यह योग मात्र आवास से ही सम्बंधित नहीं है. बल्कि यह ग्रह दोष भी है. यह ऐसा दोष है जो पहले शुरू में प्रयत्न को सफलता पूर्वक आगे बढ़ाता है. और जब फल मिलना नज़दीक होता है तब सब काम उलट जाता है. और काम बनते बनते बिगड़ जाता है. आदमी को अब बिलकुल विश्वास हो जाता है कि उसका काम या उसकी योजना पूरी हो गई. किन्तु अचानक सब उलटा हो जाता है.
कुण्डली में जब सप्तमेश सप्तमांश कुण्डली में अपने पिछले भावो के उन ग्रहो से जो पृष्टोदयी राशि में स्थित हो और उनसे सप्तमेश अतिक्रमित हो जाये तब यह दोष विवाह तथा संतान सम्बन्धी उपद्रव देता है. अर्थात विवाह तय हो जाता है. और सब कुछ होने के बाद अचानक टूट जाता है.
या फिर स्त्री को गर्भ धारण के चौथे या पांचवें माह में गर्भनाश का सामना करना पड़ता है.
इसी प्रकार जब दशमेश दशमांश कुण्डली में अपने से पीछे पृष्टोदयी राशि में स्थित ग्रहो से अतिक्रमित होता है तो परीक्षा या प्रतियोगिता या नौकरी में सब प्रश्नो का उत्तर सही देने के बाद भी किसी न किसी कारण से हतोत्साहित परिणाम का सामना करना पड़ता है.
आवास के सम्बन्ध में जब अवास की बाह्य परिधि पर शयनकक्ष एवं पाकशाला के द्वारा बनाई गई जीवा (वृत्त खण्ड या चाप) पर कोई भी कोण समकोण से अधिक न बने तो उपर्युक्त दोष उत्पन्न होता है.
इसके निराकरण की विधियाँ विविध ग्रंथो जैसे अहनिदाह, निदान भाष्कर (आचार्य देवपाणि कृत) आदि में श्रम पूर्वक खोजा जा सकता है.
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