चमत्कारी पत्थर ==हक़ीक़ सुलेमानी==उत्पत्ति एवं वैज्ञानिक महत्त्व
वेद विज्ञान
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चमत्कारी पत्थर ==हक़ीक़ सुलेमानी==उत्पत्ति एवं वैज्ञानिक महत्त्व
कहावतो के अनुसार हक़ीक़ पत्थर पर्युश्रवण नामक सिद्ध तपस्वी एवं ऊर्ध्वनिष्ठ ब्राह्मण के शाप के कारण दारुकवन के पश्चिमी पठारी टीले “रबरेशम” जिसका प्राचीन पौराणिक नाम “दिव्याधर” है, के कुष्ठ रोग ग्रसित हो जाने का परिणाम है. कहा जाता है कि यह पर्वत दारुक नामक राक्षस जो एक भयंकर सर्प था, का विश्वस्त अनुयायी था जिसका नाश भगवान कृष्ण ने अपनी नगरी बसाने के लिये किया था. जिससे इसका नाम द्वारका पड़ गया. यह ब्राह्मण अपने घर से अपने भाई के घृणित व्यवहार से खिन्न होकर जिसने कुछ धन के लोभ में तक्षक द्वारा जनमेजय की रक्षा से मुँह मोड़ लिया, दारुकवन (वर्त्तमान नाम द्वारका है) जा रहा था. भगवान कृष्ण के आदेश से समुद्र ने द्वारका को समुद्र में डुबो दिया था. भगवान कृष्ण अपने श्रीधाम को प्रस्थान कर चुके थे. पश्चिमी तटवासी यवनो ने इसका लाभ उठाकर अर्वण, वसाव, विपास, निवालक आदि प्रांतो ===आज इनका कही अस्तित्व नहीं है. सम्भवतः ये भूखण्ड समुद्र में विलीन हो गये है. ==इन पर कब्जा कर लिया। पर्युश्रवण एक वाक् सिद्ध तपोनिष्ठ ब्राह्मण था. वह रबरेशम टीले पर पहुँचा। वह टीला यवनो के काले करिश्माई जादू के वश में था. पर्युश्रवण लगातार तीन वर्षो तक चलता रहा. किन्तु रास्ता समाप्त नहीं हो रहा था. पर्युश्रवण को संदेह हुआ. उसने ध्यान लगाकर देखा। उसे उस पर्वत टीले का षडयंत्र दिखाई दे गया. क्रुद्ध हो कर पर्युश्रवण ने शाप दिया कि तुम कुष्ठ रोगी होकर टुकड़ो में बिखर जाओ. परिणाम स्वरुप वह टीला कई टुकड़ो में बिखर गया. किन्तु द्वारका का पुराना राजसेवक रन्ध्रक ने जब ब्राह्मण को बताया कि इस प्रकार तो आर्यावर्त में ये यवन कालविष लेकर निर्बाध प्रवेश करते रहेगें। तो ब्राह्मण ने उस पर्वत को पुनः मन्त्रविद्ध करते हुए पानी छिड़क दिया कि जो भी प्राणी कालविष के साथ इस पत्थर या इसके टुकड़ो का स्पर्श करेगा वह विष प्रभावहीन हो जाएगा। तब से इस पत्थर का उपयोग सर्पदोष, रज्जुयोग, चापयोग, पितृदोष, देवदोष आदि के निवारण के लिये धारण किया जाता है. यवन ग्रंथो में सम्भवतः इस पर्वत को “कोहसुलेमान” या “पर्वत सुलेमान” कहा गया है. क्योकि प्राचीन आर्यावर्त का यह हिस्सा यवन प्रदेश से सटा था. और शायद इसीलिये इसे सुलेमानी पत्थर या हक़ीक़ सुलेमानी के नाम से जाना गया.
इसका रासायनिक संयोजन निम्न प्रकार है –
कज्जल (Carbon), पर्वण (Phosphorus), वाजवल (Thulium) और यजश्रेय (Lithium) . इसमें 24 अणु जल (24H2O) का होता है. इसमें अभिरंजन (Coloring) का काम क्लोरोबोक्सिनेट करता है.
कारबामाइजिन क्लोरोफाफस्फाइड का प्रभाव प्रजनन नलिका (Urogenital Duct) के क्लोपास को नियंत्रित करता है. थोलियम क्लैरिथिनेट ब्रोमाइड के द्वारा आलिन्द (Artery – ह्रदय का एक भाग) को नियंत्रित एवं स्पन्दित किया जाता है. डायलोथिन लिथोहाइड्राइड फलेक्सिलिन के द्वारा आठवी एवं नौवी कशेरुका (Vertebra) के धूसर द्रव्य (Grey Matter) को विरल नहीं होने देता। इसका लैक्टोथिनेट सेटासिनामाइड प्रत्येक असह्य एवं प्रतिकूल बाह्य प्रकाश-प्रभाव को नियंत्रित करने के लिये व्यक्ति के चारो तरफ तीक्ष्ण किरण जाल का घेरा बना देता है. या दूसरे शब्दो में भूत-प्रेत, जादू-टोना, नज़र-गुज़र आदि से रक्षा करता है.
वेदिक ज्योतिष के अनुसार जिन भावो में राहु या केतु, शनि या मंगल अशुभ हो उसके अनुसार इसके रंग का चुनाव करना चाहिये।
ध्यान रहे, यह एक सस्ता पत्थर है किन्तु इसे जागृत या क्रियान्वित (Activated) करना बहुत पेचीदा एवं खर्चीला तथा तीन या चार दिन लगाने वाला है. अतः बहुत सोच समझ कर धैर्यपूर्वक इसकी पूजा (जागृत) करनी चाहिये।
यदि विधिवत इसको धारण किया जाय तो इसका प्रभाव बहुत सटीक, अचूक एवं तीव्र होता है.
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इसे आप Face Book पर भी देख सकते है. निम्न लिंक पर जाएँ-
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