Menu
blogid : 6000 postid : 698908

हाय रे वसन्त!!!!!!

वेद विज्ञान
वेद विज्ञान
  • 497 Posts
  • 662 Comments
कैसे कैसे तो मैं छुट्टी लेकर घर पहुँचा। किन्तु सामाजिक एवं पारिवारिक परम्पराओं का पालन अनिवार्य होने के कारण मेरी धर्मपत्नी को अचानक कही और जाना पड़ गया. बस अपनी “बुढ़िया” के लिये कुछ पंक्तियाँ =====
हाय रे वसन्त! देख्यो घर नाही कन्त लेके विरह अनन्त धाइ गेह मेरो आयो है.
छल राख्यो मन बगराइ दियो तन बान पञ्चक चलाइ मोरे हियरा जलायो है.
कोयल को कूक हूक सालत करेजा मोर धावत बिहाइ लोक लाज रति पायो है.
फूल को पराग बनि आग झुलसावे अँग ऊपर अनँग मकरंद भरि धायो है.
बहत बयार मन्द कान में बयान रसपान को बताय ध्यान चित्त भटकायो है.
किसिम किसिम फूल हिय में हिलोरे शूल भँवर बिठाई सिर कटि लचकायो है.
रँग से विरंग खग मग मोर रोकि व्यँग विहँसि सुनावे भँग चैन सुख ढायो है.
“पण्डित” वसन्त दियो हन्त! हाय अन्त नाही विरह जो कन्त मोरे घर नहीं आयो है.
============================================
बहुत जतन छुट्टी लियो पहुँचे पिय घर मोर.
मैं बपुरी तजि गेह निज जाइ बसी किस ओर.
दिग दिगन्त भयो लाल, पीताम्बर ढकि तन बदन.
हम विरहिनि को काल, भा बसन्त रति मदन सदन.
पण्डित आर के राय

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply