====इसे प्रातः काल पढना मनोकामना पूर्ण करने वाला बताया गया है. =====इस मन्त्र में छन्द शास्त्र एवं तंत्र शास्त्र का सघन एवं क्लिष्ट समायोजन है. आप स्वयं देखें “ॐ” कार को छोड़ कर सूर्य की सप्त रश्मियों का वृद्धि क्रम–अ, ध्व में का पूरा व, न, म, पुनः ध्व में का व, प और त. कारण यह है कि वेदिक व्याकरण के अनुसार अर्द्धमात्रिक (व्यंजन) लुप्त हो जाता है.-देखें सिद्धांत कौमुदी का सूत्र–“हलंत्यम्”
इस मन्त्र का नियमित पाठ सदा लाभकारी है.
“ॐ भ्राजिष्णवे विश्व हेतवे नमः”
इस मन्त्र को पढते हुए ताजे गुलाब से भीगे केसर युक्त जल से यंत्र को अभिमंत्रित करना चाहिये।यंत्र को पहले नये चावल के मांड एवं जौ के आटे की सहायता से यंत्र के आकार के भोजपत्र पर चिपका लेना चाहिये। भोजपत्र अंतर्मुखी अर्थात बीच वाली सतह का होना चाहिये।
यन्त्र को सर्व प्रथम शोधित कर लें. इसके लिये किसी ऊसर जमीन के पास उगे दूर्वा के रस से इसे रगड़ कर साफ़ करें ताकि इसका अजिंक्यात्मकता (Oxidanted) परत निकल जाय. अन्यथा इसका ताम्रमिश्रण (Repilicent Viveral Compound of CuSO4) शर्करात्मक कज्जल (Sodium Carbonate Hydro Carbide) क्यूप्रिक नाइट्रेट नामक विष का निर्माण करता है. इसके बाद इसे गोघृत, लालारस एवं पुष्पराग के मिश्रित रस से भली भाँति धो लें. फिर इसे ऊपर बताई विधि से पूजित एवं सिद्ध करें।
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